विशेष : पर्यावरण संरक्षण के जुनून ने बनाया ‘ग्रीन कमांडो’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 14 जून 2021

विशेष : पर्यावरण संरक्षण के जुनून ने बनाया ‘ग्रीन कमांडो’

green-comando-chhatisgadh
यूं तो पूरी दुनियां में ज्यादातर इंसानों का जन्मदिन मनाया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी किसी इंसान को पेड़ों का जन्मदिन मनाते देखा या सुना है? अगर नहीं सुना है तो छत्तीसगढ़ के एक पर्यावरण प्रेमी यह कार्य पिछले 18 सालों से करते आ रहे हैं, इसी तरह वह रक्षा बंधन पर हर साल पेड़ों को राखी यानि रक्षा सूत्र भी बांधते हैं और जीवनभर उनकी देखभाल करने का वचन देते हैं। वे पेड़ों को अपना मित्र समझते हैं, उनकी देखभाल अपने बच्चों की तरह करते हैं। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी ‘प्रकृति’ रखा है।


छत्तीसगढ़ की वन संपदा एवं प्रकृति की ख्याति तो पूरे देशभर में है पर दिन-प्रतिदिन अत्याधुनिक संसाधनों के बढ़ते प्रयोग व लगातार हो रही पेड़ों की कटाई से पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जंगलों को नुकसान पहुंच रहा है और नदी, तालाब प्रदूषित होते जा रहे हैं, भूजल स्तर भी लगातार नीचे गिर रहा है। ऐसे में अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित कर उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखना हमारे पर्यावरण के लिए बहुत आवश्यक हो गया है। राज्य के बालोद जिला स्थित दल्ली-राजहरा नगर के निवासी वीरेन्द्र सिंह पर पर्यावरण बचाने का जुनून इस कदर चढ़ा है कि वे पिछले 23 साल से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए निरंतर अभियान चला रहे हैं। उन्होंने बालोद जिले में अपने अनूठे कार्य से मिसाल कायम की है इसलिए अब लोग उन्हें ‘ग्रीन कमांडो’ के नाम भी जानते हैं।


green-comando-chhatisgadh
युवावस्था के जिस पड़ाव में लोग दोस्त-यारों के साथ घूमने फिरने में मशगुल रहते हैं, उस उम्र में वीरेन्द्र सिंह प्रकृति की सेवा में लग गए और फिर आज तक वह छत्तीसगढ़ के बालोद और कांकेर जिले के साथ-साथ पूरे बस्तर में पर्यावरण बचाने के लिए अभियान छेड़े हुए हैं। वह लोगों से पर्यावरण को संरक्षित करने, ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने का आह्वान करते हैं और अपने बच्चों की तरह पालन पोषण करने का संकल्प भी दिलाते हैं। वह पर्यावरण को बचाने के लिए स्वयं पौधे तो लगाते ही हैं, साथ ही निःशुल्क पौधे बांटकर भी़ लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। इतना ही नहीं वह पेड़ों का लालन-पोषण बगैर किसी सरकारी सहायता के स्वयं के खर्चे से करते हैं। एक निजी कंपनी में नौकरी करके जितना वह कमाते हैं उसका एक हिस्सा हर महीने पर्यावरण को बचाने में लगा देते हैं।


एम.काॅम. और अर्थशास्त्र में एम.ए. की शिक्षा प्राप्त कर चुके वीरेन्द्र सिंह ने अपने पर्यावरण प्रेम पर बात करते हुए बताया कि 1998 में पहली बार घर के बाहर एक पीपल का पौधा लगाया था, तब से ही पर्यावरण की तरफ मेरा झुकाव बढ़ने लगा। उसके बाद यानि 1998 से ही एक प्राइवेट स्कूल में 10 साल तक निःशुल्क सेवा देने के दौरान 25 छात्रों के साथ मिलकर आस-पास के क्षेत्रों में पौधा रोपण का कार्य शुरू किया। वह कहते हैं कि आज से 23 साल पहले जब लोगों को मैं चुल्हा जलाने के लिए पेड़ों को काटते देखता था तो मन में बहुत पीड़ा होती थी। सोचता था इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? इन्हीं सब विचार के बाद से मैंने घर के नजदीक 2004 में एक गार्डन बनाया जिसमें 250 पौधे लगाए। वह सभी आज बडे़ पेड़ बन गए हैं और लोगों को शुद्ध हवा उपलब्ध करा रहे हैं। उन्होंने बताया कि ये वही पेड़ हैं जिनका वो हर साल जन्म दिन मनाते हैं और अगले महीने जुलाई 2021 में इन पेड़ों का 18वां जन्मदिन मनाने वाले हैं। जबकि रक्षा बंधन पर अगल-अलग जगह घूमकर पेड़ों को राखी बांधते हैं ताकि लोग इसके महत्व को समझ सकें।


green-comando-chhatisgadh
वास्तव में वीरेन्द्र सिंह एक ऐसे पर्यावरण प्रेमी हैं, जो पेड़ पौधों को बचाने के साथ साथ जल संरक्षण की मुहिम में भी लगे हुए हैं। उन्होंने अब तक करीब 20 हजार से अधिक पौधे लगाए हैं तथा 30 से अधिक तालाबों की साफ-सफाई की है। उन्होंने साइकिल से पर्यावरण बचाओ यात्रा भी निकाली थी। जिसके तहत 2007 में दुर्ग से नेपाल तक तथा 2008 में रायपुर से कन्याकुमारी और कन्याकुमारी से वाघा बॉर्डर तक की यात्रा चार महीने में पूरी की थी। इसके साथ ही उन्होंने अपने निवास स्थान दल्ली-राजहरा से 7 किमी दूर स्थित कुसुमकसा गांव तक भी 15 हजार स्कूली छात्रों के साथ मिलकर मानव-श्रृंखला बनाई थी और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया है। वीरेन्द्र सिंह को उनके पर्यावरण संरक्षण कार्यों के लिए आम जनता के साथ-साथ सरकार ने भी समय-समय पर प्रोत्साहित किया है। उन्हें अब तक कई छोटे-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिसमें मुख्य रूप से वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘जल स्टार’ पुरस्कार और केन्द्र स्तर पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के लिए तथा पिछले वर्ष भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए ‘वाॅटर हीरो 2020’ का पुरस्कार भी दिया है। इसके अलावा जिला स्तर पर कलेक्टर के द्वारा स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।


वीरेन्द्र सिंह बताते है कि 9 साले पहले उनकी शादी हुई थी तो दहेज के रूप में केवल 11 पौधे लाए थे, जो आज बड़े छायादार वृक्ष बन गए हैं। उनके इस अभियान में उनकी पत्नी सविता सिंह का भी पूरा सहयोग मिलता है। तो दूसरी ओर बचपन से ही पर्यावरण के प्रति अपने पिता का समर्पण देख रहे उनके दोनों बच्चे 7 साल की बेटी और 5 साल का बेटा भी पर्यावरण संरक्षण अभियान में अभी से लग गए हैं। ग्रीन कमांडो यानि वीरेन्द्र सिंह लोगों को पर्यावरण के बारे में जागरूक करने के लिए हमेशा अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। कभी अपने शरीर पर पेंटिंग बनवाकर तो कभी नारे लगाकर प्रकृति का महत्व समझाते हैं। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और बाघों को बचाने के लिए अपने शरीर पर पेंटिंग बनाकर भी संदेश दिया है। पर्यावरण के अलावा भी वह कई सामाजिक मुद्दों जैसे तंबाकू निषेध, वायु प्रदूषण, एड्स जागरूकता, साक्षरता अभियान, मतदान अधिकार के बारे में लोगों को जागरूक करते रहते हैं। बारिश के मौसम में वह हर रोज अपने घर से नन्हें पौधे लेकर निकलते हैं। जहां खाली जगह दिखी वहां बड़े प्यार से पौधों को रोप देते हैं ताकि आने वाली पीढियां हरियाली से महरूम न रह जाएं। बिना किसी दिखावा व प्रसिद्धी पाने की होड़ से कोसो दूर वह पिछले 23 सालों से खुद को प्रकृति को समर्पित कर चुपचाप कार्य कर रहे हैं।


green-comando-chhatisgadh
बहरहाल, आज के दौर में लोग अपने फायदे के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से पहले एक मिनट भी नहीं सोचते, ऐसे वक्त में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र से एक व्यक्ति का निस्वार्थ भाव से पर्यावरण की सेवा करना तथा लोगों को सरंक्षण के लिए जागरूक करने का प्रयास सराहनीय है। कोरोना संकट के इस दौर में ऑक्ससीजन की कीमत क्या होती है इसे आज पूरी दुनिया ने देख लिया है। जबकि यह ऑक्ससीजन हमें पेड़-पौधों से निःशुल्क मिल रहा है बावजूद हम उसके संरक्षण को लेकर सजग नहीं हैं। ऐसे में अब भी हमारे द्वारा लापरवाही बरती गई तो धरती पर जीवन खतरे में पड़ जाएगा। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण की ज़िम्मेदारी केवल वीरेंद्र सिंह की ही नहीं बल्कि हम सब की है। अच्छा होगा कि समय रहते हम ग्रीन कमांडों के इस संदेश को गंभीरता से लें। 



surya-kant-devangan
सूर्यकांत देवांगन

कांकेर, छत्तीसगढ़

(चरखा फीचर)

कोई टिप्पणी नहीं: