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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

विशेष : शोध आधारित प्राकृतिक खेती से आएगी खुशहाली : डॉ. एस. के. चौधरी

Natural-farming
भारत सरकार कृषि द्वारा आय बढ़ाने हेतु नित नए प्रयास कर रही है | इस हेतु खेती में नित नवीन नवाचार हेतु दृढसंकल्पित है | इसी क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना 'प्राकृतिक खेती’ में दीर्घकालीन शोध कर रहा है| प्राकृतिक खेती के विभिन्न अवयवों का उद्घाटन डॉ. सुरेश कुमार चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ | इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. चौधरी ने इस बात पर विशेष बल दिया की प्राकृतिक खेती पर शोध करके वैज्ञानिक आकड़े जुटाना महत्त्वपूर्ण है,जोकि भविष्य में प्राकृतिक खेती पर नीति निर्धारण में सहायक होगा | ज्ञात हो कि वर्तमान में भारत सरकार ने प्राकृतिक खेती पर विशेष जोर दिया है एवं किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जा रहा है। भारत सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों का सुखद परिणाम आना शुरू हो गए है एवं पूर्व की अपेक्षा किसानों का प्राकृतिक खेती के प्रति रुझान लगातार बढ़ता जा रहा है । डॉ. सुरेश कुमार चौधरी, उप महानिदेशक ने बताया कि यह संस्थान, पूर्वी क्षेत्र के लिए भूमि एवं जल ससांधनों के प्रबंधन, खाद्यान्‍न, बागवानी, जलीय फसलों, मात्स्यिकी, पशुधन और कुक्‍कुट, कृषि प्रसंस्‍करण तथा कृषकों के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर अनुसंधान कर रहा है |


भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना के निदेशक डॉ. आशुतोष उपाध्याय ने बताया कि यह परियोजना संस्थान अनुसंधान परिषद की बैठक में लिए गए निर्णयों के आधार पर हुआ है | डॉ. उपाध्याय ने यह भी बताया कि प्राकृतिक रासायनमुक्त खेती है, जिसमें केवल प्राकृतिक आदानों का उपयोग किया जाता है। साथ ही, कृषि-पारिस्थितिकी पर आधारित यह एक विविध कृषि प्रणाली है, जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, एवं जिससे कार्यात्मक जैव विविधता के इष्टतम उपयोग की सुविधा मिलती है ।विदित हो कि इस परियोजना की जिम्मेदारी संस्थान के डॉ. अनिल कुमार सिंह, प्रधान वैज्ञानिक को दी गई, जो इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक भी हैं। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती के साथ-साथ जैविक खेती, समेकित पोषण प्रबंधन एवं रासायनिक खेती के साथ इनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा । इस परियोजना से यह निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया जाएगा कि दीर्घकाल में बदलते जलवायु के परिप्रेक्ष्य में उपर्युक्त विभिन्न कृषि प्रणालियों में कौन सी कृषि प्रणाली बेहतर है और क्यों है। परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ.अनिल कुमार सिंह ने बताया  कि इस परियोजना की अवधि 6 वर्ष है एवं इस परियोजना में 11 सदस्यीय वैज्ञानिकों की टीम मिलकर काम कर रही है, जिसमें डॉ. मोनोब्रुल्लाह, प्रधान वैज्ञानिक (कीट विज्ञान); डॉ रचना दुबे, वैज्ञानिक (पर्यावरण विज्ञान); डॉ. पवनजीत, वैज्ञानिक (भूमि एवं जल प्रबंधन); डॉ. कीर्ति सौरभ, वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान); डॉ अभिषेक कुमार दुबे, वैज्ञानिक (पादप-रोगविज्ञान), डॉ. राकेश कुमार, वेज्ञानिक (पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन);  डॉ. रोहन कुमार रमण, वैज्ञानिक (कृषि सांख्यिकी); डॉ. वेद प्रकाश, वैज्ञानिक (कृषि मौसम विज्ञान) एवं डॉ. सोनाका घोष, वैज्ञानिक (शस्य विज्ञान) है।उद्घाटन कार्यक्रम में प्राकृतिक खेती के प्रमुख घटक बीजामृत, धनजीवामृत, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र एवंआग्नेस्त्र बनाया गया | मौके पर उक्त परियोजना से संबंधित वैज्ञानिकों के के साथ- साथ डॉ. पी. सी शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल हरियाणा; डॉ. जे.एस. मिश्र, निदेशक, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश ; डॉ. एच. एस. जाट, प्रधान वैज्ञानिक, केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा;डॉ. टी.के. दास, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली; डॉ. ए.के. विश्वास, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल, मध्य प्रदेश; डॉ. जी. प्रतिभा, प्रधान वैज्ञानिक, केन्द्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, तेलंगाना; डॉ. भगवती प्रसाद भट्ट, प्रधान वैज्ञानिक, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली सहित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के डॉ. उज्ज्वल कुमार, प्रभागाध्यक्ष, सामाजिक-आर्थिक एवं प्रसार; डॉ. ए.के. चौधरी, प्रभागाध्यक्ष, फसल अनुसंधान; डॉ. अतीकुर रहमान, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. नरेश चन्द्र, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. बिकास सरकार, प्रधान वैज्ञानिक; डॉ. राकेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक; डॉ. सुरजीत मंडल, वरिष्ठ वैज्ञानिक;  श्री प्रेम कुमार पाल, तकनीकी अधिकारी; श्री अभिषेक कुमार, प्रक्षेत्र प्रबंधक; श्री पी.के.सिंह, प्रक्षेत्र प्रबंधक आदि उपस्थित थे |

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