बिहार : सत्‍ता की ‘जागीरदारी’ के खिलाफ मुखर हुई हिस्‍सेदारी की आवाज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 9 मार्च 2021

बिहार : सत्‍ता की ‘जागीरदारी’ के खिलाफ मुखर हुई हिस्‍सेदारी की आवाज

  • पत्रकार-स्‍पीकर विवाद की अंतर्कथा – 2

journalist-speeker-war-bihar
विजय कुमार सिन्‍हा के अध्‍यक्ष निर्वाचित होने के दो-तीन दिन बाद ही हमने उनसे मुलाकात करके आग्रह किया था कि प्रेस सलाहकार समिति का स्‍वरूप बदलिये। इसमें 90 फीसदी से अधिक उच्‍च जातियों के पत्रकार हैं, जबकि विधान सभा में 80 फीसदी संख्‍या गैरसवर्ण विधायकों की है। इसलिए विधायकों की संख्‍या के अनुपात में विधान सभा प्रेस सलाहकार समिति में पत्रकारों की सामाजिक हिस्‍सेदारी सुनिश्चित की जाये। विधान सभा की डायरी प्रकाशित होने से पहले हमने कम से कम तीन बार स्‍पीकर से इस बात का आग्रह किया कि प्रेस सलाहकार समिति में गैरसवर्ण पत्रकारों को विधायकों के अनुपात में सामाजिक हिस्‍सेदारी दीजिये।


इस दौरान स्‍पीकर ने कहा कि बड़े-बड़े अखबारों के प्रतिनिधियों का दबाव है। प्रेस सलाहकार समिति में नये लोगों को शामिल किया जाना शामिल संभव नहीं है। इस बीच विधान सभा की डायरी प्रकाशित हो गयी। उसमें प्रेस सलाहकार समिति के सदस्‍यों की सूची प्रकाशित हुई थी। उस सूची में जिन नये अखबारों के प्रतिनिधियों को जगह दी गयी, उसमें सभी सवर्ण पत्रकार थे। जब हम सामाजिक हिस्‍सेदारी की बात कर रहे थे तो इनके पास जगह नहीं थी और सवर्णों के लिए उनके पास जगह आ गयी। यहां हम स्‍पीकर से एक सवाल पूछ रहे हैं कि उन पत्रों को सार्वजनिक किया जाये, जिसके आधार पर अखबारों के प्रतिनिधियों को प्रेस सलाहकार समिति में शामिल किया गया। विधान सभा की सभी समितियों के सभापति के चयन में भी सामाजिक प्रतिनिधित्‍व का ख्‍याल रखा जाता है। पार्टियों से उनका नाम मांगा जाता है। इसी तरह प्रेस सलाहकार समिति के गठन में सामाजिक प्रतिनिधित्‍व और अखबारों या चैनलों के संपादक की राय भी ली जानी चाहिए। क्‍योंकि प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में जो नाश्‍ता और पानी आता है, वह जनता के पैसों से आता है। हर एक पनीर पकौड़ा, आलूचाप, कचौड़ी और गाजा का रिश्‍ता जनता के टैक्‍स से जुड़ा होता है।


हम मुद्दे पर आते हैं। पत्रकारों के बीच विधान सभा की डायरी, चादर और झोला बांटने के लिए कथित रूप से ‘पत्रकार सम्‍मान समारोह’ का आयोजन 8 जनवरी को किया गया। पत्रकार सम्‍मान समारोह के नाम पर आयोजित भोज में पत्रकारों की ‘भीड़’ जुट गयी। सभा सचिवालय ने पत्रकारों को भीड़ की संज्ञा दी थी। भीड़ बढ़ने के कारण झोला और चादर कम पड़ने लगी तो सिर्फ लिफाफे में डायरी बांटकर भी काम चलाया गया। हमें तो डायरी, चादर और झोला तीनों सामान मिल गया था। विधान सभा के इतिहास में पहली बार बिना किसी ‘उपलब्धि’ के पत्रकारों के लिए सम्‍मान समारोह का आयोजन किया गया था। लेकिन हमने डायरी, चादर और झोला लेकर भी इस आयोजन की खबर सोशल मीडिया के प्‍लेटफार्म पर चला दी। इससे विधान सभा ‘अपमानित’ हो गयी। इससे स्‍पीकर की प्रतिष्‍ठा आहत हो गयी। इसके बाद से स्‍पीकर हमारे खिलाफ अभियान में जुट गये हैं। भोज के बाद हमने जो खबर लिखी थी, उसका शीर्षक था- ‘गोवार की थाली में भूमिहार के  दही का आनंद लीजिये।‘ इसके अलावा भी कई खबरें हमने लिखी, जो विधान सभा के स्‍पीकर के मनोनुकूल नहीं थीं। इन खबरों को हमारे सोशलमीडिया प्‍लेटफार्म पर पढ़ सकते हैं।



-बीरेंद्र यादव न्यूज़-

कोई टिप्पणी नहीं: