मेरी हार्दिक इच्छा थी कि इस रामायण का पेपर-बैक-संस्करण भी प्रकाशित हो। केवल अनुवाद वाला अंश, ताकि कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ की भक्तिरस से परिपूर्ण वाणी अधिक-से-अधिक रामायण-प्रेमियों तक पहुँच सके। कश्मीरी पंडितों के (कश्यप-भूमि) कश्मीर से विस्थापन/निर्वासन ने इस समुदाय की साहित्यिक-सांस्कृतिक संपदा को जो क्षति पहुंचायी है, वह सर्वविदित है। कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ का यह पेपरबैक संस्करण इस संपदा को अक्षुण्ण रखने का एक विनम्र प्रयास है।लोकोदय प्रकाशन,लखनऊ के प्रति आभार व्यक्त करना अनुचित न रहेगा जिसने प्रकाशन के इस संकट के दौर में इस अनुपम पुस्तक को प्रकाशित करने के मेरे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया।कश्मीर की आदि संत-कवयित्री ‘ललद्यद’ (14वीं शती) पर भी इसी तरह का एक पेपरबैक संस्करण निकालने की योजना थी, जिसे वनिका प्रकाशन ने पूरा कर दिया। धार्मिक आस्था से जुडी हमारे देश की रामायण-परम्परा,विशेषकर ‘रामचरितमानस’को लेकर जो वितंडावाद इस समय देश में फैला हुआ है, उसके सन्दर्भ में कश्मीरी रामायण ‘रामावातारचरित’ की महिमा का उल्लेख करना और उससे परिचित होना अनुचित न होगा।
"राम! तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है॥"
(मैथिलीशरण गुप्त)
— डाo शिबन कृष्ण रैणा —
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