नयी दिल्ली, 20 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधन) अधिनियम, 2014 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) द्वारा आयोजित गुरुद्वारों पर नियंत्रण करने की हरियाणा सरकार की दलील को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है और अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा गया है। याचिकाकर्ता हरभजन सिंह ने उच्चतम न्यायालय में हरियाणा के कानून को यह तर्क देते हुए चुनौती दी थी कि राज्य विधानसभा में गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए एक निकाय बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसा अधिकारी केन्द्र के पास सुरक्षित है। याचिका में कहा गया था कि जल्दबाजी में कानून लागू करना न केवल संवैधानिक प्रावधानों और पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है, बल्कि सिख धर्म के अनुयायियों के बीच मतभेद भी पैदा कर सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह कानून सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1924, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 और साथ ही अंतरराज्यीय निगम अधिनियम, 1957 का का सरासर उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने दो सितंबर को मुख्य दो विपक्षी दलों-हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (एचएसजीएमसी) और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (एसजीपीसी) सहित सभी हितधारकों की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को हरियाणा के लिए एक अलग गुरुद्वारा प्रबंधन निकाय को लेकर 2014 में एक याचिका के बाद एचएसजीएमसी और एसजीपीसी के बीच कानूनी विवाद की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने 2014 में राज्य के लिए एक अलग गुरुद्वारा प्रबंधन इकाई बनाने के लिए एचएसजीएमसी अधिनियम पारित किया था। इसे एसजीपीसी के कुरुक्षेत्र के सदस्य हरभजन सिंह मसानन ने चुनौती दी थी, जो एसजीपीसी की कार्यकारी समिति (ईसी) का भी सदस्य भी है।
मंगलवार, 20 सितंबर 2022
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा गुरुद्वारा अधिनियम को बरकरार रखा
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