स्पीकर ने उत्कृष्ट विधायक और विधान सभा पर विमर्श के लिए प्रस्ताव रखने का आग्रह संजय सरावगी से किया। उन्होंने इस पर लंबा-चौड़ा भाषण दिया। भाषण पूरा होते-होते भाजपा विधायकों की संख्या 35-40 तक पहुंच गयी थी। इस बीच हम सत्ता पक्ष की लॉबी में गये तो जदयू के कोई सदस्य नहीं थे। इसके बाद श्रवण कुमार के कमरे के पास पहुंचे तो पता चला कि सभी विधायक यहीं बैठे हैं, हालांकि स्वयं श्रवण कुमार मौजूद नहीं थे। सदन से जदयू की अनुपस्थिति को लेकर मीडिया का पारा चढ़ने लगा था। सरकार के भविष्य को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे। उधर, विपक्षी लॉबी में विधायक भी जदयू के रवैये से हमप्रभ थे। विधायकों की अनुपस्थिति के बीच लोजपा रिटर्न जदयू विधायक राज कुमार सिंह ने सदन में जाकर कोरम का सवाल उठाया, लेकिन भाजपा के ‘मॉनीटर’ जनक सिंह ने उनके दावे को खारिज कर दिया। हालांकि बाद में राजकुमार सिंह के दावे को आधार बनाकर स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को बुधवार तक के लिए स्थगित कर दिया। इसके साथ ही स्पीकर ने अप्रत्यक्ष रूप से जदयू विधायकों की अनुपस्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद बताया। राजनीतिक गलियारे में चर्चा के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और उत्कृष्ट विधायक जैसे विषयों पर सदन में चर्चा को लेकर जदयू खेमा नाखुश था। सोमवार को विपक्षी दलों के हंगामे के कारण जलवायु परिवर्तन विषय पर चर्चा नहीं हो सकी थी, लेकिन मंगलवार को भोजनावकाश के बाद विपक्ष सदन में गया ही नहीं। सरकार को समर्थन दे रही भाजपा के आधे सदस्य ही मुश्किल बहस के दौरान मौजूद थे, जबकि असली सत्तारूढ़ दल जदयू ने ही सदन का बहिष्कार कर दिया। माना जा रहा है कि सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर नीतीश कुमार ने भाजपा को संदेश दे दिया है कि स्पीकर की व्यवस्था से वे खुश नहीं हैं। भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ है, जब सत्तारूढ दल ने ही सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। इससे इतना तय हो गया है कि भाजपा और जदयू की लड़ाई अब सदन तक पहुंच गयी है। लेकिन इस लड़ाई की परिणति सरकार गिरने या बनने के रूप में नहीं होने जा रही है। इसलिए विपक्ष को इस ‘मथफुटव्वल’ से खुश नहीं होना चाहिए।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार, पटना ---
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