पटना . 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...' हर साल लोग उनके शहादत दिवस पर उनकी चिताओं के पास आते हैं और उन्हें याद करते हैं.लेकिन शायद ही कोई उनके परिवार के बारे में भी सोचता है. किसी के पास यह सोचने की फुर्सत नहीं है कि देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वालों का परिवार किस तरह से जी रहा है.आज भी शहीद के परिवार की माली हालत खस्ता है. बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर थाने के अंतर्गत चैनपुर बस्ती के अत्यंत निर्धन परिवार में जुब्बा सहनी का जन्म 1906 में हुआ था.उनका नाम बिहार के अग्रण्य स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार है. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा सहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था. बाद में पकड़े जाने पर उन्हें 11मार्च 1944 को फांसी दे दी गयी. सरकार ने उनके नाम पर मुजफ्फरपुर शहर में जुब्बा सहनी खेल स्टेडियम बना दिया है जो काफी दर्शनीय है. मुजफ्फरपुर के मिठनपुरा क्षेत्र में स्थित एक बच्चों का पार्क है. स्वतंत्रता सेनानी जुब्बा सहनी के नाम पर पार्क को एक श्रद्धांजलि के रूप में नामित किया गया था.यह पार्क है या शौचालय. पार्क का कोई लुक है ही नहीं.यहां खड़ा होना भी मुश्किल है.जुब्बा सहनी पार्क के निरीक्षण करने पहुंचे मेयर सुरेश कुमार ने यहां की व्यवस्था पर सवाल उठाए.उन्होंने कहा कि पार्क के रखरखाव और सफाई व्यवस्था में तैनात कर्मचारियों पर हर माह ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं, लेकिन पार्क से नगर निगम को महीने में 50 हजार रुपये की भी आमदनी नहीं होती है.मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी नई रेलखंड पर मेन लाइन पर पड़ने वाले जुब्बा सहनी रेलवे स्टेशन है. परिवार वालों का कहना है कि भले ही सरकार ने शहीद जुब्बा सहनी के नाम पर खेल स्टेडियम,पार्क और रेलवे स्टेशन बना दे परंतु परिवार वालों की सुधि न ले और अपने स्तर पर जीने को छोड़ दे तो स्थिति गंभीर बन ही जाएगी.शहीद के घर की डगमगाती माली हालत का आलम यह है कि मुनिया का बेटा बिकाउ सहनी ने पैसों की तंगी से परेशान होकर पहले ही सुसाइड कर चुका.गांव वाले बताते हैं कि उसे तंगी में अपनी बेटी के हाथ पीले करने की चिंता हमेशा सालती थी और इसी कारण उसने मौत को गले लगा लिया था.
27 नवंबर 2014 को मुनिया की पोती और बिकाउ सहनी की रिंकू की शादी हुई थी. उस समय शादी के लिए लोगों ने चंदा किया था. मीनापुर प्रखंड से लेकर शहर तक के लोगों ने सहयोग किया था. तत्कालीन सांसद कैप्टन जयनारायण निषाद ने उपहार में गैस सिलेंडर दिया था, लेकिन पैसों के अभाव में रिंकू दोबारा गैस नहीं भरवा सकी.कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद का निधन 2018 में हो गया. लंबी राजनीतिक पारी खेेल कर 88 साल की उम्र में विदा हुए. 2017 में शहीद की बहु मुनिया दाने-दाने को मोहताज हो गयी थी. उसके हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया था.आखिरी सांसें गिन रही मुनिया ने खाना-पीना भी छोड़ दिया था.उसकी सुधि लेने वाले कोई नहीं है.यहां तक की प्रशासन को ही मुनिया के बारे में जानकारी नहीं है. स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए फांसी पर झूल जाने वाले बिहार के अमर शहीद जुब्बा सहनी के परिवार की हालत बदहाल है.जुब्बा सहनी के नाम पर वोट बटोरने वालों ने कभी इनके परिवार की सुध नहीं ली.परिवार का गुजारा भी जैसे तैसे चल रहा है। जब सेहत ठीक थी तो वो मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट पाल रही थी. वर्तमान में शहीद जुब्बा सहनी के भाई बांगुर सहनी की पुत्रवधू मुनिया देवी (70 वर्ष), मुनिया देवी की पुत्रवधू गीता देवी (45 वर्ष), गीता देवी का पुत्र गया सहनी (25 वर्ष) और चार नाबालिग पुत्रियां व गया सहनी की पत्नी उनके परिवार के सदस्य के रूप में शामिल हैं. गया सहनी अपने रिश्तेदार के साथ दूसरी जगह रहकर मजदूरी करते हैं. इससे परिवार का भरण-पोषण होता है.
इस बाबत मुजफ्फरपुर के डीएम ने कहा था कि शहीद जुब्बा सहनी के परिवार के सदस्यों को स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी पेंशन योजना के तहत पेंशन के लिए सरकार को विशेष प्रस्ताव भेजा जाएगा. इसके साथ ही गया साहनी को रोजगार और प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिलाया जाएगा. राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी की ओर से शहीद जुब्बा सहनी का शहादत दिवस मनाया गया.मौके पर पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र सहनी ने जुब्बा सहनी के जीवन पर विस्तार से चर्चा की.जुब्बा सहनी का जन्म मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर प्रखंड के चैनपुर गांव में हुआ था.वे शुरू से ही राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत देशभक्त थे.11 मार्च 1944 को भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गयी.इस मौके संतोष कुमार सिंह, साहिल आलम, सुजीत यादव, नरेश दास, कैलाश सहनी, राजीव कुमार, अशोक सिंह निषाद आदि लोग मौजूद थे.दूसरी ओर, बिहार निषाद मंच की ओर से प्रदेश कार्यालय में अमर शहीद जुब्बा सहनी का शहादत दिवस मनाया गया. अध्यक्षता चरितर सिंह ने की.महासचिव रामाशीष चौधरी ने कहा कि आजादी की लड़ाई में जुब्बा सहनी ने जान की बाजी लगा दी थी.मौके पर शशि भूषण कुमार, बैजनाथ सिंह निषाद, विनोद सहनी, विनय कुमार सहनी, मनोज निषाद, सुरेश प्रसाद सहनी, दिलीप कुमार निषाद, गोरख निषाद, रघुनाथ महतो, जीबोधन निषाद,राजदेव चौधरी, उमेश मंडल आदि मौजूद रहे. पटना स्थित श्रीकृष्ण स्मारक भवन तथा स्टैंड रोड 6 नंबर आवास पर मुकेश सहनी अमर शहीद जुब्बा सहनी जी का शहादत दिवस पर उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा-सुमन अर्पित किया गया.त्याग और बलिदान का दूसरा नाम है शहीद जुब्बा सहनी.उन्होंने छोटी से उम्र में बड़ा काम कर दिखाया. देश के सामने स्वयं को कुर्बान कर दिया और एक अंग्रेज अफसर को जिंदा जला दिया.
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