वर्जनाओं को तोड़ती दमन सिंह की नई पुस्तक ‘असाइलम’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

वर्जनाओं को तोड़ती दमन सिंह की नई पुस्तक ‘असाइलम’

  • · मुझे अपने शोध के लिए औपचारिक रूप से असाइलम में जाने की अनुमति नहीं थी। दमन सिंह ने प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित किताब फेस्टिवल  में 'असाइलम' के पुस्तक विमोचन पर चर्चा में कहा कि असाइलम के लिए अनुमति मिलने में सालों लग सकते हैं।
  • · दमन सिंह  ने आगे कहा कि एक लेखक और शोधकर्ता के रूप में मैं अपने लिए चीजें देखना चाहती थी लेकिन मैं यह भी देखती हूं कि मानसिक अस्पताल सिर्फ कोई अस्पताल नहीं है। यह एक ऐसी जगह है जहां एकांतता  और गोपनीयता बड़ा मुद्दा है। मानसिक स्वास्थ्य डॉक्टरों की कमी हैं और बहुत से लोगों को  सही इलाज भी प्राप्त नही है।
  • · असाइलम मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को एक विहंगम दृश्य प्रदान करता है और एक सामान्य व्यक्ति के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक, दार्शनिक, सरकारी और चिकित्सा जैसे सभी पहलुओं को शामिल करता है। पुस्तक पिछले 125 वर्षों में भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा कैसे विकसित हुई, इसकी कहानी है।
  • · "जब मन की विकृतियों की बात आती है, तो भारतीय उपमहाद्वीप में मनोगत, विश्वास और उपचार के पारंपरिक तरीकों की ओर मुड़ने की एक स्थायी संस्कृति है।" यह लेखिका  दमन सिंह ने अपनी नई किताब असाइलम द बैटल फॉर मेंटल हेल्थकेयर इन इंडिया में कहा है।

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नई दिल्ली, दिसंबर17,2021: प्रभा खेतान फाउंडेशन के किताब फेस्टिवल में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दर्शकों भरा हुआ था,जब लेखिका दमन सिंह की पुस्तक असाइलम का विमोचन किया गया। लेखिका दमन सिंह और  अहसास वुमेन ऑफ़ अहमदाबाद प्रियांशी पटेल के साथ एक साक्षात्कार प्रारूप में एक मनोरम सत्र आयोजित किया था। पुस्तक के विमोचन के साथ –साथ प्रभा खेतान फाउंडेशन ने अपने यूट्यूब चैनल पर देशभर की  जनता के लिए यह सत्र लाइव ऑनलाइन स्ट्रीम किया था। ज्ञानवर्धक सत्र की शुरुआत अर्चना डालमिया ने की। लेखिका  दमन सिंह का अभिनन्दन प्रीति गिल ने किया। प्रीति गिल  अहसास वुमेन ऑफ़ अमृतसर पेशेवर महिला हैं, जिन्होंने सत्र के बीच अपने विचार रखते हुए कहा कि "आज का सत्र दिलचस्प है और मैं  उस डेटा के बारे में जानने की इच्छुक हूँ कि विभाजन और सांप्रदायिक संघर्ष के भयानक आघात के  समय के लोगों पर क्या मानसिक प्रभाव डाला होगा और उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी। प्रियांशी पटेल के साथ एक दिलचस्प बातचीत के दौरान, दमन सिंह से पूछा गया कि मानसिक स्वास्थ्य पर एक किताब लिखने के लिए उनकी क्यों दिलचस्पी थी । जिस पर उन्होंने उत्तर दिया कि यह मनोविज्ञान में रुचि के रूप में शुरू हुआ और फिर समय के साथ यह मजबूत होता गया और लिखने का विचार बन गया। इस पुस्तक को लिखना कठिन था। और मेने इसे पूरा करने में 4 साल लगा दिए।


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उनसे आगे पूछा गया, "जिस तरह से उन्होंने यह किताब लिखी,  वह इस पुस्तक से  पाठक को क्या सन्देश चाहती थी? उन्होंने जवाब दिया, "मानसिक बीमारी" शब्द के आसपास बहुत सारी वर्जनाएँ हैं और हम इसके बारे में उतने खुलकर बात नही करते जीतनी करनी चाहिए होती है। उनकी किताब मानसिक बीमारी या इससे निपटने के तरीके के बारे में नहीं है बल्कि यह कहानी है कि पिछले 125 वर्षों में भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कैसे विकसित हुई। यह एक ऐसी कहानी है जो देश के एक मानसिक अस्पताल से शुरू होती है और हमें देशभर का सफ़र कराती  है। आज के भारत में मानसिक अस्पताल  देश के स्वास्थ्य परिदृश्य का एक बहुत छोटा हिस्सा है। सत्र में इतिहास और भारत में मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर चर्चा हुई। इस  पुस्तक में 18 वीं शताब्दी के डेटा और अध्ययन शामिल हैं। अपनी पुस्तक के बारे में और अधिक खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि 18वीं शताब्दी में, पागलों के लिए असाइलम शब्द का उपयोगकिया जाता था, क्योंकि यह शब्द आमतौर पर ब्रिटिश भारत में बोला करते थे। ये शरणस्थल अँधेरे, नीरस और दमनकारी स्थान थे। ये वे स्थान थे जो पागलों को सीमित और नियंत्रित करने के लिए थे। 19वीं शताब्दी में दुनिया के कुछ हिस्सों में सोचने का एक वैकल्पिक तरीका सामने आया था। यह महसूस किया गया कि पागलपन कोई अलौकिक चीज नहीं है जो ग्रहों या बुरी ताकतों या तंत्र-मंत्र से प्रभावित हो। यह किसी भी शारीरिक बीमारी की तरह है। यह कुछ ऐसा होता है जो शरीर के भीतर होता है और जैसे हम शारीरिक बीमारियों का इलाज करते हैं, वैसे ही हमें मानसिक बीमारियों का भी इलाज करना चाहिए। इस तरह की सोच ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बदलाव लाए और असाइलम को मानसिक अस्पतालों के रूप में फिर से विकसित या पुनर्विकसित किया जाने लगा।


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लेखिका दमन सिंह के संवादों ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझने के इरादे से अंतहीन चर्चा और बातचीत का आह्वान किया। बुक लोकार्पण  पर एक चर्चा में बात करते हुए नीलिमा डालमिया अधार ने कहा, "दमन सिंह की किताब असाइलम भारत में असाइलम पर विस्तृत और सावधानीपूर्वक दस्तावेज है। मानसिक स्वास्थ्य का गिरना ही असली महामारी है। उनके दिमाग में लाखों फंसे हुए हैं। कथा धीरे-धीरे बदल रही है क्योंकि हमें यह जानने के लिए जागना होगा कि ठीक नहीं होना ठीक है। ” उन्होंने आगे कहा कि इस विषय पर इस दुर्लभ संवेदनशील अध्ययन का अनुभव प्राप्त करने के लिए असाइलम को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।

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