बिहार : विधायकों के मार्शल आउट के खिलाफ 3 अप्रैल को राज्यस्तरीय विरोध दिवस - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

बिहार : विधायकों के मार्शल आउट के खिलाफ 3 अप्रैल को राज्यस्तरीय विरोध दिवस

  • क्रिमनलाइजेशन, करप्शन व कम्युनलिज्म पर घिरी सरकार जवाब से भाग रही, विधानसभा में उठाए गए सवालों को लेकर अपने इलाके में विधायक जनसंवाद करेंगे
  • वामपंथ को मजबूत करने व महागठबंधन को धारदार बनाने के आह्वान के साथ, 11 वां राज्य सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न, पार्टी की सदस्यता संख्या 2 लाख पहुंचाने का लक्ष्य
  • मनरेगा मजदूरों को नहीं मिलती न्यूनतम मजदूरी, न्यूनतम 318 रु. मजदूरी के लिए होगी लड़ाई

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पटना 1 अप्रैल, 31 मार्च को विधानसभा से माले विधायकों के मार्शल आउट की घटना से लोकतंत्र एक बार फिर शर्मसार हुआ है. बिहार विधानसभा अध्यक्ष ने राज्य में लगातार गिरती कानून-व्यवस्था के सवाल पर गंभीरता दिखाने की बजाए तानाशाही का रवैया अपनाया. ऐसा लगता है कि वे भाजपा-आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं. इसके पहले एमआईएम के विधायक का भी मार्शल आउट किया गया था. विदित हो कि भाकपा-माले विधायक दल ने 31 मार्च को विधानसभा में गिरती कानून-व्यवस्था, माॅब लिंचिंग, भाजपा-आरएसएस द्वारा सांप्रदायिक उन्माद भड़काने, दलितों-अतिपिछड़ों व महिलाओं पर बर्बर सामंती व पितृसत्तात्मक हमले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा प्रचार, राज्य में लूट की बढ़ती घटनाओं आदि विषय पर कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन भाजपाई विधानसभा अध्यक्ष ने उलटे विधायकों को अपमानित किया व उन्हें जबरदस्ती उठाकर बाहर भेजवा दिया. यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. पिछले बजट सत्र के दौरान विपक्ष के विधायकों की पिटाई ने तो पूरी दुनिया में बिहार व लोकतंत्र को शर्मसार किया था.


क्रिमनलाइजेशन, करप्शन व कम्युनलिज्म पर नीतीश सरकार जीरो टाॅलरेंस का दावा करती थी, लेकिन आज पूरा बिहार पुलिस-अपराधियों के चंगुल में है. फासीवादी भाजपा व आरएसएस केे नफरत भरे अभियान से इस तरह की घटनाओं को और बल मिला है. अभी हाल में भाजपा सांसद गिरिराज सिंह ने बेगूसराय में सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला बयान दिया. हर पर्व-त्योहार को कलंकित करने व उसे हिंसा की आग में झोक देने का प्रयास हो रहा है और मुख्यमंत्री बैठकर तमाशा देख रहे हैं. इसे बिहार की जनता स्वीकार नहीं करेगी. हम सदन से लेकर सड़क तक संघर्ष जारी रखेंगे. 3 अप्रैल को पूरे बिहार में विरोध दिवस मनाया जाएगा. विधानसभा सत्र के दौरान पारित कई कानून बेहद खतरनाक और जनविरोधी हैं. हमारी पार्टी इसके खिलाफ आंदोलन करेगी. 80 प्रतिशत जनता की सहमति के बिना मनमाना ढंग से भूमि अधिग्रहण के कानून को किसानों के विरोध के कारण केंद्र सरकार लागू नहीं कर सकी. लेकिन बिहार में नगर निकाय क्षेत्र में सड़क निर्माण के बहाने राज्य सरकार ने इसे पारित करा लिया है. इसकी मार शहरी गरीबों पर पड़ेगी जिनके लिए 16 वर्षों में भाजपा-जदयू की सरकार एक आवास तक नहीं बना सकी. शराबबंदी संशोधन कानून में एक बार फिर से राजनेता-प्रशासन-शराबमाफिया गठजोड़ को बचाने का काम किया गया है. इस कानून की दिशा ही उलटी है. शराब माफियाओं ने ‘होम डिलीवरी’ का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया है. जहरीली शराब से लोगों की मौतें हो रही हैं. आज भी शराब की लत के शिकार लोगों के लिए पुनर्वास व इलाज की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है.


मनरेगा मजदूरों के सवाल पर भी बजट सत्र ने निराश किया. बिहार में मनरेगा काम में न्यूनतम मजदूरी का घोर उल्लंघन हो रहा है. यहां सिर्फ 198 रु. मिलता है, जबकि सिक्कम में 318 रुपया. विधानसभा सत्र के दौरान हमने कई बार इस मसले को उठाया, लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया. इसके लिए हम संघर्ष जारी रखेंगे. मनरेगा मजदूर मनरेगा के प्रभारी केंद्रीय मंत्री गिरिराज के लिये कीड़े मकोड़े जैसे हैं. इसको लेकर खेग्रामस की एक टीम ने विगत 31 मार्च को ग्रामीण विकास मंत्री से मुलाकात भी की है. विधानसभा में उठाए गए सवालों पर हमारे विधायक अपने-अपने इलाके में जनसंवाद करेंगे. विगत 25-27 मार्च को ‘वामपंथ को मजबूत करो और महागठबंधन को धारदार बनाओ’ के आह्वान के साथ पार्टी का 11 वां राज्य सम्मेलन गया में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. खुले सत्र में अन्य वाम दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए. कुल 750 प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया और काॅमरेड कुणाल एक बार फिर राज्य सचिव चुने गए. 97 सदस्यों की राज्य कमिटी में छात्र-युवाओं, महिलाओं, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों व जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी गई है. पूर्व विधायक व महिला आयोग की अध्यक्ष मंजू प्रकाश को भी इस बार राज्य कमिटी में जगह मिली है. पार्टी के वरिष्ठ नेता रामेश्वर प्रसाद, केडी यादव, पूर्व विधायक रामदेव वर्मा, किसान नेता शिवसागर शर्मा आदि राज्य कमिटी के स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं. राज्य सम्मेलन से पार्टी सदस्यता को दुगुना करने का लक्ष्य लिया गया. कैग रिपोर्ट ने एक बार फिर घोर वित्तीय अनियमितता को उजागर किया है. संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार नीतीश सरकार की चारित्रिक विशिष्टता बनी हुई है. नगर निकाय चुनाव दलीय आधार पर करने से सरकार भाग चुकी है. हमारी कोशिश होगी कि जनता में किसी प्रकार की फूट न पड़े और जनता के वास्तविक प्रतिनिधि चुनकर सामने आएं. सातवें चरण की शिक्षक बहाली की प्रक्रिया सरकार अविलंब शुरू करे.

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