बाबा विश्‍वनाथ का गौना, हर हर महादेव के उद्घोष से गूंजी काशी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 14 मार्च 2022

बाबा विश्‍वनाथ का गौना, हर हर महादेव के उद्घोष से गूंजी काशी

  • अपने पूरे परिवार के साथ भ्रमण पर निकले बाबा काशी विश्वनाथ , भक्तों ने बाबा भोलेनाथ को रंग लगाकर मनाया रंगभरी एकादशी 
  • काशी में होली खेलने की परंपरा शुरू, चिता भस्म होली आज  , सड़क से लेकर शमशान तक मस्ती में डूबे काशीवासी
  • 11 वैदिक ब्राह्मणों ने विधि विधान से बाबा का रुद्राभिषेक किया , बाबा की पालकी गुजरी तो हर कोई किनारे मौजूद रहकर पालकी को छूकर आशीर्वाद पाने की कामना करता नजर आया 

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वाराणसी (सुरेश गांधी) काशी की लोक परंपरा के अनुसार रंगभरी एकादशी पर सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के गौना के मुख्य अनुष्ठान शुरू हुए। भोर लगभग चार बजे 11 वैदिक ब्राह्मणों ने विधि विधान से बाबा का रुद्राभिषेक किया। सूरज की किरणें धरती पर आने के साथ शिव-शक्ति को पंचगव्य से स्नान कराने का साथ षोडषोपचार पूजन किया गया। वहीं दोपहर में अन्‍न क्षेत्र का भी परंपराओं के अनुरूप उद्घाटन किया गया। अनुष्‍ठानों का दौर शुरू हुआ तो बाबा दरबार हरहर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। दूर दराज से लोग पहुंचे तो विश्‍वनाथ गली में भी ट्रैफि‍क जाम सरीखा नजारा दिखने लगा। बस लोगों को बाबा की पालकी का ही इंतजार बचा रह गया था जो शाम होते ही निकली तो काशी विश्‍वनाथ गली हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठी।  बता दें, इस दिन से भक्त बाबा के संग होली खेलकर रंगों के त्योहार की शुरुआत करते हैं। यही वो दिन है जब साल में एक दिन बाबा की चल प्रतिमा के दर्शन होते हैं और बाबा पूरे परिवार के साथ काशी भ्रमण को निकलते हैं। भक्त डमरुओं की डमडम के बीच बाबा पर अबीर गुलाल उड़ाते हैं। सुबह सात बजे शुरू हुए लोकाचार और बाबा का श्रृंगार किया गया। इसके लिए महंत परिवार की महिलाएं गीत गाते श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार पहुंचीं और बाबा की आंखों में लगाने के लिए मंदिर के खप्पड़ से काजल लिया। गौरा के माथे पर सजाने के लिए सिंदूर परंपरानुसार अन्नपूर्णा मंदिर के मुख्य विग्रह से लाया गया। शिव-पार्वती के विग्रह को महंत आवास के भूतल स्थित हाल में विराजमान कराया गया और भोग अर्पित किया गया। महंत डा. कुलपति तिवारी ने विधि विधान से वेद मंत्रों के बीच महाआरती की। दोपहर में आयोजन की तैयारियां शुरू हुईं तो आस्‍थावानों के कदम भी उधर ही बढ़ चले। शाम होने की ओर घड़ी ने रुख किया तो बाबा दरबार में आस्‍था हिलोरें लेने लगीं। अबीर और गुलाल हाथ में लिए शिवभक्‍त बाबा के इंतजार में पलक पावड़े बिछाए नजर आए। दोपहर बाद शिवांजलि का शुभारंभ महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि से किया। इसके बाद सुचरिता गुप्ता, अमित त्रिवेदी, सरोज वर्मा, प्रियंका पांडेय ने भजन गायन किया। यह सिलसिला शिव आधारित गीतों के साथ शाम साढ़े चार बजे तक चला, इसके बाद बाबा की पालकी यात्रा निकली जो मंदिर परिसर तक गई। इसमें श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा और अबीर गुलाल से रेड कारपेट सी बिछ गई। बाबा के भाल पहला गुलाल सजाकर काशीवासी होली हुड़दंग की अनुमति पाकर निहाल हुए। शिव परिवार को मंदिर गर्भगृह में विराजमान करा कर लोकाचार निभाया गया। मंदिर प्रशासन की ओर से इस खास मौके पर संगीतमय शिवार्चन किया गया।


पुरातन परंपरा के साक्षी बनते हैं काशीवासी

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काशी की पूरी दुनिया में एक अलग ही पहचान है। इस शहर की 7 वार और 9 त्योहार की अद्धभुत परंपरा सदियों से बनारस को अलग बनाती है। आज के दिन काशी में भोलेनाथ और माता पार्वती के गौने की रस्म अदा की जाती है। यही वजह है बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की होली अद्भुत है। भक्तों की महादेव के साथ खेली जाने वाली होली पूरी दुनिया में मशहूर है। भक्त आज से काशी में होली शुरू कर देते हैं। अब हर घर में अबीर गुलाल की होली शुरू हो जाती है। वाराणसी में रंगभरी एकादशी इसलिए भी अहम होती है क्योंकि आज के दिन बाबा की चल प्रतिमा के भक्तों को दर्शन होते हैं। बाबा अपने पूरे परिवार के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं, भोलेनाथ को काशी में अभिभावक होते हैं लिहाजा भक्त उन पर अबीर और गुलाल उड़ाते हुए दिखाई देते हैं। 


विधि-विधान से निभाई जाती है परंपरा

रंगभरी एकादशी को पूरे विधि-विधान के साथ मनाया जाता हैं. पुरातन परंपरा के अनुसार महादेव ने इस बार भी खादी का वस्त्र पहना. महंत आवास पर पहले बाबा का तिलकोत्सव होता है, उन्हें हल्दी लगती है विवाह होता है और रंग भरी एकादशी को त्रिलोचन माता का गवना लेकर जाते हैं. जनता इसकी साक्षी बनती है और ईश्वर से मोक्ष का आशीर्वाद मांगती है. 


गलियों से निकलती है पालकी

महाशिवरात्री के दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह होता है. इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन गौने की रस्म होती है. इस अद्धभुत कार्यक्रम का साक्षी बनने के लिए सिर्फ काशी से ही नहीं, बल्कि देशभर से लोग वाराणसी पहुंचते हैं. इस दिन भक्त अपने कंधे पर रजत पालकी लेकर बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा लेकर बनारस की गलियों से निकलते हैं. जिसपर लोग जमकर रंग और गुलाल बरसाते हैं. 


मोक्ष की नगरी काशी

मोक्ष की नगरी को जिंदा शहर बनारस कहा जाता है. इस नगरी में महादेव खुद मृत्यु शैया पर मौजूद व्यक्ति के कानों में तारक मंत्र देकर उसे मोक्ष की राह पर अग्रसर करते हैं. जब भोलेनाथ माता गौरा के साथ सड़कों पर निकलते हैं, तो काशी में एक अलग की नजारा देखने को मिलता है. आज के दिन महंत के आवास को माता पार्वती के मायके के रूप में स्थापित किया जाता है. 


लाखों की संख्या में होती है भीड़

रंगभरी एकदशी का काशी के लोगों को बेसब्ररी से इंतजार रहता है. इस दिन काशी पूरी तरह से होली के रंग में रंगी नजर आती है. हर कोई महादेव को रंग लगाना चाहता है. यही वजह है कि यहां लाखों की संख्या में भीड़ गलियों में उमड़ती है. हर-हर महादेव के जयघोष के साथ बनारस में होली का उल्लास अपने चरम पर पहुंच जाता है.   


सड़क से लेकर शमशान तक  मस्ती में डूबे काशीवासी

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मोक्षदायिनी सेवा समिति के तत्वावधान में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बाबा कीनाराम स्थल रविंद्रपुरी से बाबा मसान नाथ की परंपरागत ऐतिहासिक शोभायात्रा निकाली गई। यह बाबा कीनाराम स्थल से आईपी विजया मार्ग होते हुए भेलूपुर थाना सोनारपुरा होते हुए हरिश्चंद्र घाट स्थित सुप्रसिद्ध बाबा मशान नाथ स्थल पर पहुंची। यहां पर चिता भस्‍म की होली खेल रंगभरी के बाद बाबा का आशीर्वाद लेकर होली की परंपरा का निर्वहन किया। शोभायात्रा में बग्‍घी, जोड़ी, ऊंट, घोड़ा तथा ट्रक पर शिव तांडव नृत्य करते भक्तजन तथा नर मुंड की माला पहने श्रद्धालुजन बाबा मशान नाथ का जयकारा लगाते रहे। जय हर हर महादेव का गगनभेदी जयकारा रास्‍ते भर लगता रहा। इस पूरी यात्रा के दौरान शामिल भक्तगणों ने सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल भी रखा। बनारसी मस्ती में सराबोर श्रद्धालु भक्तजनों ने पूरी निष्ठा व हर्षोल्लास के साथ भाग लिया।


चिता भस्‍म की होली 

बाबा भोलेनाथ के नेह के डोर में पगे भक्‍तों ने आशीष के नेग की कामना के साथ नाच गाना शुरू किया तो चिताओं की भस्‍म से पूरा वातावरण शिवमय नजर आने लगा। शिव के नीलकंठ और मशाननाथ के स्‍वरूपों का स्‍वांग धुआं और चिता भस्‍म के गर्दोगुबार के बीच उल्‍लास में डूबा तो फ‍जिा में हर हर महादेव का उद्घोष भी गूंज उठा। 


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