आलेख : ‘रिश्ता’ कायम होने का दिन है ‘ईद’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 मई 2022

आलेख : ‘रिश्ता’ कायम होने का दिन है ‘ईद’

ईद-उल-फितर, जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है, मुसलमानों का सबसे बड़ा त्यौहार है। ‘ईद’ से भाव है खुशी, ‘फितर’ का अर्थ रोजे खोलने या मुकम्मल करना है। ईद का दिन खुशी और अल्लाह को धन्यवाद। रमजान के रोजों में एक सच्चा मुसलमान सुबह से शाम तक अल्लाह की इच्छा के अनुसार रहता है। खाने-पीने की चीजें होने के बावजूद, वह उनसे मुंह मोड़ लेता है, शारीरिक इच्छाओं से दूर रहता है और अपने मन (नफस) को नियंत्रित करता है। इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद सल. ने इरशाद फरमाया कि हर कौम के लिए एक खुशी का दिन होता है, ईद हमारे लिए एक खुशी का दिन है क्योंकि इस दिन रोजों से फारिग हो जाते हैं और अल्लाह के मेहमान होते हैं तथा रब्ब की ओर से माफी का परवाना मिल जाता है। ईद का दिन आपसी प्रेम और समानता का सबक सिखाता है। हमारी खुशी वास्तव में केवल तभी है जब हम गरीबों, अनाथों, असहायों, विधवाओं और बेसहारा लोगों को इस खुशी में शामिल करें। इसके लिए ‘सदका-ए-फितर’ यानी 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या 3 किलो 266 ग्राम जौ या उनकी कीमत परिवार के प्रत्येक सदस्य को ईद की नमाज से पहले जरूरतमंदों को अदा करनी जरूरी है, ताकि वे भी इस खुशी में शामिल हो सकें


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त्योहार जिंदगी में खुशियों के रंग भरते हैं। इनके बिना भी जीवन नीरस हो जाये। ईद भूख-प्यास सहन करके रमजान माह की इबादतों में मसगूल रोजेदारों को रोजे के बाद खुशियों की सौगात लाने वाला त्योहार है। मुसर्रतों का आगाज है, खुशखबरी की महक है, खुशियों का गुलदस्ता है, मुस्कुराहटों का मौसम है, रौनक का जश्न है। ईद आपसी एकता व भाईचारे का त्योहार है जहां हर रुप, रंग जाति, नस्ल का इंसान अमीरी-गरीबी के बंधनों से मुक्त होकर एक ही पंक्ति में दिखाई देता है। ईद की खुशी ही सामूहिक एकता की बुनियाद पर है, जो न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है। इसी के मद्देनजर आपसी मतभेद को मिटाने की एक पहल है ईदगाह में नमाज पढ़ना। ताकि वहां हर रंग, हर नस्ल, हर तबका एक ही सफ या यूं कहें पंक्ति में नमाज में पढ़े। जहां राजा और रंक का अंतर मिट जाता है। हजरत मुहम्मद सल. ने सदका-ए-फितर को जरूरी किया है ताकि रमजान में गलती से जो बेकार बातें कही या सुनी गईं या दिल में बुरे विचार आए हों, उससे रोजे भी पाक हो जाते हैं और गरीबों के लिए खाने-पीने का सामान भी हो जाता है। ईद की नमाज एक खुली जगह में पढ़ी जाती है, जिसको ईदगाह कहते हैं। ईद की नमाज के बाद दुआ की जाती है- हे अल्लाह, जैसे हमने एक महीने तक आपकी पसंद का जीवन जिया, भविष्य में भी हमें अपनी पसंद का जीवन जीने की ताकत दें। ईद के दिन सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे को गले लगाते, देश की एकता का संदेश देते हैं। बच्चों को ईदी, बड़ों को ईद की बधाई दी जाती है।  


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ईद-उल-फितर का चांद नजर आते ही मुस्लिम समुदाय में खुशी की लहर दौड़ जाती है। जब लोग एक-दुसरे को अपने सीने से लगाते है। गले मिलने से सारे शिकवे गिले कोसों दूर चला जाता है। अपनेपन का अहसास महसूस होता है। माहौल में खुशियों की लहर दौड़ पड़ती है। रंग-बिरंगे कपड़ों में सुसज्जित बच्चों के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती है। खुशियों की ये बहार भारतीय उपमहाद्वीप, अरब देशों से लेकर अमेरिका, यूरोप से लेकर अफ्रीकी देशों तक में देखी जा सकती है। दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला मजहब का यह खूबसूरत पैगाम विश्व के पचास से ज्यादा मुस्लिम बहुल वाले देशों की सीमाओं से निकलकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचता है। खासकर महीनेभर की तपती गर्मी और लू के मौसम में रोजा रखने वाले रोजेदार की खुशियों की इंतेहा को बयान कर पाना शब्दों में मुमकिन नहीं। यही वजह है पूरी दुनिया में ईद-उल-फितर हर्षोल्लास से मनायी जाती है। वैसे भी सिवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्योहार ईद की खुशी रोजेदारों के त्याग, तपस्या और इबादत से जुड़ी है। वह जान जाता है कि सारी दुनिया अल्लाह की बनायी हुई है, सब प्राणियों में प्राण होते हैं, सभी को दुख-दर्द होते हैं, सभी को जीवन जीने का हक है। इन सद्भावनाओं के साथ रोजेदार ईद-उल-फितर की सौगात को पाता है।  ईद का सही मायने में हकदार कोई होता है तो वो है रोजेदार। माहे रमजान में रोजा रखने वाले तो दिल से यही चाहते हैं कि मुबारक माह रमजान कभी खत्म न हो। रमजान को अलविदा करते हुए अनेक रोजेदार उदास भी होते हैं मगर ईद की खुशी उन्हें यह अहसास करवा जाती है कि नेकी की तरफ बढ़ते चलें, बदी-गुनाह से हमेशा बचते रहें। ईद-उल-फितर अपने नेक मकसद के साथ विगत लगभग 1400 साल से चली आ रही है। ईद-उल-फितर के दिन शहर की ईदगाहों में ईद की नमाज शहर काजी के नेतृत्व में अता की जाती है। नमाज के बाद वतन और दुनिया में अमन-ओ-चौन की दुआ के लिए नमाजियों के हाथ खुदा की बारगाह में उठते हैं। मीठी ईद यानी ईद-उल-फितर के मौके पर सेवैया खीर और सेवैया से बने मीठे पकवान मेहमानों की आवभगत के लिये परोसे जाते हैं। ईद के दिन सिवइयों या शीर-खुरमे से मुंह मीठा करने के बाद छोटे-बड़े, अपने-पराए, दोस्त-दुश्मन गले मिलते हैं तो चारों तरफ मोहब्बत ही मोहब्बत नजर आती है। एक पवित्र खुशी से दमकते सभी चेहरे इंसानियत का पैगाम माहौल में फैला देते हैं। 


30 रोजे का इनाम है ईद 

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कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं, तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को ईद कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल फितर का नाम देते हैं। इस्लाम में खुशी के मौके पर भी दूसरों को भूलने का रिवाज नहीं है। ईद-उल-फितर में ईद की नमाज अता करने से पहले-पहले फितरा अदा करना अति आवश्यक है। साधन संपन्न और खुशहाल इनसान अपनी कमायी का एक हिस्सा गरीब, यतीम, विकलांग, बीमार, जरूरतमंद, पुरुष-महिला, विधवा आदि को फितरे के रूप में देगा ही। परिवार का मुखिया अपना, अपनी पत्नी, मां-बाप, बच्चे और नौकर-नौकरानी के बदले फितरा देता है। फितरे के रूप में नगद राशि, अनाज, चावल, धान, नए वस्त्र, कंबल, दवाइयां दी जा सकती हैं। यदि किसी परिवार में एक सदस्य है या किसी परिवार में दस सदस्य हैं तो हरेक महिला-पुरुष-बच्चे की तरफ से परिवार प्रधान को फितरा देना जरूरी है। यदि फितरा अदा नहीं किया जायेगा तो नमाज का सवाब नेकी का बदला कतई नहीं मिलेगा। अल्लाह से दुआएं मांगते व रमजान के रोजे और इबादत की हिम्मत के लिए खुदा का शुक्र अदा करते हाथ हर तरफ दिखाई पड़ते हैं और यह उत्साह बयान करता है कि लो ईद आ गई। 


तोहफों का आदान-प्रदान 

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रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही दसवां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार वर्ष भर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल फितर का ऐलान होता है। इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को अल्फा कहा जाता है। रमजान माह के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है, ताकि इंसानों को भूख-प्यास का महत्व पता चले। भौतिक वासनाएं और लालच इंसान के वजूद से जुदा हो जाए और इंसान कुरआन के अनुसार अपने को ढाल लें। इसलिए रमजान का महीना इंसान को अशरफ और आला बनाने का मौसम है। पर अगर कोई सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करे और उसके बंदों से मोहब्बत करने व उनकी मदद करने से हाथ खींचे तो ऐसी इबादत को इस्लाम ने खारिज किया है। क्योंकि असल में इस्लाम का पैगाम है- अगर अल्लाह की सच्ची इबादत करनी है तो उसके सभी बंदों से प्यार करो और हमेशा सबके मददगार बनो। यह इबादत ही सही इबादत है। यही नहीं, ईद की असल खुशी भी इसी में है। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढिया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। 


सिवईयों की मिठास 

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सेवईं इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को जकात उल-फितर कहते हैं। यह दान दो किग्रा कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किग्रा का मूल्य भी। प्रार्थना से पहले यह जकात गरीबों में बांटा जाता है। इस ईद में मुसलमान 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है). पहला ईद उल-फितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। मीठी ईद भी कहा जाने वाला यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परम्परा का वाहक है। इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और सेवइयां अमूमन उनकी तल्खी की कड़वाहट को मिठास में बदल देती है। 


इत्र लगाना शुभ 

ईद के दिन लोग सुबह-सुबह उठकर स्नानादि करके नमाज पढ़ने जाते हैं. जाते समय सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना शुभ माना जाता है। सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी माना जाता है। नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी रिवाज है। नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं। ईद पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे खिलाकर लोग अपने रिश्तों की कड़वाहट को खत्म करते हैं। इस दिन “ईदी” देने का भी रिवाज है। हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रकम को ईदी कहते हैं। ईद-उल-फितर समाज में भाईचारे को बढ़ाता है और भारत जैसे देश में जहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहते हैं वहां ईद-उल-फितर समाज में एकता बढ़ाने का बहुत अच्छा काम करता है। ईद की नमाज अदा करने से पहले मीठा खाकर निकलें और वापसी में दूध में भिगोया छुहारा खाएं. 


सुन्नत 

ईद-उल-फितर में 13 चीजें सुन्नत हैं। मस्जिद जाने के क्रम में ‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा, इल्ललाहु, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द’ कहना चाहिए। नमाज के बाद सबसे गले मिलें और सेवइयां खिलाएं। ईद के दिन की सुन्नतें इस तरह हैं- 1. शरीयत के मुताबिक खुद को सजाना 2. गुस्ल करना 3. मिस्वाक करना 4. अच्छे कपड़े पहनना 5. खुशबू लगाना 6. सुबह जल्दी उठना 7. बहुत सवेरे ईदगाह पहुंच जाना 8. ईदगाह जाने से पहले मीठी चीज खाना 9. ईद की नमाज ईदगाह में अदा करना 10. एक रास्ते से जाकर दूसरे रास्ते से वापस आना 11. पैदल जाना 12. रास्ते में धीरे-धीरे तकबीर पढ़ना। यूं तो मीठी ईद और सिवइयां एक दूसरे के पर्याय हैं। लेकिन इसके अलावा और भी कई व्यंजन इस त्योहार पर बनते हैं। ईद के बाजारों में सिवइंयों के दिल लुभाते ढेरों के अलावा शीरमाल, बाकरखानी, अंगूरदाना वगैरह भी खूब बनते हैं। साथ ही घरों में मांसाहारी व्यंजन भी बनते हैं। सिवइयां मशीन से भी बनती हैं और हाथ से भी। यह मैदे की होती है। जब इसे दूध और मेवे के साथ बनाया जाता है तो यह शीर-खुरमा कहलाता है। शीर यानी दूध, खुरमा या कोरमा यानी कि सूखे मेवे का मिक्चर। इसमें खोपरा, किशमिश, छुहारा, काजू आदि शामिल रहते हैं। इसे मीठे दूध में भीगी सिवइयों पर सजाया जाता है।  


खुल जाते है जन्नत के दरवाजे 

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रहमतों, बरकतों व गुनाहों की माफी पाने का महिना है रमजान। इस महीनें की दिन व रातें दुसरे महिने से ज्यादा अफजल व अतबर है। नबी-ए-करीब हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहोअलैहवसल्लम का फरमान है कि रमजान की पहली रात से ही जन्नत के दरवाजे खुल जाते है व जहन्नम के दरवाजे बंद कर शैतानों को जकड़ दिए जाते है। पूरी दुनिया में फैले इस्लाम धर्म के लिए रमजान का पवित्र महीना एक उत्सव होता है। इस्लाम धर्म की परंपराओं में रमजान माह का रोजा हर मुसलमान खासतौर पर युवा मुसलमान के लिए जरूरी फर्ज होता है। उसी तरह जैसे 5 बार की नमाज अदा करना जरूरी है। रमजान महीने की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं। रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था। अगर इंसान सिर्फ अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करे तो दुनिया से बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी. रमजान का छुपा संदेश भी यही है। फजर की आजान से पूर्व खाने-पीने तथा संभोग से सुर्य के डुबने तक रुके रहने का नाम रोजा है। रोजा की असल हकीकत यह कि मानव हर तरह की बुराई, झूठ, झगड़ा-लड़ाई, गाली गुलूच, गलत व्यवहार और अवैध चीजो से अपने आप को रोके रखे ताकि रोजे के पुण्य उसे प्राप्त हो, जैसा कि रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है” जो व्यक्ति अवैध काम और झूठ और झूठी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई आवश्यकता नही कि वह भूखा-प्यासा रहे”। या यूं कहें रमजान अच्छे कार्यो, व्रत, समर्पण, दया, ईमानदारी, क्षमा और प्रायश्चित का महीना है। विश्व के चौथे सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देश भारत के तकरीबन 17 करोड़ मुसलमान समर्पण और पूरे उत्साह के साथ रमजान का महीना मना रहे हैं। रमजान न सिर्फ मुस्लिम बल्कि पूरी मानवता के लिए एक मार्गदर्शक है। यह इंसान को आत्म नियंत्रण की सीख देता है। 






--सुरेश गांधी--

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