मधुबनी : मधुबनी प्रलेस द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 3 अक्तूबर 2021

मधुबनी : मधुबनी प्रलेस द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन

kavi-goshthi-madhubani-prales
मधुबनी : खादी भंडार के सभागार में 4:30अप. से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं भारतरत्न लालबहादुर शास्त्री जी के जन्मदिवस के अवसर पर मधुबनी ज़िला प्रगतिशील लेखक संघ(प्रलेस) की ओर से उन दोनों महान विभूतियों की पावन स्मृति में काव्यगोष्ठी आयोजित की गयी जिसकी अध्यक्षता डॉ. विजयशंकर पासवान और मंच संचालन प्रलेस के प्रधान सचिव अरविन्द प्रसाद ने किया।  गोष्ठी में 14 कवियों ने अपनी-अपनी कविताएँ पढ़ीं।सर्वश्री उदय जायसवाल,भोलानंद झा,डॉ रामदयाल यादव, दिलीप कुमार झा,दयानंद झा एवं नन्द कुमार झा ने बापू को समर्पित अपनी कविताओं से लोगों को भाव विभोर कर दिया। झौली पासवान जी ने अपनी "महाकवि" शीर्षक कविता में किसानों को महाकवि बताकर उन्हें महिमामंडित किया जबकि डॉ विनय विश्वबंधु ने"बिन दहेजक नारि" में दहेज के दंश को रेखांकित किया।अधिवक्ता कवि ऋषिदेव सिंह ने सावन माह के वर्णन से साथ कोरोना की व्यथाकथा का बखान किया।कवि सुभेष चंद्र झा ने अपनी "लोकतंत्र" कविता में लोकतंत्र की स्तरहीनता की ओर लोगों का ध्यान खींचा। कवि पवनकुमार झा ने "जाग,जाग,जाग नौजवान" कविता की गीतात्मक प्रस्तुति द्वारा जनसमुदाय को काफी उद्वेलित किया।डॉ. विजयशंकर पासवान की कविता की पंक्ति-"जो कुछ भी उपजाया हमने सरकारी गोदाम भरबाया हमने।दूसरों के भरण पोषण में जीवन सारा लगाया हमने।"--लोगों को अत्यंत प्रभावित किया।

प्रीतम कुमार निषाद की कविता की पंक्ति "अहो राष्ट्रपिता गाँधी भारतरत्न शास्त्री,नमन"-अति प्रभावोत्पादक रही।

अरविन्द प्रसाद की कविता की निम्न पंक्तियों--"खायीं गोलियाँ, दी न गालियाँ,"हे राम" जो कह दम तोड़ा।

राष्ट्रपिता बापू कहलाये;अरि को नहीं कहीं का छोड़ा।

बार बार उनके वारिस को"जय श्रीराम" है कहना पड़ता।

गॉड सा दिल में गोडसे रखकर गाँधी पग पर गिरना पड़ता।"--ने लोगों को गाँधी दर्शन का व्यावहारिक दिग्दर्शन कराया।

कवि राजेन्द्र पासवान ने सारे कवियों एवं श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। अरविन्द प्रसाद/प्रधान सचिव,मधुबनी ज़िला प्रलेस।

कोई टिप्पणी नहीं: