
पटना. बिहार में नगर निकाय का चुनाव संपन्न हो गया है.प्रथम और द्वितीय चरण का चुनाव और उसका परिणाम सामने आ गया है.मगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया है.वह दूरगामी परिणाम देने वाला फैसला साबित होगा.नगर निकाय चुनाव के मामले पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि 20 जनवरी 2023 को सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तारीख को निर्धारित किया गया है.ऐसी स्थिति में उचित यही होगा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो जाने के बाद ही इस मामले पर हाई कोर्ट में सुनवाई किया जाए.सभी की नजरे कोर्ट पर जाकर टिक गयी है. मालूम हो कि अति पिछड़ा के आरक्षण को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. आगामी 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फैसला आना है. उत्तर प्रदेश में जिस तरह से कोर्ट के द्वारा निर्णय दिया गया है.उसको ले करके बिहार सरकार घबरा गई है.जिससे संभावना ज्यादा बढ़ती जा रही है कि आने वाले 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा निर्णय लेगा जो जीते हुए प्रत्याशियों के चेहरे पर पानी फेर सकता है. इसको लेकर जीते हुए प्रत्याशियों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई.वहीं जो प्रत्याशी हार गए हैं उनके चेहरे पर थोड़ी खुशी देखी जा रही है. कानून के जानकारों की मानें तो आगामी 20 जनवरी को अगर नगर निकाय के हुए चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आना है. वह ज्यादा संभावना है कि पूरे चुनाव को ही निरस्त कर दे.अगर चुनाव निरस्त हो जाता है तो एक बार फिर से नगर निकाय का चुनाव की तैयारी प्रारंभ हो जाएगी. मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर बिहार निर्वाचन आयोग एवं बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि ट्रिपल टेस्ट नियम से ही ओबीसी आरक्षण को तय किया जाए.यह आदेश सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि ओबीसी आरक्षण के मामले में दूसरे सभी राज्यों को भी इस नियम का पालन करने को कहा.
जानकारी के अनुसार ट्रिपल टेस्ट के तहत
1. किसी राज्य में आरक्षण के लिए स्थानीय निकाय के रुप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की जांच के लिए आयोग की स्थापना की जानी चाहिए.
2. इसके बाद आयोग की सिफारिशों के मुताबिक आरक्षण का अनुपात तय करना जरूरी है.
3. साथ ही किसी भी मामले में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले जो आदेश (ट्रिपल टेस्ट) दिया था, उसका बिहार में पालन नहीं किया गया.आयोग के अनुसार राज्य में बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 के तहत नगर निकायों के चुनाव नगर निगम, नगर परिषद व नगर पंचायतों में कराए गये.जबकि इस चुनाव को लेकर सुप्रीमा कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट नियम से ही ओबीसी आरक्षण को तय करने को कहा है. जो आयोग बनाने के लिए आदेश दिया गया था वह आयोग का गठन जो किया गया है वह कोर्ट के आदेश के अनुसार नहीं था.इसलिए उस आयोग को कोर्ट नहीं मानती है. ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का अवहेलना कर बिहार सरकार ने बिहार में चुनाव की तिथि की घोषणा कर दिया और दो चरणों में नगर निकाय चुनाव कराने का घोषणा हुआ.जिसमें एक चरण की चुनाव एवं मतगणना संपन्न हो गया, जबकि दूसरे चरण का चुनाव 28 दिसंबर हुआ और मतगणना 30 दिसंबर को हो गई. ऐसी स्थिति में जो प्रत्याशी चुनाव मैदान में कूदे थे और जिनकी जीत हुई है वह अच्छे खासे पैसे भी खर्च किए हैं जो हारे हैं वह भी पैसे खर्च किए हैं,अगर चुनाव निरस्त होता है तो उनका खर्च का देनदार कौन होगा.यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है?
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