समीक्षा : राष्ट्र दृष्टि : राष्ट्र भक्ति के जागरण में सहायक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 7 जनवरी 2023

समीक्षा : राष्ट्र दृष्टि : राष्ट्र भक्ति के जागरण में सहायक

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लेखन एक कला है। लेखक से अपेक्षा होती है कि वह समाजोपयोगी लेखन करे। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण भी कहते हैं। इसलिए साहित्य वही जो समाज को दिशा दे। अभी हाल ही में शापिजन द्वारा प्रकाशित 'सम सामयिक विषय और राष्ट्र दृष्टि नामक पुस्तक समाज को दिशा देने वाली है। साहित्य के प्रकाशन के क्षेत्र में जानी जाने वाली स्वदेशी संस्था है। इस पुस्तक को वरिष्ठ स्तंभकार सुरेश हिन्दुस्थानी ने लिखी है। सुरेश हिन्दुस्थानी पिछले 32 वर्षों से अनवरत लेखन कार्य कर रहे हैं। लेखन की श्रेष्ठता के लिए गहन अध्ययन करना होता है। उनका स्वभाव भी अध्ययनशील है। समय-समय पर समसामयिक विषयों पर देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। लेखक के अलावा वह कविता, कहानी और व्यंग्य भी लिखते हैं। उनके अभी तक पांच हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। यही नहीं विदेश के हिंदी प्रकाशनों में भी इनका उचित स्थान है।
लेखक के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए श्रेष्ठ हस्तलिपि का अखिल भारतीय पुरस्कार, दिल्ली में श्रेष्ठ संपादकीय लेखन पुरस्कार, श्रेष्ठ स्तम्भ लेखन पुरस्कार जैसे कई पुरस्कार वह प्राप्त कर चुके हैं। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। हिन्दी हिन्दू और हिन्दुत्व से उन्हें बेहद अनुराग है। उनका लेखन समाज को सकारात्मक दिशा देने वाला होता है। लेखन में वह हमेशा सांस्कृतिक मर्यादाओं का पालन करते हैं। उनके लेखों की भाषा सधी हुई और सुस्पष्ट होती है। वह बिना लाग-लपेट के लिखते हैं। यही नहीं नवोदित साहित्यकार और लेखकों को वह प्रोत्साहित भी करते हैं।


उनकी पुस्तक राष्ट्र दृष्टि में समसामयिक विषयों पर प्रकाशित कुल 15 चुनिंदा लेखों का संग्रह है। पुस्तक में भारतीय संस्कृति पर आघात करता बिग बॉस, भारत नाम में है विश्व गुरु की धमक, प्रगति का सोपान है भारतीय मूल की शिक्षा और समय की मांग है भूमि सुपोषण अभियान प्रमुख आलेख हैं। जैसा कि राष्ट्र दृष्टि पुस्तक का नाम है। यह पुस्तक वास्तव में पाठकों को सही दिशा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी। ऐसा मुझे विश्वास है। आजकल सोशल मीडिया का जमाना है। सोशल मीडिया पर अश्लीलता के साथ-साथ देशविरोधी गतिविधियों को अंजाम देने से भी लोग नहीं चूकते हैं। इसलिए पुस्तक में प्रथम पाठ सोशल मीडिया पर लक्ष्मण रेखा विषय पर ही है। सुरेश हिन्दुस्थानी लिखते हैं कि जिस देश में राष्ट्रीय मर्यादाओं का ध्यान नहीं रखा जाता, वहां विसंगतियां निर्मित होती हैं। किसी भी देश के नागरिक को राष्ट्रीय मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक और स्वाभाविक माना जाता है।
पुस्तक में एक लेख वर्ष प्रतिपदा पर है। इसमें लेखक ने लिखा है कि वर्ष प्रतिपदा ही भारत का नव वर्ष है। वर्तमान भारत में जिस प्रकार से सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है, उसके चलते हमारी परम्पराओं पर भी गहरा आघात हुआ है। उन्होंने लिखा कि जो देश प्रकृति के अनुसार चलता है, प्रकृति उसकी रक्षा करती है। वर्तमान में जिस प्रकार से विश्व के अनेक हिस्सों में प्रकृति का कुपित रूप दिखाई देता है, उससे मानव जीवन के समक्ष अनेक प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न हुई हैं। सुरेश हिन्दुस्थानी ने लिखा है कि वर्तमान में हम भले ही स्वतंत्र हो गए हों, लेकिन पराधीनता की काली साया एक आवरण की तरह हमारे सिर पर विद्यमान है। जिसके चलते हम उस राह का अनुसरण करने की ओर प्रवृत्त हुए हैं, जो हमारे संस्कारों के साथ समरस नहीं है। अंग्रेजी पद्धति से एक जनवरी को मनाया जाने वाला वर्ष नया कहीं से भी नहीं लगता। इसके नाम पर किया जाने वाला मनोरंजन फूहड़ता के अलावा कुछ भी नहीं है।


लेखक एक लेख में लिखते हैं कि प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुसार प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे वातावरण दूषित नहीं होता था। यहां तक कि कई फसल और सब्जियां औषधि के नाम से जानी जाती थी। भूमि सुपोषण अभियान देश का अभियान बनना चाहिए। पुस्तक में एक लेख का शीर्षक है 'मुस्लिमों के लिए हितैषी है समान कानून। इसमें लेखक ने लिखा है कि समान नागरिकता कानून मुस्लिमों के लिए बड़ा हितकारी सिद्ध होगा। आज देश का बहुत बड़ा मुस्लिम समाज मुख्य धारा से कटा हुआ है। इसके पीछे एक मात्र कारण राजनीति है। देश को आजादी मिलने के बाद राजनीतिक दलों ने मुस्लिमों का वोट प्राप्त करने के लिए तमाम प्रकार से प्रलोभन देने का काम किया। यही प्रलोभन मुस्लिम समाज के विकास में बाधक बनकर सामने आया। अगर सारे समाज के लिए देश में एक समान कानून बन जायेगा तो स्वाभाविक रूप से समाज में भेदभाव भी समाप्त होगा। एक लेख में लेखक ने लिखा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बिग बॉस भारतीय संस्कृति पर आघात करने का काम कर रहा है। बिग बॉस पति-पत्नी के सात जन्मों के बंधन वाली अवधारणा को मटियामेट कर रहा है। भारत में कुंवारी कन्या को देवी के रूप में देखे जाने की शाश्वत परम्परा विद्यमान है, लेकिन बिग बास में उसे भोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए देश के संस्कारों को मिटाने का काम करने वाले ऐसे रियलिटी शो का समाज की ओर से पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। राष्ट्र दृष्टि पाठकों को जहां एक दृष्टि प्रदान करेगी, वहीं नए लेखकों के लिए पाथेय का काम करेगी।








समीक्षक : बृजनन्दन राजू

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