
कटिहार. आज बाबरी मस्जिद के विध्वंश के दिवस है.30 साल पहले आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी विध्वंस के विवादित ढांचे को गिराया गया था.छह दिसंबर अयोध्या के इतिहास में एक ऐसी तारीख के रूप में याद की जाती है.आज बाबरी विध्वंस की बरसी है.इस अवसर पर कटिहार जिला में नफरत छोड़ो संविधान बचाओ यात्रा की शुरुआत हो रही है.वहीं बाबा साहब अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस भी है. उनको याद करें और संकल्प लें कि हम फासिस्ट ताकतों को जीतने नहीं देंगे. इससे पहले संविधान दिवस के अवसर पर जन जागरण शक्ति संगठन और जन आंदोलनों का रष्ट्रीय समन्वय के संयुक्त प्रयास से "नफरत छोड़ो संविधान बचाओ यात्रा" शुरूआत 26 नवम्बर से की गयी थी और 30 नवम्बर को समाप्त हुई थी.लड़ेंगे संविधान की रक्षा के लिए, बनाएंगे सावित्री बाई फुले, ज्योतिबा फुले, फातिमा शेख, रुकैया, बाबासाहेब, गांधी, नेहरु और भगत सिंह के सपनों का भारत! यह यात्रा अररिया के ग्रामीण इलाकों में 26 नवम्बर से 30 नवम्बर तक चली. जिसमें गीत, नाटक, पर्चा , बातचीत के माध्यम से लोगों को संविधान के प्रति जागरूक किया गया और उसमे निहित आपसी प्यार और भाईचारा का सन्देश लोगों तक पहुंचाया गया. साथ ही संविधान के मूल्यों पर चर्चा की गयी. ऐसा माना जाता हैं कि आज संविधान के मूल्यों पर भारी प्रहार हो रहा है . जातिवाद, नफरत, पितृसत्ता, दमन, भीड़ की हिंसा और हर प्रकार के शोषण को बढ़ावा दिया जा रहा है.केंद्र सरकार तो हद पार कर गयी है. एक ओर बलात्कार के जुर्म में सजा झेल रहे लोगों को रिहा कर रही है एवं उनके बेटे-बेटियों को पार्टी का टिकट दे रही है तो दूसरी ओर सरकार का विरोध करने वाले बुद्धिजीवियों, राजनीतिक दल के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमें में जेल भेज रही है. लखीमपुर खीरी में आन्दोलन कर रहे किसानों को केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री की गाड़ी रौंद देती जिसमे 4 किसान मर जाते हैं इस बात का सबूत है कि सत्ता निरंकुश हो गयी है. इसलिए इस यात्रा के माध्यम से हम लड़ेंगे संविधान की रक्षा के लिए और लोगों के साथ मिलकर संकल्प लिए एक ऐसा भारत बनाने के लिए जो सावित्री बाई फुले, ज्योतिबा फुले, फातिमा शेख, रुकैया, बाबासाहेब, गांधी, नेहरु और भगत सिंह और हमारे सपनों का भारत हो!
बता दें की चार साल पहले भी 50 किलोमीटर की यात्रा निकली थी.इस साल 26 नवंबर से 5 दिवसीय नफरत हटाओ संविधान बचाओ यात्रा की गयी.यात्रा अररिया बस स्टैंड से 26 नवंबर को दोपहर 1 बजे निकली.बताया गया कि "नफ़रत छोड़ो संविधान बचाओ यात्रा" 30 नवबंर को समाप्त हो गई. पांच दिन कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला.हर रोज हम सवेरे 4-5बजे सवेरे उठ जाता करते थे.20-25 यात्रियों को तैयार होने में समय लगता था.चाय पीकर, तकरीबन 7-7.30 बजे हम अगली पड़ाव की ओर निकल पड़ते थे.उसके बाद दिन भर में तीन जगह मीटिंग होती थी.सवेरे, दोपहर और फिर शाम. बैठक में 100 से लेकर 1000 लोगों का जमावड़ा होता था.वहां सांस्कृतिक टोली के द्वारा जबरदस्त प्रदर्शन किया गया.नाटक और गीत लोगों को बहुत पसंद आया. इस तरह का सांस्कृतिक कार्यक्रम विलुप्त सा हो गया है. पहले कुछ लोगों को लगता था कि नाच होगा , फिर कुछ देर में उनकी समझ में आता था.सबसे ज्यादा उत्साहित बच्चे दिखे. इतनी गरीबी में भी बच्चे मजा लेना जानते हैं, खुश रहना उनका सहज स्वभाव ही है.फिर हमारे पास कठपुतलियां भी थी जो जितेन भाई के निर्देशन में युवा साथियों ने बनाया था.गाने भी ज्यादातर जितेन भाई और शिवनारायण के लिखे हुए थे , वह भी अपनी बोली में जिसे हम ठेठी कहते हैं.हमारे पास अपना रिकॉर्ड किया हुआ ऑडियो भी था जो चलते वक्त बजता रहता .यात्रा में युवा और उम्रदराज महिलाओं का होना एक जबरदस्त संदेश देता था कि हमारी महिलाएं किसी से कम नहीं.उनका कॉन्फिडेंस , उनका चंदा मांगना, नाटक करना, खाना मांगना, गीत और नारा लेना सभी कुछ कई जंजीरों को तोड़ता हुआ जान पड़ता था.
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