‘टर्मिनल उच्च तापमान’ आपकी गेहूं की फसल को प्रभावित कर सकता है, सतर्क रहें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

‘टर्मिनल उच्च तापमान’ आपकी गेहूं की फसल को प्रभावित कर सकता है, सतर्क रहें

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वर्तमान में, पूर्वी राज्यों में तापमान अचानक बढ़ रहा है (औसतन दिन का तापमान लगभग 33° से०) जबकि रबी की अच्छी फसल के लिए कुछ और ठंडे दिनों की आवश्यकता है। तापमान में यह वृद्धि और जलवायु में परिवर्तन पौधों की वृद्धि और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई रबी फसलों, विशेष रूप से गेहूं की उत्पादकता में भारी नुकसान होता है। निदेशक, आईसीएआर-आरसीईआर, पटना फरवरी के महीने की इस मौजूदा स्थिति से बहुत चिंतित हैं और उन्होंने बताया कि तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री की वृद्धि से गेहूं का उत्पादन 6-10 % तक कम हो सकता है। इसके अलावा, आने वाले दिनों में भी तापमान और बढ़ने की उम्मीद है। यह लगातार तीसरा वर्ष है जब यह घटना देखी जा रही है। पिछले 4-5 दिनों से सभी पूर्वी राज्यों में तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री ज्यादा दर्ज किया जा रहा है। इस वर्ष गेहूँ की फसल की बुवाई और वृद्धि अब तक संतोषजनक रही है, लेकिन गेहूँ और अन्य रबी फसलों की सर्वोत्तम उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को अपनी फसलों पर सावधानीपूर्वक नज़र रखनी होगी। ठंडे मौसम की फसलों में बढ़ते तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ प्रभावी रणनीतियाँ अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि 0.2% पोटेशियम ऑर्थोफॉस्फेट (KH2PO4) या 0.2 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3) का उपयोग करने अथवा दोनों को तने में गांठ और शीर्ष निकलने के चरण में पुष्पन के बाद पत्तों पर छिड़काव करने से गेहूं में गर्मी के प्रति सहनशीलता में वृद्धि होगी और एक आदर्श उपज स्तर 35-40 क्विंटल/हे० तक प्राप्त करने में सहायक होगी। दोपहर के समय जब हवा शांत होती है, तब सभी ठंडे मौसम वाली फसलों में हल्की सिंचाई की जानी चाहिए ताकि उपज के नुकसान को कम किया जा सके। उन्होंने आगे बताया कि तापमान में अचानक वृद्धि के कारण भूरा रतुआ रोग लगने की सम्भावना है, गेहूं में भूरे रतुआ को नियंत्रित करने के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 ई सी 200 लीटर पानी में 15 दिनों के अंतराल पर डालें। मसूर और चना में थायोफनेट मिथाइल 70% डब्लू पी @ 2.0-2.5 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव तापमान में वृद्धि के कारण जड़ सड़न और उकठा रोग को नियंत्रित करने में बहुत प्रभावी पाया गया है। उन्होंने किसानों को फसल संबंधित किसी भी समस्या के निराकरण हेतु  कृषि विशेषज्ञों, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य स्रोतों से भी परामर्श लेने का सुझाव दिया है।

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