विचार : आरक्षण पर बेबाक चर्चा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 17 मई 2022

विचार : आरक्षण पर बेबाक चर्चा

एक उदाहरण - पिछले 32 वर्षों से दतिया के कलेक्टर बंगला के पास एक वृक्ष के नीचे जूते चप्पल की मरम्मत व पॉलिश करने वाला एक व्यक्ति काम करता रहा, धूप व बरसात में वह छाता लगा कर बैठता और रुखी रोटी अचार के साथ खाते मैंने उसे देखा है। अनेकों आरक्षित कोटे के कलेक्टर आए और चले गए। किसी की नजर उस गरीब पर नहीं पड़ी। फिर वह बुड्ढ़ा हो गया, नगर के सुन्दरीकरण वह फुटपाथ निर्माण के कारण प्रशासन ने उसे वहां से हटा दिया। ऐसा एक नहीं है, सड़क किनारे, दूरदराज गांवों में करोड़ों हैं।  प्रश्न तो यह है कि देश के करोड़ों ऐसे ही दलित व उपेक्षित का उत्थान कब होगा ? ये कैसा आरक्षण ? क्रीमी लेयर वालों, जरा उन पर भी ध्यान दो जो सही में दलित व उपेक्षित हैं | आरक्षण का उद्देश्य क्या है ? यही कि जो दलित व उपेक्षित हैं, उनका उत्थान होना है। हम कब मानेंगे कि क्रीमी लेयर वालों का उत्थान हो चुका है ? डॉ. अम्बेडकर ने क्या कहा था, कि 'यह आरक्षण व्यवस्था सिर्फ 10 वर्षों के लिए ही है। यदि यह आगे बनी रही तो आरक्षित समुदाय अपंग हो जाएगा' उनका सोचना था कि आरक्षण व्यवस्था, आरक्षितों की बैसाखी नहीं बनना चाहिए, इन्हें अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए। डॉ. अम्बेडकर समाज सुधारक थे। वह आरक्षण व्यवस्था को चुनावी टूल नहीं बनाना चाहते थे। लेकिन अफसोस है कि 72 वर्षों में भी हमने आरक्षितों को सिर्फ वोट-बैंक माना। सच तो यह है देश में लड़ाई योग्य और अयोग्य की, गरीबी और अमीरी की, निर्बल और सबल की, शरीफ और गुण्डे की, बेईमान और ईमानदार की है। ध्यान करना होगा कि सवर्ण में भी अयोग्य हो सकते हैं, और आरक्षितों में भी योग्य हो सकते हैं। लेकिन यदि हम जाति के आधार पर आरक्षण करेंगे, तो निश्चित ही जाति के आधार पर ही योग्यता और अयोग्यता नापी जाती रहेगी। यह तो उचित नहीं है। जातिगत आरक्षण समाज में दूरियां, द्वेष, भेदभाव, वैमनस्यता स्थापित कर रहा है।  हमें एक समय सीमा सुनिश्चित करना होगी और समय-समय पर आकलन करना होगा कि अन्तिम छोर पर बैठे व्यक्ति को हम सबल व सक्षम बना पाए या नहीं ? यही तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद है। परन्तु यदि जाति के आधार पर आरक्षण व्यवस्था चलती रही तो हम अन्तिम छोर पर बैठे दीन-हीन तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। वह दीन-हीन सवर्ण भी हो सकता है। फिर यह भी तो देखिए कि आरक्षित वर्ग का हिस्सा तो क्रीमीलेयर वाले खा रहे हैं।


आरक्षण की दुर्दशा देखिए, कि जो आरक्षित लाखों करोड़ों रुपए का धनार्जन किए हैं, कलेक्टर, एस.पी. आदि उच्च पदों पर हैं, वे भी दलित व उपेक्षित माने जाते हैं, उनके बच्चे हाई प्रोफाइल स्कूलों में पढ़ रहे हैं, लेकिन फिर भी उन्हें गरीब पिछड़ा और सवर्णों के अत्याचार का मारा हुआ माना जा रहा है। यह कौन सी लौजिक है भाई ? प्रश्न तो यह है कि वो, जो लाखों रुपए अर्जित कर रहै हैं, उच्च पद पर आसीन है ! सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त हैं, फिर भी उन्हें दलित व पिछड़ा क्यों मान रहे हो ? यह कैसा न्याय ? क्या यह वास्तविक रूप में दलित, पीड़ित के हिस्से पर अतिक्रमण नहीं है ? इसी बात को तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण की व्यवस्था में से क्रीमी लेयर को हटाओ। तभी तो दलित व उपेक्षित को अवसर मिल पाएगा। प्रश्न यह है कि आरक्षण की कभी समाप्त नहीं होने वाली, योग्य युवकों के केरियर को नष्ट करने वाली यह व्यवस्था आखिर कब तक चलेगी ?  मैं कहना चाहूंगा उन सवर्णों व अनारक्षित युवाओं को कि अपनी योग्यता को किन्हीं सरकारी नौकरी की गुलामी की जंजीरों में सीमित नहीं रखना है। क्यों न आप वो बने कि आप ही दूसरों को नोकरी दें !! क्या अम्बानी परिवार, बिड़ला परिवार, टाटा परिवार, और ऐसे करोड़ों छोटे-बड़े स्वव्यवसायी परिवारों के लोग किसी दो कौड़ी की नोकरी के मौहताज हैं ? नहीं न ! आप में वो योग्यता है कि आप नए-नए अविष्कार कर सकते हैं, स्वरोजगार की संभावनाएं तलाश कर सकते हैं। आपकी योग्यता में वो शक्ति है कि सरकार को मजबूर कर दो कि हम से ही आप हैं, हम से ही आप का वजूद है, हम से ही आप की अर्थव्यवस्था है। मुझे तो लगता है कि निजीकरण की नीति जो चल रही है, उससे योग्यताएं अपना स्थान प्राप्त करेंगी। अतः जातिगत आरक्षण समाप्त करो, आर्थिक आधार लागू करो, तभी अन्तिम छोर पर बैठे निरीह उपेक्षित का हम उत्थान कर पाएंगे। युवाओं की भुजाओं में कब फड़केगी जवानी, अरे पुरुषार्थी बनो कि लोग सुनाएं तुम्हारी कहानी। 




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राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक दतिया (म.प्र.) 

फोन-07522-238333, 9425116738, 6267533320 

email- rajendra.rt.tiwari@gmail.com

नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक  आध्यात्मिक विषयों के चिन्तक व समालोचक हैं। तिवारी जी की दो पुस्तकें, ’’मृत्यु कैसे होते है ? फिर क्या होता है ?’’ तथा ’’आनंद की राह’’ प्रभात प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हो चुकीं हैं।

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