ग़ुलामी का प्रतीक राजपथ इतिहास हो गया : मोदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

ग़ुलामी का प्रतीक राजपथ इतिहास हो गया : मोदी

ajpath-symbol-of-slavery-has-become-history-modi
नयी दिल्ली, 08 सितम्बर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजपथ की भावना और उसकी संरचना को गुलामी का प्रतीक करार देते हुए कहा कि गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानी राजपथ आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है एवं कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है। श्री मोदी ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन करने के बाद लोगों को सम्बोधित करते हुए आज कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में देश को आज एक नयी प्रेरणा मिली है, नयी ऊर्जा मिली है। आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। आज जो हर तरफ ये नई आभा दिख रही है, वो नए भारत के आत्मविश्वास की आभा है। उन्होंने कहा “ गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है। मैं सभी देशवासियों को आजादी के इस अमृतकाल में, गुलामी की एक और पहचान से मुक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।” उन्होंने कहा कि आज इंडिया गेट के समीप हमारे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विशाल मूर्ति भी स्थापित हुई है। गुलामी के समय यहाँ ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी।आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक, सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है। उन्होंने कहा कि सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि, पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विज़न था। उनमें नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियाँ थीं। प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया।


उन्होंने कहा कि उस वक्त सुभाष बाबू ने कल्पना की थी कि लाल किले पर तिरंगा फहराने की क्या अनुभूति होगी। इस अनुभूति का साक्षात्कार मैंने स्वयं किया, जब मुझे आजाद हिंद सरकार के 75 वर्ष होने पर लाल किले पर तिरंगा फहराने का सौभाग्य मिला। पिछले आठ वर्षों में हमने एक के बाद एक ऐसे कितने ही निर्णय लिए हैं, जिन पर नेता जी के आदर्शों और सपनों की छाप है। नेताजी सुभाष, अखंड भारत के पहले प्रधान थे जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था। उन्होंने कहा कि आज भारत के आदर्श अपने हैं, आयाम अपने हैं। आज भारत के संकल्प अपने हैं, लक्ष्य अपने हैं। आज हमारे पथ अपने हैं, प्रतीक अपने हैं।आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्यपथ बना है। आज अगर जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है।आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों क़ानूनों को बदल चुका है। भारतीय बजट, जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था, उसका समय और तारीख भी बदली गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है। श्री मोदी ने कहा कि कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है। यह भारत के लोकतान्त्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है। यहाँ जब देश के लोग आएंगे, तो नेताजी की प्रतिमा, नेशनल वार मेमोरियल, ये सब उन्हें कितनी बड़ी प्रेरणा देंगे, उन्हें कर्तव्यबोध से ओत-प्रोत करेंगे। उन्होंने कहा कि राजपथ ब्रिटिश राज के लिए था, जिनके लिए भारत के लोग गुलाम थे। राजपथ की भावना भी गुलामी का प्रतीक थी, उसकी संरचना भी गुलामी का प्रतीक थी। आज इसका आर्किटैक्चर भी बदला है, और इसकी आत्मा भी बदली है। प्रधानमंत्री ने कहा , “ इस अवसर पर, मैं अपने उन श्रमिक साथियों का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिन्होंने कर्तव्यपथ को केवल बनाया ही नहीं है, बल्कि अपने श्रम की पराकाष्ठा से देश को कर्तव्य पथ दिखाया भी है।” उन्होंने कहा कि इसके निर्माण कार्य में लगे श्रमिक अपने परिवार के साथ आगामी गणतंत्र दिवस पर कर्तव्यपथ पर उनके अतिथि होंगे। उन्होंने कहा कि नए भारत में आज श्रम और श्रमजीवियों के सम्मान की एक संस्कृति बन गई है, एक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। जब नीतियों में संवेदनशीलता आती है, तो निर्णय भी उतने ही संवेदनशील होते चले जाते हैं, इसलिए देश अब अपनी श्रम शक्ति पर गर्व कर रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं: