बिहार : “नफ़रत छोड़ो, संविधान बचाओ” के बैनर तले राष्ट्रव्यापी अभियान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 6 नवंबर 2022

बिहार : “नफ़रत छोड़ो, संविधान बचाओ” के बैनर तले राष्ट्रव्यापी अभियान

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पटना. आज रविवार को  “नफ़रत छोड़ो, संविधान बचाओ” के बैनर तले राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत, नफ़रत, साम्प्रदायिकता, दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हमले, आर्थिक असमानता, सरकारी संस्थाओं और प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण, बढ़ती गरीबी और भुखमरी, इलेक्टोरल बॉन्ड और अन्य मुद्दों पर देश भर के सभी जिलों में यात्राएं निकाली गयी.  इस अभियान के मद्देनजर पटना में आज 6 नवंबर को एक पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है.यह पदयात्रा पटना के जेपी गोलंबर से पटना सिटी के भगत सिंह चौक तक गयी.इसमें सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों,  पेशेवरों, और आम नागरिकों से यात्रा में शामिल  हुए. बताया गया कि हमारा देश ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद आजाद हुआ.हमारे संस्थापक पिताओं और माताओं के पास सांप्रदायिक सद्भाव, समानता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व और लोकतंत्र के मूल्यों पर आधारित भारत का एक दृष्टिकोण था, जो सभी संविधान में निहित थे. राष्ट्र विभाजन के अंगारों से उभरा, इसके तुरंत बाद गांधीजी की दुखद हत्या हुई. ये दोनों त्रासदियां धार्मिक घृणा और जहर का परिणाम थीं, जो हमारे समाज में धार्मिक दक्षिणपंथी और चरमपंथी संगठनों द्वारा व्यवस्थित रूप से फैलाई गई थी, जो कि फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति से सहायता प्राप्त और प्रेरित थी. फिर भी समय के साथ, भारत एक मजबूत जीवंत उदार धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में उभरा. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान ने मार्गदर्शक प्रकाश प्रदान किया। अब वही भारत, वही ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ खतरे में है. देश के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाने और नफरत का जहर फैलाने वाली विभाजनकारी ताकतों को हराने, स्वतन्त्रता आंदोलन के मूल्यों और संवैधानिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के लिए भारत के जन संगठनों ने नफरत छोड़ो, संविधान बचाओ अभियान की शुरुआत की है. जिसके माध्यम से हम लोकतंत्र, संविधान तथा देश बचाने के मकसद से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं। हम मानते हैं कि भाजपा-आरएसएस और कारपोरेट शक्तियों का गठजोड़ ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति के माध्यम से आम नागरिकों के रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, रोजगार, महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों की ओर से ध्यान हटाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के माध्यम से सत्ता में बने रहना चाहता है.


आज भारत का लोकतंत्र और संविधान एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है. देश में फासीवादी, कट्टरपंथी और दक्षिणपंथी ताकतों की उत्पत्ति और परिणामस्वरूप समाज में हिंसा में वृद्धि ने सबसे कमजोर और हाशिए के समुदायों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है.लिंग आधारित हिंसा और दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार तेजी से बढ़ रहे हैं.अल्पसंख्यकों पर हमलों ने भय और असुरक्षा का माहौल बना दिया है.देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने और लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने का एक व्यवस्थित षड्यंत्र जारी है.तथाकथित ‘धर्म संसदों’ में स्व-घोषित धार्मिक नेताओं, जिनमें कई सत्ताधारी दल से जुड़े हैं, ने खुले तौर पर मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान कर घृणास्पद भाषण देकर नफरत फैलाने का एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. धर्म को नागरिकता का आधार बनाकर, एनआरसी और एनपीआर के साथ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) ने भारत के संविधान की धर्मनिरपेक्ष संरचना को खतरे में डाल दिया है। अनुच्छेद 370 को निरस्त कर और जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को खत्म कर सरकार ने भारत के संविधान और संघवाद पर हमला किया है. पिछले कुछ वर्षों से देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला जारी है. न्यायपालिका और निगरानी की अन्य संस्थाओं की स्वतंत्रता गंभीर संकट में आ गई है और संसद के कामकाज के साथ गंभीर रूप से समझौता किया गया है.ईवीएम आधारित वोटिंग और वीवीपैट काउंटिंग, जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने का अधिकार नहीं देता है कि उनके वोट अपने इरादे के अनुसार डाले जाएं, डाले जाने के अनुसार रिकॉर्ड किए जाएं और रिकॉर्ड किए जाने के अनुसार गिने जाएं, ने लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया को विकृत कर दिया है. इलेक्टोरल बॉन्ड के साथ सरकार ने चुनावी चंदा में भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता को संस्थागत रूप दे दिया है, जिसने राजनीतिक दलों के लिए असीमित अज्ञात चंदा के द्वार खोल दिए हैं, जिससे निगमों को गुप्त रूप से सत्तारूढ़ दल के खज़ाने में काले धन को स्थानांतरित करने की अनुमति मिल गई है.इलेक्टोरल बांड के माध्यम से पार्टियों को मिले दस हजार करोड़ से ज्यादा के चंदे का 90% से अधिक भाजपा को मिला है. आज संविधान द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति- स्वातंत्र्य – बोलने, लिखने, खाने और पहनावे के अधिकार पर प्रत्यक्ष हमला जारी है. सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर किए जाने से नागरिकों के सरकार से सवाल करने और उसे जवाबदेह ठहराने के लोकतांत्रिक अधिकार पर प्रहार हुआ है.असहमति की आवाज़ को कुचल दिया गया है और उन्हें राष्ट्र-विरोधी करार दिया गया है.जहां कई राजनैतिक कैदी जेल में बंद हैं, वहीं डॉ.नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड गोविंद पानसरे, प्रो.कलबुर्गी, रोहित वेमुला, गौरी लंकेश, स्टेन स्वामी और पांडू जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है. सर्वोच्च न्यायालय तक ने न्याय की गुहार लगाने वाली तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार, संजीव भट्ट पर मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है तथा हिमांशु कुमार पर जुर्माना लगा दिया है.

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