विशेष : गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों की कसौटी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 10 अप्रैल 2023

विशेष : गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों की कसौटी

Mahatma-gandhi
हमारी परिस्थितियों समस्याओं और उसके समाधान करने की हमारी मती और शक्ति दोनों पर प्रश्नचिन्ह है, गांधी और विनोबा ने हमें देश की आजादी का जो मार्ग बताया वह गांवों से होकर जाता है और गांव का अर्थ है वो  किसान कारीगर, मजदूर ,महिलाएं ,पुरुष, बूढ़े, नौजवान और बच्चे जो न केवल एक दूसरे के पूरक हैं बल्कि एक खुशहाल परिवार एक सशक्त समाज और एक विकसित गांव की संरचना करते हैं ।  गांधी ने कहा था जब तक हमारा गांव अपने पैरों पर खड़ा नहीं होगा सामाजिक रुप से जागरूक नहीं होगा और अधिक आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होगा तब तक देश की आजादी का कोई अर्थ नहीं है अंग्रेजों के देश छोड़कर चले जाने से वास्तविक स्वतंत्रता नहीं मिलेगी बल्कि इसी प्रकार शासन चलाने वाले दूसरे लोग आ जाएंगे और हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहेंगे आज की विषमता देखकर यह महसूस हो रहा है कि देश के गांधी के किस देश ने गांधी के बताए मार्ग पर चलने का इरादा त्याग दिया है देश में अमीर और अमीर होता जा रहा है तथा गरीब और गरीब देश में 1 वर्ष में 7300 अरबपति जुड़ गए जिनकी कुल संपत्ति 6000 अरब डॉलर यानी 4 खरब 40 अरब रुपये आंकी गई है वहीं विश्व के भूखे देशों में हम 1 वर्ष में 100 से 103 पायदान पर आ गए यहां यह भी समझ लीजिए कि वर्ष 2014 में भूख के इंडेक्स में हम 55 वें में पायदान पर थे और 2018 में 103 पर देश में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को लेकर सभी चिंतित हैं मगर यह आंकड़ा सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा है और वर्ष 2023 तक अमीर और गरीब की खाई में 53 प्रतिशत की बढोत्तरी होगी विश्व में अरबपति महिलाओं की सूची में(  जिनकी संपत्ति 73.5 अरब डॉलर से अधिक हो ) हमारा देश प्रथम है देश के असमान विकास के लिए जितना नेता राजनैतिक दल और सरकारें जिम्मेदार हैं उससे अधिक तथाकथित गांधीवादी भी जिम्मेदार हैं हमने गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को भुला दिया गांधी ने संपूर्ण देश में अपने द्वारा गठित संस्थाओं और रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से परिवर्तन लाया और लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया है मैं आपको केवल यहां कुछ नाम गिना  देता हूं । विश्लेषण आप स्वयं कर ले अठारह रचनात्मक कार्यक्रमों में खादी ग्रामोद्योग , महिलाएं,  किसान आदिवासी, अस्पृश्यता निवारण आदि और संस्थाओं में अखिल भारत चरखा संघ अखिल भारत चरखा संघ, अखिल भारत  ग्रामोद्योग संघ, गुजरात विद्यापीठ,  नई तालीम समिति हरिजन सेवक संघ, कस्तूरबा सेवा संघ आदि इसके अतिरिक्त गांधी जी के अनिच्छा के बावजूद के उनके नाम से कोई संस्था ना बनाई जाए गांधी सेवा संघ और श्री गांधी आश्रम की स्थापना की गई गांधी की शहादत के बाद में प्रमुख संस्थाएं गांधी के विचारों के माध्यम से कार्य करने के लिए बनाई गई एक तो अखिल भारत कांग्रेस कार्यसमिति ने अपने प्रस्ताव द्वारा गांधी राष्ट्रीय स्मारक निधि की स्थापना की जिसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद और सदस्यों में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरदार पटेल मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जगजीवन राम राजकुमारी अमृत कौर और इस निधि के मंत्री आचार्य कृपलानी थे दूसरी प्रमुख संस्था की स्थापना 1948 में ही सेवाग्राम में 3 दिन चली बैठक में हुई जिसमें गांधी जी द्वारा बनाई गई संस्थाएं जैसे चरखा संघ ग्रामोद्योग संघ आदि  समाहित हुई जिसका नाम सर्व सेवा संघ रखा गया इसमें लगभग उपरोक्त सभी व्यक्तियों जिन्होंने गांधी राष्ट्रीय स्मारक निधि की स्थापना की थी के साथ-साथ सर्वोदय कार्यकर्ता भी शामिल थे जिसमें प्रमुख रूप से विनोबा भावे जयप्रकाश नारायण , किशोरी लाल,  मधुबाला,  दादा धर्माधिकारी ,आर्यनायकम और सुशीला  बाई आदि  शामिल हुए ।


गांधी जी के नाम पर इतनी सारी संस्थाएं जो विभिन्न विषयों पर काम करने के लिए थी अगर स्वतंत्रता के बाद उसी उत्साह समझ समर्पण और लगन से काम कर रही होतीं  तो देश की हालत आज ऐसी विषम नहीं होती लोकहित में सरकार की नीतियों को बनाने के लिए इन संस्थाओं के माध्यम से एक विशाल जनाधार था परंतु 1948 के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया संस्थाओं को चलाने वाले अपने अपने दायरे में  में सिमटते गए,  देश की तो छोड़िए ,अपनी  सहोदर संस्थाओं से भी कटते गए इक्कीसवीं शताब्दी में तो  में  तो इन संस्थाओं के पदाधिकारी और कार्यकर्ता एक दूसरे का मुँह देखना भी पसंद नहीं करते गांधी के नाम पर सभी को जोड़ने का एक और प्रयास अवश्य हुआ के गांधीजी की 150 वीं शताब्दी सब एक साथ मिलकर मनाएं गांधी के नाम पर भी सभी एक नहीं हो पाए और अपनी अपनी  ढ़फली अपना-अपना  राग वाली कहावत चरितार्थ करते चले।


गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम जो सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं जैसे " स्वच्छता भारत " यदि हम उसकी सफलता और असफलता को  सी.ए.जी.  और विपक्षी दलों के मूल्यांकन के लिए छोड़ दें तो भी गांधी वादियों के लिए स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है कि सब कुछ समाप्त हो गया है । कुछ निर्भीक अपने धुन के पक्के,  स्वतंत्र सोच रखने वाले युवा गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने अपनी एक नई राह निकाली और एकता परिषद के नाम से गांव के भूमिहीनों, आदिवासियों, मजदूरों, महिलाओं की लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके जनादेश सत्याग्रह पदयात्रा का रूप और प्रभाव देखकर पुनः गांधी की याद आने लगती है एक लाख  सत्याग्रही जल जंगल जमीन के विषय को लेकर सैकड़ों मील सतत पैदल मार्च करते हैं और सरकार से वंचितों की मांग मनवाने में आंशिक रूप से सफल भी होते हैं। इस जनादेश सत्याग्रह पदयात्रा का आरंभ 2 अक्टूबर 2007 को ग्वालियर से दिल्ली के लिए हुआ जिसमें 25000 लोगों ने भाग लिया इसके बाद 7 मार्च 2011 को चेतावनी यात्रा निकली जिसमें 10,000 गांव के लोग संसद मार्ग थाने पर बैठे जहां भारत सरकार के अधिकारी ने जाकर उनका ज्ञापन लिया और आश्वासन दिया किस पर शीघ्र कार्यवाही कर निर्णय लिया जाएगा इसी क्रम में जन सत्याग्रह 2012 में एक लाख  आदिवासी भूमिहीन गरीब किसानों ने ग्वालियर से दिल्ली तक यात्रा आरंभ किया सरकार इतने दबाव में आ गई के यात्रा के मध्य में ही भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश आगरा में आकर उनसे मिले और एक दस सूत्रीय  मांग को स्वीकार किया कार्य में गति ना देख कर 2015 में एक चेतावनी यात्रा पलवल से दिल्ली तक आयोजित की गई जिसमें जिसमें आगरा के दस  सूत्रीय प्रस्ताव को शीघ्र लागू करने की मांग की गई।

 

2 अक्टूबर 2018 को 25,000 लोगों के साथ यात्रा पुणे आरंभ हुई जहां मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों को मनाने का प्रयास किया 6 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुरैना में इस सत्याग्रह में शामिल हुए और उनकी मांगों का समर्थन किया भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के बीमार होने के कारण केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर वीरेंदर सिंह  सत्याग्रहियों से से मिले भूमि सुधार कानून लागू करने और आदिवासियों के भूमि पट्टे देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाई। गांधी वादियों द्वारा गांधीवादी मार्ग अपनाकर देश की आजादी के बाद किसी विषय को लेकर इतना बड़ा सबल आंदोलन नहीं हुआ बल्कि किसी भी पार्टी या संगठन द्वारा इतना बड़ा शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन संपन्न नहीं हुआ जिसके आधार पर कोई कानून बना हो और उसमें सुधार के प्रयास जारी हो हम ग्रामीण विकास और आदिवासियों के भूमि अधिकार और उनके सशक्तिकरण के मुद्दे की ओर आए तो इसमें गांधी जी का सबसे महत्वपूर्ण रचनात्मक कार्यक्रम खादी और ग्रामोद्योग शामिल हो जाता तो खादी रक्षा अभियान जो 2010 में आरंभ हुआ था को और शक्ति मिलती तथा एक साथ   मुद्दे सुलझ जाते आदिवासियों मजदूरों, किसानों को भूमि तो मिल जाएगी पर उनको वही गांव में रोजगार भी मिल जाएगी।   तो उनको अतिरिक्त आयका साधन मिल जाता क्योंकि आज की परिस्थितियों में केवल खेती पर रहकर घर नहीं चलाया जा सकता खादी ग्राम उद्योग के माध्यम से संभव था दुर्भाग्य कहेंगे कि खादी मिशन के प्रमुख इस जनादेश आंदोलन में शामिल तो होंगे परंतु गांवों में काम कर रही कतिन,  बुनकर और अन्य ग्रामोद्योग कारीगरों की बात नहीं कर पाएंगे । यह गांधीवादी संस्थाओं में विचारों की एक गहरी खाई है सरकार ने ग्राम आधारित जिस खादी ग्रामोद्योग को नष्ट करने की नीति निर्धारण की है उसके लिए 8 वर्ष से चल रहा आंदोलन का कोई असर सरकार पर नहीं हो रहा है।


खादी और ग्रामोद्योग के लिए सरकार द्वारा और ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना संस्थाओं के सहयोग के लिए की गई थी ताकि ग्रामीण स्वरोजगार का कार्यक्रम सुचारू रूप से चलता रहे अब ऐसा नहीं है बल्कि मालिक और नौकर जैसा संबंध हो गया है । आयोग द्वारा विभिन्न प्रकार के बंधनों से खादी संस्थाएं परेशान हो गई हैं जैसे कच्चा माल खरीद करने के लिए बंधन , कताई मजदूरी तय करने का बंधन,  रेट चार्ट बनाने की प्रक्रिया का बंधन,  कामगारों को बैंक से मजदूरी भुगतान करने का बंधन ,कताई मजदूरी तय करने का बंधन, रेट चार्ट बनाने की प्रक्रिया का बंधन कामगारों को बैंक से मजदूरी भुगतान करने का बंधन, विपणन सहायता में अव्यवहारिक परिवर्तनों का बंधन , कार्यकारी पूंजी के लिए बैंकों का बंधन,  आयोग के अतार्किक नियमों का बंधन , संस्थाओं की संपूर्ण संपत्ति को आयोग के पास बंधक रखने का बंधन ,  अनाप-शनाप प्रमाण पत्र ऑडिट फीस देने का बंधन, अनावश्यक रूप से संस्थाओं पर दबाव बनाने का बंधन, इन्हीं सब बंधनों से मुक्त होकर संस्थाएं गांधी जी के सिद्धांतों के आधार पर खादी और ग्रामोद्योग का कार्य करने का मन बना रही है । पिछले कई वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि गांधीवादी संस्थाओं की बात तो छोड़िए राज्यों में सर्वोदय मंडलों और खादी संस्थाओं के मध्य संपर्क नहीं के बराबर रह गया है ऐसी स्थिति सर्वोदय और खादी कार्यकर्ताओं की भी है । जनादेश सत्याग्रह के लिए एकता परिषद ने तो अपने साथ सम विचारों की एक सौ से अधिक संस्थाओं और लाखों लोगों को जोड़ा और उनके आशातीत परिणाम प्राप्त हुए , ऐसा नहीं कि खादी रक्षा अभियान से जुड़ने की गांधीवादी संस्थाओं ने प्रयत्न नहीं किए जिनमें सर्व सेवा संघ प्रमुख है , परंतु गांधीवादी संस्थाओं का इस अभियान में एक साथ न आने के कारण इस खादी रक्षा अभियान की यात्रा प्रभाव उतना नहीं हो रहा है जितना होना चाहिए खादी आंदोलन को चलाने के लिए इसके कर्णधारों को एकता परिषद से सीख लेना चाहिए 93 वर्ष से अधिक उम्र में वंचितों के लिए जनादेश पदयात्रा में शामिल‌ खादी के शीर्ष मार्गदर्शक का स्वागत है । परंतु खादी रक्षा अभियान की यात्रा कब निकलेगी और उसका मार्गदर्शन कैसे होगा वहाँ संकोच क्यों और कैसा एकता परिषद की सफलता से क्या कुछ सीखा जा सकता है जहां अधिकतर नौजवान का मार्गदर्शन या उनके प्रमुख मार्गदर्शक को खादी रक्षा अभियान के मार्गदर्शक मंडल में रखा जा सकता है।  ताकि भारत सरकार को खादी अनुकूल नीति बनाने के लिए वाध्य किया जा सके। गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार की नीतियों को लोकहित में बनाने के लिए हम तभी बाध्य कर पाएंगे जब सभी गांधीवादी संस्थाएं और विचार निष्ठ लोग एकजुट होकर इनके लिए प्रयास करें जिसमें शांतिपूर्ण सत्याग्रह और जनांदोलन शामिल हो।


 


Ashok-sharan

अशोक शरण 

सर्व सेवा संघ के प्रबंधक ट्रस्टी 

खादी ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व निदेशक 

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