राजद्रोह कानून को पर जवाब देने के लिए केंद्र ने न्यायालय से समय मांगा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 3 मई 2022

राजद्रोह कानून को पर जवाब देने के लिए केंद्र ने न्यायालय से समय मांगा

center-demand-time-in-sc
नयी दिल्ली, तीन मई, केंद्र ने राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय से समय मांगा है। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था और कहा था कि वह पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी तथा स्थगन के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी। अदालत के समक्ष दायर एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे का मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है। शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया। भादंसं की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता "कानून का दुरुपयोग" है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या "आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की आवश्यकता है ?" प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, “यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है ?’’ अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा तथा छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: