पटना। सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी (एसएक्ससीएमटी), पटना में गुरुवार, 2 दिसंबर, 2021 को एक पेंटिंग प्रदर्शनी में जीसस क्राइस्ट और सेंट फ्रांसिस जेवियर के जीवन पर कलात्मक शैलियों और माध्यमों के विविध संग्रह को एक साथ लाया गया। प्रदर्शनी का आयोजन सेंट जेवियर, जिसके नाम पर कॉलेज का नामांकरण किया गया है, के ‘फीस्ट डे (पर्व)’ की पूर्व संध्या पर जेवियर आर्ट क्लब द्वारा किया गया था। प्रदर्शनी में कुल मिलाकर 12 पेंटिंग, यीशु मसीह और सेंट जेवियर के जीवन के चित्रण वाले एपिसोड प्रदर्शित किए गए थे। सात छात्रों द्वारा बनाई गई पेंटिंग एक्रेलिक कलर, वॉटर कलर और ऑयल पेस्टल में तैयार की गई थी। इस कार्यक्रम का उद्घाटन जेसुइट पुजारी फादर सिरिएक पूवाकोट एसजे ने एसएक्ससीएमटी प्रिंसिपल, फादर टी निशांत एसजे, आर्ट क्लब मेंटर सुश्री प्रिया गुप्ता, संकाय सदस्यों और छात्रों की उपस्थिति में किया।
कौन हैं सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर
फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म 7 अप्रैल, 1506 ई. को स्पेन में हुआ था। पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय तथा पोप की सहायता से वे जेसुइट मिशनरी बनाकर 7 अप्रैल 1541 ई को भारत भेजे गए और 6 मार्च 1542 ई. को गोवा पहुँचे जो पुर्तगाल के राजा के अधिकार में था। गोवा में मिशनरी कार्य करने के बाद वे मद्रास तथा त्रावणकोर गए। यहाँ मिशनरी कार्य करने के उपरांत वे 1545 ई. में मलाया प्रायद्वीप में ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए रवना हो गए। उन्होंने तीन वर्ष तक धर्म प्रचारक (मिशनरी) कार्य किया। मलाया प्रायद्वीप में एक जापानी युवक से जिसका नाम हंजीरो था, उनकी मुलाकात हुई। सेंट जेवियर के उपदेश से यह युवक प्रभावित हुआ। 1549 ई. में सेंट ज़ेवियर इस युवक के साथ पहुँचे। जापानी भाषा न जानते हुए भी उन्होंने हंजीरों की सहायता से ढाई वर्ष तक प्रचार किया और बहुतों की क्रिश्चियन धर्म का अनुयायी बनाया।
सोसायटी ऑफ जीज़ेज़ (एसजे)के संस्थापक सदस्यों में से एक थे सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर
सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर सोसायटी ऑफ जीज़ेज़ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिन्हें जेसुइट कहा जाता है।संत पापा फ्रांसिस भी जेसुइट हैं.सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर का जन्म 7 अप्रैल 1506 ज़ेवियर, नैवार राज्य, (स्पेन) में हुआ था.मृत्यु 3 दिसम्बर 1552 (उम्र 46) शांग्चुआन द्वीप, चीन में हुई." धन्य" घोषित 25 अक्टूबर 1619, पॉल पंचम के द्वारा "संत" घोषित 12 मार्च 1622, ग्रेगोरी पंचदश के द्वारा. उनके भक्त रोमन कैथोलिक चर्च, लूथेरन चर्च, एंग्लिकन समुदाय में मिलेंगे। जापान से वे 1552 ई. में गोवा लौटे और कुछ समय के उपरांत चीन पहुँचे. वहाँ दक्षिणी पूर्वी भाग के एक द्वीप में जो मकाओ के समीप है बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गई। मिशनरी समाज उनको काफी महत्व का स्थान देता और उन्हें आदर तथा सम्मान का पात्र समझता, है क्योंकि वे भक्तिभावपूर्ण और धार्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य थे। वे सच्चे मिशनरी थे। संत जेवियर ने केवल दस वर्ष के अल्प मिशनरी समय में 52 भिन्न भिन्न राज्यों में यीशु मसीह का प्रचार किया। कहा जाता है, उन्होंने नौ हजार मील के क्षेत्र में घूम घूमकर प्रचार किया और लाखों लोगों को यीशु मसीह का शिष्य बनाया।
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