संपादकीय : आज़ादी का अमृत महोत्सव, बहुत कुछ करना है अभी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 अगस्त 2022

संपादकीय : आज़ादी का अमृत महोत्सव, बहुत कुछ करना है अभी

विजय सिंह ,15 अगस्त।

Amrit–mahotsav
देश की आज़ादी का अमृत काल है। देश के नागरिकों के लिए यह गर्व का समय है। आज़ाद भारत में जन्में हम सौभाग्यशाली हैं ,जिन्हें देश की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे कर 76 वें वर्ष में प्रवेश करते देखने का सुखद अवसर मिल रहा है। गौरवान्वित तो वे हो रहे होंगें जो आज़ादी के पहले जन्में ,जिन्होंने आज़ाद भारत का सपना देखा था ,गुलामी की जंजीरों से बाहर निकल कर एक फलते -फूलते -खिलखिलाते हिंदुस्तान का कभी ख्वाब सजाया था ,आज उस हकीकत को तेज कदमों से आगे बढ़ते देखना नवजात शिशु को हर दिन बढ़ते हुए देखने के समान अतुलनीय सुख प्राप्ति जैसा है। बढ़ते कदमताल के लिए मूल शक्ति श्रोत देश की 140 करोड़ जनता के साथ अपने अपने समय में किये गए कार्यों के लिए प्रारंभिक नेतृत्व से लेकर वर्तमान नेतृत्व तक साधुवाद के पात्र हैं। तरक्की की परिभाषा के हिसाब से देखें तो हमने इस 75 वर्षों में काफी कुछ मंजिले तय की हैं ,बहुत कुछ पाया है, पूरी दुनिया में भारत का लोहा मनवाने में सफल हुए हैं ,देश के मान सम्मान मर्यादा को आगे बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। संस्कृति से संस्कार ,विज्ञान से अभिनय, कला से स्वास्थ्य ,शिक्षा से स्वच्छता ,कारखानों से आई टी हब और बाजार से लेकर आभाषी व्यापार तक में हम वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल रहे हैं। सरकार की माने तो रोटी,कपड़ा और मकान समाज के अंतिम पायदान में बैठे लोगों तक पहुँचाने में उन्होंने बेहतर उपलब्धि हासिल की है। सही है कि सरकार की कई महत्वाकांक्षी जनोपयोगी योजनाएं प्रभावी हैं और उनका लाभ भी लोगों को मिल रहा है ,आंकड़ें कम या ज्यादा हो सकते हैं। इसके बावजूद अभी भी हमें  मीलों की दूरी तय करनी बाकी है। जिस देश ने आज़ादी के शानदार 75 वर्ष का सफर तय किया हो ,वहां आज भी चुनावों में बिजली , पानी और सड़क मुद्दे बनते हों ,चुनावी घोषणा पत्रों में शिक्षा,स्वास्थ्य व बेरोजगारी के मुद्दे या तो गौण हों या निचली प्राथमिकता में शामिल हों  तो यह सोचनीय जरूर है। धर्म,जाति ,वर्ग ,मंदिर ,मस्जिद के नाम पर आपसी वैमनस्य बढ़ता हो ,भाईचारे को ठुकराया जाता हो तो यह जरूर विचारणीय विषय है। प्रगति तो समभाव ,सद्भाव का रस लेकर आती है, फिर एक ही शहर ,एक ही मोहल्ले में रहने वालों के बीच झंझट कैसा ? ताकतवर हैं तो उन्हें सहारा दीजिये न जो किन्हीं कारणों से  पीछे छूट गए हों ,सम्भालिये न उनका हाथ ,साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज पर। नकारिये न उन शक्तियों को जो हमारी एकता अखंडता में बाधक बनते हों। आवाज उठानी है तो सकारात्मक प्रयास की पहल के साथ ,उठाईये न आवाज शिक्षा ,बेरोजगारी और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए।  राजनीतिक पार्टियां भी यदि लोगों से सकारात्मक रूप से जुड़ने का काम करेंगीं तो समाज में भी सकारात्मक सोच का वातावरण विकसित होगा। आम जनों को भी जाति, मजहब ,क्षेत्र,वर्ग से ऊपर उठकर सोचना होगा। सोचना होगा कि अगले 25 वर्षों में आज़ादी के सौवें साल ( शताब्दी वर्ष ) के सफर में हम अपनी भूमिका बेहतर ढंग से कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं। अगले 25 वर्षों में भूख , बेरोजगारी ,उपचार ,अशिक्षा को गुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त करा कर ही हम दम लेंगे ,इसका प्रण लेना होगा।    

सोचिए और तय कीजिए ,सफर अब भी लंबा बाकी है।  

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