श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे 13 जुलाई को पद छोड़ेंगे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 10 जुलाई 2022

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे 13 जुलाई को पद छोड़ेंगे

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कोलंबो 09 जुलाई, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अगले सप्ताह 13 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। श्रीलंका संसद के अध्यक्ष महिंदा अभयवर्धन ने शनिवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि श्री राजपक्षे अगले सप्ताह पद छोड़ने के लिए सहमत हो गये हैं। इससे पहले प्रदर्शनकारियों के श्री राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे से इस्तीफे की मांग को लेकर आज श्री राजपक्षे के सरकारी आवास पर हमला बोल दिया था जिससे उन्हें भागने के लिए मजबूर कर दिया गया था। प्रदर्शनकारियों की भीड़ से बचने के लिए और आवास पर कब्जा होने के बाद विचित्र सी स्थिति उत्पन्न हाे गयी है। श्री अभयवर्धन ने एक टेलीविज़न बयान में घोषणा की, कि,“एक शांतिपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए, राष्ट्रपति ने कहा कि वह 13 जुलाई को पद छोड़ देंगे।” उन्होंने कहा कि हालांकि श्री राजपक्षे बुधवार तक राष्ट्रपति बने रहेंगे ताकि सत्ता का सुचारू हस्तांतरण सुनिश्चित किया जा सके। यह घोषणा तब हुई जब प्रदर्शनकारियों ने राजधानी कोलंबो में राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया और देश के गहराते आर्थिक संकट पर अपना गुस्सा निकालने के लिए उस पर कब्जा कर लिया। बाद में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास में भी तोड़फोड़ की और आग लगा दी। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने शाम को उनके कोलंबो स्थित घर में प्रवेश किया। यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो सका कि वह उस समय अंदर थे या नहीं। श्री विक्रमसिंघे ने पहले घोषणा की थी कि वह भी राजनीतिक नेताओं द्वारा उनके और राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के पद छोड़ने के आह्वान के जवाब में इस्तीफा दे देंगे, क्योंकि हजारों लोग देश के आर्थिक तथा राजनीतिक संकट पर अपना रोष निकालने के लिए राजधानी में आए थे। पर श्री विक्रमसिंघे ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि नई सरकार बनने से पहले वह पद नहीं छोड़ेंगे, इससे नाराज भीड़ उनके घर के पास जाकर उनके तत्काल जाने की मांग करने लगी। श्री विक्रमसिंघे ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति को एक सर्वदलीय सरकार बनाने का सुझाव दिया, लेकिन श्री राजपक्षे के ठिकाने के बारे में कुछ नहीं कहा। संसद में विपक्षी दल नई सरकार के गठन पर चर्चा कर रहे थे। श्री राजपक्षे ने श्री विक्रमसिंघे को मई में प्रधानमंत्री के रूप में इस उम्मीद में नियुक्त किया था कि नियुक्त राजनेता अपनी कूटनीति और संपर्कों का उपयोग एक ढहती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए करेंगे। लेकिन लोगों का धैर्य कमजोर होता गया क्योंकि ईंधन, दवा और रसोई गैस की कमी बढ़ गई तथा देश का तेल भंडार सूख गया। इस प्रकार देश अब तक के सबसे गंभीर आर्थिक संकट में डूबा हुआ है। 

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