विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन जलसाघर में हुए कई आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 5 मार्च 2023

विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन जलसाघर में हुए कई आयोजन

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नई दिल्ली. 05 मार्च, विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन राजकमल प्रकाशन के 'जलसाघर' में पुस्तकप्रेमियों ने जमकर खरीदारी की। 'जलसाघर' में आज सुबह से ही पाठकों की भीड़ उमड़ पड़ी और दिनभर यही सिलसिला चलता रहा। राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि विश्व पुस्तक मेले में पाठकों का रेस्पॉन्स बहुत अच्छा रहा। इस दौरान पूरे नौ दिन हजारों लोग राजकमल के जलसाघर पहुंचे। हमें यह देखकर खुशी हुई कि उन लेखकों को भी पाठकों का बहुत प्यार मिला जिनकी किताब पहली बार प्रकाशित हुई हैं। 'जलसाघर' में आज कई पुस्तकों पर बातचीत हुई और आस्तीक वाजपेयी की 'उम्मीद', त्रिपुरारि शरण की 'माधोपुर का घर', शशिकांत मिश्र की 'मीडिया लाइफ', सविता सिंह की 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वर', विभांशु केशव की 'सरकारी कार्य में बाधा' और 'त्रिलोचन रचनावली' आदि नई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ।


आस्तीक वाजपेयी के कविता संग्रह 'उम्मीद' का लोकार्पण

जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में आस्तीक वाजपेयी के कविता संग्रह 'उम्मीद' का लोकार्पण हुआ। इस पुस्तक में संकलित कविताएँ मनुष्य के अकेलेपन, उसकी विफलता, समृद्धि और उम्मीद के ऐसे इलाकों में प्रवेश कर उन्हें आलोकित करती है जो अब तक लगभग अनछुए थे। लोकार्पण के  दौरान मंच पर वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी उपस्थित रहे। अशोक वाजपेयी ने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि कवि-कुल का विस्तार हो रहा है।


'माधोपुर का घर' उपन्यास में है एक घर का मेटाफर

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में त्रिपुरारि शरण के उपन्यास 'माधोपुर का घर' का लोकार्पण अशोक वाजपेयी ने किया। इस अवसर पर अशोक वाजपेयी ने उपन्यासकार को बधाई देते हुए कहा कि त्रिपुरारि शरण को मैं अनेक तरह से जानता हूं। वे जो भी करते हैं पूरे मन से करते हैं। मुझे भरोसा है कि उनका यह उपन्यास भी इसी रूप में संभव हुआ होगा। चर्चित कथाकार वंदना राग से बात करते हुए त्रिपुरारि शरण ने कहा कि उपन्यास में घर एक मेटाफर है, हमारे पुरखों का, हमारी स्मृतियों का, हमारे बदलते हुए इतिहास का। लोग बेहतर जीवन की तलाश में माइग्रेट करते हैं, पर घर उनके भीतर सदा टीसता रहता है। कई तरह के संबोधन घर में ही छूट जाते हैं, एक पूरा संसार पीछे छूटता जाता है। पर यह उपन्यास किसी नास्टेल्जिया में जाने की बजाय इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आए हुए बदलाव को दर्ज करता है।


हिंदी नहीं है न्यूज चैनलों में प्रयोग होने वाली भाषा

राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में आयोजित एक अन्य सत्र में शशिकांत मिश्र की किताब ’मीडिया लाइफ’ का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर शशिकांत मिश्र और विनीत कुमार के बीच बात हुई। इस मौके पर शशिकांत मिश्र ने कहा कि 'न्यूज चैनलों में प्रयोग होने वाली भाषा को हिंदी नही कह सकते लेकिन उससे टीवी न्यूज की भाषा कहा जाना चाहिए।'


हमारे लिए नमक बनाने वालों को मिलती है मामूली मजदूरी

अगले सत्र में अभिषेक श्रीवास्तव के यात्रा आख्यान 'कच्छ कथा' पर धर्मेंद्र सुशांत ने उनसे बातचीत की। इस आख्यान में लेखक ने गुजरात के कच्छ क्षेत्र में की गई अपनी यात्राओं के अनुभव और वहाँ की विशेषताओं को लिखा है। बातचीत के दौरान अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि देश में लगभग नब्बे प्रतिशत नमक की आपूर्ति कच्छ से की जाती है लेकिन उसकी खेती करने वाले लोगों को उसकी कीमत का दसवां हिस्सा भी नहीं मिल पाता। उन लोगों के हाथ पैर नमक से खराब हो जाते हैं, उनके बच्चों के चेहरे सूख जाते हैं। मैंने कच्छ के लोगों के साथ, उनके घरों में कुछ दिन रहकर यह समझा और महसूस किया कि हम जो नमक खाते हैं उसे बनाने के लिए किस तरह लोग अपनी जान को जोखिम में डालते हैं और उन्हें इसके लिए बहुत मामूली सी मजदूरी मिलती है।


जो देखा उसी को व्यंग्य के रूप में लिखा

एक अन्य सत्र में विभांशु केशव की नई किताब ' सरकारी कार्य में बाधा’ का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर विभांशु केशव ने कहा कि 'जिन चीजों को समाचार के माध्यम से नही बताया जा सकता, उनको व्यंग्य में लिखने की कोशिश उन्होंने की है।' उन्होंने आगे कहा कि मैंने जिन परिस्थितियों को देखा केवल उन्हीं को व्यंग्य के रूप में लिखा है।


अमीर-गरीब के बीच बढ़ते फासलों को रेखांकित करता है 'अंधेरा कोना’ उपन्यास

लेखक से मिलिए सत्र में लेखक उमा शंकर चौधरी से अंकित नरवाल ने उमा शंकर चौधरी द्वारा लिखित उपन्यास 'अंधेरा कोना’ पर बातचीत हुई। उपन्यास पर बात करते हुए उमा शंकर ने कहा कि  विकास को जैविक बनाना होगा क्योंकि अमीर और गरीब के बीच का फासला बढ़ता जा रहा है। यह उपन्यास इन्हीं बढ़ते हुए फासलों को रेखांकित करता है।


व्यक्तित्व अलग-अलग पर प्रतिरोध का स्वर सबका एक

अगले सत्र में सविता सिंह द्वारा संपादित प्रतिनिधि कविता संकलन 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वर' का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर रेखा अवस्थी, देवीप्रसाद मिश्र, शुभा, हेमलता महेश्वर और शोभा सिंह मौजूद रहीं। सविता सिंह ने संकलन की परिकल्पना के बारे में बताते हुए कहा कि उनके मन में यह बात थी कि स्त्री प्रतिरोध के प्रतिनिधि कवि स्वरों को एक साथ रखकर देखा जाए जिससे यह देखा जाना जा सके कि स्त्री प्रतिरोध की कविताएँ कितने अलग-अलग तरह से लिखी जा रही हैं। इन सभी कवियों का कवि व्यक्तित्व एक दूसरे से कितना अलग है इसके बावजूद सभी प्रतिरोध को अपने अपने तरीके से स्वर दे रही हैं। देवीप्रसाद मिश्र ने कहा कि यह एक जरूरी संकलन है इसे हर हाल में पढ़ा जाना चाहिए, यह स्त्री प्रतिरोध की कविता का एक तरह से दस्तावेजीकरण है। रेखा अवस्थी ने कहा कि इस संग्रह को पढ़ना समकालीन स्त्री कविता की ताकत, समृद्धि और विविधता का पता चलता है। इस अवसर पर शुभा और शोभा सिंह ने भी अपनी बातें रखीं।


स्त्री जीवन पर केंद्रित है ज्ञानेद्रपति की तमाम कविताएँ

कार्यक्रम के अगले सत्र में ज्ञानेन्द्रपति की 'प्रतिनिधि कविताएँ' पर मनोज कुमार पांडेय ने संपादक कुमार मंगलम से बात की। इस दौरान कुमार मंगलम ने कहा कि 'ज्ञानेद्रपति की तमाम कविताएँ स्त्री जीवन और स्त्री पक्ष पर आधारित हैं। इस 'प्रतिनिधि कविताएँ' संकलन में उनकी कविताओं को उनके जीवन यात्रा क्रम में रखा गया है़।'


त्रिलोचन रचनावली का हुआ लोकार्पण

अगले सत्र में त्रिलोचन रचनावली का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर रेखा अवस्थी, वाचस्पति उपाध्याय, सविता सिंह, देवीप्रसाद मिश्र और शोभा सिंह मौजूद रहे। देवीप्रसाद मिश्र ने इस मौके पर कहा कि मैं इस लोकार्पण में शामिल होकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। त्रिलोचन जिस जनपद के कवि हैं उस जनपद का होना गर्व की बात है। यह बहुत ही जरूरी काम है जो आज संपन्न हुआ है। वाचस्पति उपाध्याय ने कहा कि त्रिलोचन हमारे ऐसे पुरखे हैं जिन्हें पढ़ते हुए हम सब बड़े हुए हैं, उनकी कविताओं में एक ऐसी दुनिया है जो हर तरह से हमारी जानी पहचानी है पर जब हम उसमें प्रवेश करते तो वही दुनिया एक दूसरी ही दुनिया लगने लगते है। इस अवसर पर रेखा अवस्थी, सविता सिंह और शोभा सिंह ने भी बातें रखी।


विश्व पुस्तक मेले में पाठकों का उत्साह रहा सबसे ऊपर

राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि विश्व पुस्तक मेले में पाठकों का रेस्पॉन्स बहुत अच्छा रहा। इस दौरान पूरे नौ दिन  भारी तादाद में  लोग राजकमल के जलसाघर पहुंचे। हर बार की तरह राजकमल प्रकाशन इस बार भी बहुत सारी नई पुस्तकों और कई नए लेखकों के साथ पुस्तक मेले में हाजिर हुआ। हमें यह देखकर खुशी हुई कि उन लेखकों को भी पाठकों का बहुत प्यार मिला जिनकी किताब पहली बार प्रकाशित हुई हैं। दो साल के अंतराल के बाद विश्व पुस्तक मेले का आयोजन हुआ लेकिन इसमें शामिल होने वाले पाठकों की संख्या और उनका उत्साह पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा देखने को मिला। मेले में आने वाले पुस्तकप्रेमियों को कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। मेले तक पहुँचने में भी कई समस्याएँ देखी गई और इंटरनेट, पीने के पानी आदि की व्यवस्था समुचित नहीं की गई थी। लेकिन पाठकों का उत्साह सबसे ऊपर रहा। पुस्तक मेले का समय जनवरी के आसपास ही रहे तो इससे प्रकाशकों और पाठकों दोनों को सुविधा मिलेगी। इस समय स्कूलों में परीक्षाओं के चलते मेले में विद्यार्थियों की काफ़ी कमी देखी गई। विश्व पुस्तक मेले के दौरान राजकमल प्रकाशन के जलसाघर आने वाले सभी पुस्तकप्रेमियों का हम आभार व्यक्त करते हैं।


विश्व पुस्तक मेले में इन किताबों की हुई सर्वाधिक बिक्री

विश्व पुस्तक मेले के दौरान राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित रेत समाधि, राग दरबारी, मैला आँचल, सोफी का संसार, तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा, काशी का अस्सी, बोलना ही है, आपका बंटी, साये में धूप, शेखर: एक जीवनी, दिव्या, संस्कृति के चार अध्याय, बंजारे की चिट्ठियाँ, सत्यजित राय की किताबें, एक जिंदगी काफ़ी नहीं आदि पुस्तकों की सर्वाधिक बिक्री हुई।

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