प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में नहीं होना संसद और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अवहेलना : मनोज झा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में नहीं होना संसद और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अवहेलना : मनोज झा

Manoj-jha
बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में नहीं लागू कर बिहार सरकार भारतीय संसद और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2022 दोनों की अवहेलना कर रही है। खासकर मिथिला क्षेत्र में प्रारंभिक शिक्षा का माध्यम मैथिली वंचित कर बिहार सरकार मैथिली के संग मिथिला क्षेत्र की सभ्यता और संस्कृति को विलुप्त करने की साजिश रच रही है। उक्त आशय का वक्तव्य जारी कर मिथिला लोकतांत्रिक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज झा ने कहा है कि हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं। जिनको कई विद्वान भाषा और बोलियों, दो वर्गों में भी बांटते हैं। प्रारम्भ में संविधान की 8वीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं वह अब बढ़कर 22 हो गई है। इसके अतिरिक्त  2011 की जनगणना के अनुसार 1369 भाषाएं हैं। यूनेस्को के अनुसार विगत 50 वर्षों में 197 भारतीय भाषाएं लुप्त प्राय हो चुकी हैं, और अनेक भाषाएं लुप्त प्राय होने के कगार पर है। एक भाषा के मरने से उस भाषा को बोलने वालों की सभ्यता, संस्कृति आदि समाप्त हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में भाषा का महत्व और बढ़ जाता है। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भली-भांति स्वीकार किया है। इस दृष्टि से नीति में लिखा है-संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए, हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं के अनुसार प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर कम से कम कक्षा 5 तक तथा जहां संभव है वहां कक्षा 8 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। विद्यालय से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर पर पाठ्यक्रम द्विभाषा में उपलब्ध कराने की बात भी कही है, यह अधिक महत्वपूर्ण है। आज पूर्व प्राथमिक शिक्षा से प्रारंभ अंग्रेजी माध्यम की दौड़ में यह बात जल्दी से पचना मुश्किल है, परन्तु जो बात तार्किक एवं वैज्ञानिक है उसको स्वीकार करके ही सही दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि हमारे बच्चे स्नातक एवं इससे आगे तक की पढ़ाई में छ: वर्ष अंग्रेजी के पीछे बर्बाद करते हैं। अगर यह समय उनके अपने विषय पर खर्च होता तो वह अपने विषय में अधिक सक्षम हो सकता है। वैश्विक स्तर पर भाषा संबधी जितने भी अध्ययन हुए हैं, सबका एक ही निष्कर्ष है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में उक्त विषय को लेकर बिहार सरकार की निष्क्रियता चिंताजनक है।

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