"द आर्ट सैंक्चुअरी" बढ़ा रहा दिव्यांग वयस्कों का मनोबल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

"द आर्ट सैंक्चुअरी" बढ़ा रहा दिव्यांग वयस्कों का मनोबल

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दिल्ली/ महिमा सिंह: ‘द आर्ट सैंक्चुरी’ यह एक बैंगलोर स्थित ट्रस्ट है, जिसने बीते माह अक्तूबर 2022 में (14 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक) नई दिल्ली में बौद्धिक रूप से अक्षम युवा वयस्कों (जिन्हें वैधानिक रूप से स्पेशल या दिव्यांग कहा जाता है) इस वर्ग के युवाओं द्वारा बनाई आर्ट वर्क, पेंटिंग, फोटो और कला का चौथा वार्षिक आयोजन किया गया. इस वार्षिक कला आयोजन का पूर्वावलोकन 13 अक्टूबर को किया गया. बौद्धिक रूप से विकलांग युवा वयस्कों के सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर उसी दिशा में काम करने के लिए समर्पित ट्रस्ट "द आर्ट सैंक्चुअरी" ने इस प्रदर्शनी ‘eCAPA 2022’ का आयोजन किया. जिसमें मानव समाज के द्वारा बर्गालाये गए इस समूह के बच्चों और युवा जिन्हें (अनदेखे और अनसुने) समाज अल्पसंख्य का दर्जा देकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेता है उसी वर्ग के युवा कलाकार द्वारा थोड़े से मार्गदर्शन से तैयार कुछ अविश्वसनीय पेंटिंग और आर्ट वर्क देखने को, समझने को मिला। इस प्रदर्शनी में इन दिव्यांग जनों ने अपने पारखी नजर और दुनिया को जैसे वो देखते हैं उसी रूप में तहे दिल से इस कला के नायाब तस्वीर का निर्माण किया। इस कला प्रदर्शनी में 47 न्यूरोडाइवर्स कलाकारों को उनकी 85 कलाओं के माध्यम से पेश किया गया. इस अद्वितीय प्रदर्शनी को देखने और कवर करने और बौद्धिक रूप से अक्षम युवा वयस्कों की दुनिया और कला कार्यों को साझा करने का मौका स्वस्थ भारत की स्पेशल रिपोर्टर महिमा सिंह को मिला. जिन्होंने तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से इन युवा कलाकारों के बेहतरीन कला को कवर किया और आप तक वीडियो और फोटो और कुछ शब्दों के माध्यम से पहुँचाने का एक छोटा प्रयास किया है. एक फिल्म का संवाद है जीवन लंबा नहीं बड़ी होनी चाहिए यह आनंद मूवी में राजेश खन्ना के किरदार अपने डॉक्टर से कहता है. वैसे ही यह युवा कलाकार भी अपनी कला के माध्यम से इस समाज और दुनिया को बताना चाहते हैं की वो भी सब कुछ कर सकते हैं जो एक युवा करता है उन्हें स्पेशल और दिव्यांग का स्टैटस नहीं चाहिए बस समाज से स्वीकार और एक अवसर चाहिए जो समाज हर नवयुवक और युवती को देता है। उन्हें खुद को बेहतर और मजबूत बनाने के लिए बस उतने ही मदद और सहायता की दरकार इन्हें भी है बाकि वो भी दुनिया को वैसे ही जीते और समझते हैं जैसे आम लोग करते है. 


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‘द आर्ट सैंक्चुअरी’ की ओर से 14 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक इस कला प्रदर्शनी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नई दिल्ली के छतरपुर इलाके में stir गैलरी में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जहां पर पत्रकारिता का मजबूत स्तम्भ कहा जाने वाले भारतीय जन संचार संस्थान और बड़े मीडिया समूह के पत्रकार और फोटोग्राफर और कलाकारों ने इन बच्चों को वर्क शॉप में फोटोग्राफी के गुण सिखाए और फाइन आर्ट की तस्वीरों को देखा और जिन युवा कलाकारों ने अपनी पेंटिंग इसमें साझा किया था उन्हें कला के अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर, बारीकियों पर कुछ ज्ञान भी साझा किया. जिस ट्रस्ट ने इस प्रदर्शनी का आयोजन किया उसका मानना है और जो एक सही मांग भी है कि ये कलाकार मुख्यधारा के किसी भी कलाकार की तरह ही सराहना पाने की ख्वाहिश रखते हैं, इन्हें वो महत्व और मौका मिलना भी चाहिए. जो इस मंच के द्वारा इन्हें दिया गया. यहाँ आने वाले हर आम और खास व्यक्ति ने इन पेंटिंग और कला के नायाब नमूनों को देखा युवा कलाकारों की सराहना की. जो भी यहाँ इस प्रदर्शनी में आया वो केवल सीखा कर नहीं, बहुत कुछ सिख कर भी गया। वो सिख थी हिम्मत और खुद को प्रस्तुत करने की चाहत और मजबूत इच्छा शक्ति. समाज और समुदाय को यह बताने की चाह कि हम भी किसी से कम नहीं बस मौका और सही मार्गदर्शन चाहिए। हम वो जादू कर सकते है जो एक कलाकार में होता है. यहाँ पर डाउन सिंड्रोम, ऑटिज़म और एडीएचडी, लर्निंग डिसएबेलिटी और अन्य डिसॉर्डर से ग्रस्त युवा कलाकारों ने अपनी कल्पना और कला का प्रदर्शन किया था. यह प्रदर्शनी में लगी तस्वीर को विविध मीडिया उपकरण जैसे पेन और पेपर, कैनवस पर तेल/ ऐक्रेलिक, फोटोग्राफ, डिजिटल कला और लघु फिल्मों के रूप में प्रदर्शित किया गया था. कला कृतियों का चयन प्रख्यात कलाकार बोस कृष्णमाचारी द्वारा हाथ से किया गया था. इस अनूठे कार्यक्रम का आयोजन डीएलएफ छतरपुर फार्म्स में स्टायर गैलरी के साथ किया गया, 13 अक्टूबर को इस प्रदर्शनी का पूर्वावलोकन शाम 7 बजे किया गया। एक बैंगलोर स्थित धर्मार्थ ट्रस्ट जिनके तीन प्रमुख संस्थापक सदस्य हैं, पहले श्री आलोक श्रीवास्तव, डॉ शालिनी गुप्ता और अन्य सदस्य भी है। जिन्होंने मिलकर यह ट्रस्ट बनाया और दिव्यांग जनों को वह अवसर और रुतबा देने का प्रयास शुरू किया। जिसका हर इंसान हकदार होता है। सैद्धांतिक रूप में बौद्धिक रूप से अक्षम कहे जाने वाले युवा वयस्कों की कलात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए कला सैंक्चूरी बनाया गया था। इसका अंतिम लक्ष्य उनका सामाजिक समावेश और आर्थिक सशक्तिकरण करना है। इस सामाजिक सस्थान ने इसके चौथे संस्करण का आयोजन किया. (वार्षिक कला प्रदर्शनी, eCAPA, नई दिल्ली में 13-16 अक्टूबर) कला सैंक्चुरी संस्थान के पिछले कार्यक्रम में 150 फाइन आर्ट और पेंटिंग पिक्चर को शामिल किया गया था जो बौद्धिक रूप से विकलांग युवा वयस्कों ने बनाया था। इस शो में उनके कला का ना केवल प्रदर्शन हुआ  बल्कि उनकी कला कृतियों के बिकने पर उनका उत्साह वर्धन भी हुआ और हर दिन ये युवा जीवन का जश्न मनाने के लिए प्रोत्साहित हुए। क्यूरेटिंग वर्कशॉप और कला प्रदर्शनियां जैसे कार्य विकलांग व्यक्तियों और युवा के कलात्मक कौशल को उन्नत करने के कुछ महत्वपूर्ण तरीके के रूप में ईजाद किया गया है। इन कार्यशालाओं और कला प्रदर्शनियों का आयोजन कला सैंक्चुरी द्वारा दृश्य और प्रदर्शन कला दोनों के लिए किया जाता है. 


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बीते 3 से 4 वर्षों में, द आर्ट सैंक्चुअरी’ ने फिल्म्स एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) पुणे जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थानों के साथ भागीदारी की है, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC) नई दिल्ली, नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट दिल्ली और इस साल इस यात्रा में विज़-ए-विज़/ एसटीआईआर गैलरी भी शामिल हुआ. अगर बात की जाए इस ट्रस्ट और इसके उद्देश की तो हाँ कला प्रदर्शनी, eCAPA, एक ऐसा मंच बन गया है जिससे हर डिसैबल युवा के कला और जीवन उत्साह के प्रदर्शन का मौका मिल रहा है, जिसमें न्यूरोडाइवर्स कलाकार भाग लेने की इच्छा रखते हैं. हर साल इसमें नए कलाकार जुडते हैं। उनको समाज से स्वीकार और प्रोत्साहन मिलता है। जिसके वो हकदार हैं यही तो तय उद्देश और लक्ष्य भी है इस कला प्रदर्शनी eCAPA और इस ट्रस्ट का. जिसने इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार किया है. अगर आप उन युवा कलाकारों के काम और उनके हौसले को देखना चाहते हैं तो स्वस्थ भारत डॉट इन के साइट पर अपलोड वीडियो और फोटो देखें। अगली बार जब यह प्रदर्शनी का आयोजन हो तो वहाँ जरूर जाएं ताकि आप देख सकें कि जिन्हें अक्षम और अशक्त कह कर समाज पल्ला झाड लेता है वो युवा जब रंग और सफेद कागज को एक साथ आपस में जोड़ते हैं तब क्या बेहतरीन कलाकृति और पेंटिंग उभरती हैं। 


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यही समस्या है हमारे समाज की कि ये बदलने और निरंतर बदलाव से डरता है. गीता में कहा गया है परिवर्तन प्रकृति का नियम है और स्वीकार, सहयोग, उपकार यह सब मां धरती के अहम गुण है जिसे मानव समाज सहज ही सीखता रहा है फिर उसी आवश्यक गुण और विशेषता को केवल किसी वर्ग की कुछ खास जिम्मेदारी ना लेने पड़े इसलिए उसे मुख्य धारा से जानबूझ कर पीछे धकेल दिया जाता है। इस पैटर्न को बदल कर सबको एक ही माली के बगिया के फूल मानकर अगर हम सबको साथ लेकर आगे बढ़ेंगे तब ही समाज एक विकसित और समग्र समाज बन सकेगा। स्वस्थ और मजबूत समाज के निर्माण में हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है कोई अलग दिखता है या अलग सोचता है इसलिए हम उन्हें समाज से बाहर नहीं कर सकते. मानव शरीर में हमारे हाथ की अंगुलिया एक समान नहीं, कोई छोटी है, कोई बड़ी हैं, कोई मध्यम है, कोई मोटी है, कोई पतली है, लेकिन जब सब एक साथ काम करती है तभी एक मनुष्य कुछ उठा सकता है, कुछ बना पाता है, कुछ खा पाता है. जीवन बहुआयामी है। उसे वैसे ही स्वीकार करना चाहिए. धरती से मिलने वाला हर जीवन योग्य वस्तु पर सभी का ना केवल मानव का बल्कि जीव जंतुओं का भी अधिकार है. यही सहअस्तित्व की भावना है. जीओ और जीने दो. जय हिन्द।

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