झारखंड ,16 जून, विजय सिंह ,लाइव आर्यावर्त, इन दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार की किरकिरी राज्य की नियति बनती जा रही है। कभी महँगी कार खरीदने के लिए तो कभी खदान लीज के मुद्दे पर राज्य सरकार विपक्ष के निशाने पर रही है। अब विगत शुक्रवार 10 जून को रांची में घटित हिंसक उपद्रव के ताजा मामले में भी हेमंत सोरेन नीत झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की झारखंड सरकार के एक आदेश ने विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका दे दिया है। दरअसल 10 जून को शुक्रवार की नमाज के बाद रांची में भड़के हिंसक उपद्रव के आरोपियों की पहचान के लिए रांची पुलिस ने संदिग्धों की तस्वीर व अन्य विवरण सहित पोस्टर लगाए थे ,ताकि उपद्रव के दोषियों की शिनाख्त कर उन पर कानूनी कार्यवाई की जा सके। हालाँकि पोस्टर लगाने के कुछ ही देर बाद 'अज्ञात प्रभाव ' के कारण रांची पुलिस ने अपनी साख बचाते हुए ' संशोधन ' का हवाला देकर पोस्टर हटा दिया था लेकिन ' संशोधन ' की असली कहानी तब सामने आई जब झारखंड सरकार के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का के हस्ताक्षर से झारखंड सरकार के गृह ,कारा व आपदा विभाग द्वारा 15 जून को एक पत्र ( पत्र संख्या -08 /( विविध ) 01-14 /2022 -2489 ) रांची के वरीय आरक्षी अधीक्षक सुरेंद्र कुमार झा को भेजा गया जिसमें उन्हें अगले दो दिनों के अंदर पोस्टर लगाए जाने के विरुद्ध में स्पष्टीकरण देने को कहा गया है।झारखंड के पूर्व नगर विकास मंत्री और रांची के भाजपा विधायक सी.पी.सिंह ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बेबस बताते हुए सरकार के इस कृत्य को झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के तुष्टिकरण की राजनीति की संज्ञा दी है।राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने,अपराध व उपद्रवियों पर नियंत्रण के लिए रांची पुलिस द्वारा उठाये गए कदम को सही करार देते हुए रांची सहित जमशेदपुर व राज्य के अन्य शहरों के आमजनों सहित ट्विटर पर भी लोगों ने रांची पुलिस को हतोत्साहित करने के लिए इस आदेश को तुष्टिकरण मानते हुए झारखंड सरकार की निंदा की है।
गुरुवार, 16 जून 2022
झारखंड : हेमंत सोरेन सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप
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