विशेष : सरकारी तोता नहीं, अब गरुड़ बन गई है सीबीआई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 9 अप्रैल 2023

विशेष : सरकारी तोता नहीं, अब गरुड़ बन गई है सीबीआई

Cbi-india
किसी भी संस्था  की क्षतिपूर्ति मायने रखती है। भारत ही एक ऐसा देश है, जहां साठ साल के व्यक्ति को जवान  माना जाता है।  ‘साठा पर पाठा’ कहने की परंपरा  रही है। संस्थाओं पर  भी कमोवेश यही बात लागू होती है।  किसी  संस्था के साठ साल पूरे करना  अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्थापना के साठ साल पूरे हो गए हैं।  उसकी  स्थापना 1 अप्रैल, 1963 को  केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से  एक संकल्प के जरिये की गई थी।  भ्रष्टाचार के उन्मूलन और सत्यनिष्ठा की स्थापना के लिए लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के संकल्प से दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट, 1946 पारित हुआ था।  सन 1962 में लाल बहादुर शास्त्री ने प्रशासन में भ्रष्टाचार की बढ़ती घटनाओं से निपटने और सुझाव देने के लिए संथानम कमेटी बनाई थी। कमेटी की संस्तुतियों पर अमल करते हुए भारत सरकार ने एक अप्रैल 1963 को प्रस्ताव द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो  यानी सीबीआई की स्थापना की थी। 1963 से लेकर अब तक सीबीआई लोगों की सेवा  कर रही है। श्रीनगर से तिरुअनंतपुरम और गांधीनगर से ईटानगर तक देश के 36 शहरों में इसके अपने कार्यालय हैं।  सीबीआई ने वांछित भगोड़ों की भारत वापसी के लिए आॅपरेशन त्रिशूल , ड्रग्स संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए आपरेशन गरुड़ , साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए आपरेशन चक्र , बाल यौन शोषण को रोकने के लिए आपरेशन मेघ चक्र लॉन्च  कर रखा है।

  

देश के प्रथम सीबीआई निदेशक डी.पी.कोहली ने अपने अधिकारियों से कहा था कि जनता आपसे कार्यकुशलता और सत्य निष्ठा में उच्चतम स्तर की अपेक्षा करती है। इस विश्वास को बनाए रखना है।  कहना न होगा कि सीबीआई आज भी उन अपेक्षाओं पर खुद को खरा साबित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करती है। चाहे  एल एन मिश्रा  हत्याकांड, राजीव गांधी हत्याकांड, मुंबई बम विस्फोट मामला रहा हो या फिर पुरुलिया में हथियार गिराने का मामला, उनका रहस्योदघाटन सीबीआई ने जिस खूबी और पारदर्शिता से किया, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। पश्चिम बंगालके शारदा चिट फंड घोटाले,कोयला घोटाले, आईसी-813 हाइजैकिंग केस,  बिहार के सृजन घोटाले, प्रियदर्शनी मट्टू मर्डर केस, बिहार के चारा घोटाले , कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले, टेलीकॉम घोटाले,  हर्षद मेहता केस, स्टांप पेपर घोटाले, सत्यम घोटाले,  कैट स्कैम केस,को-आॅपरेटिव ग्रुप हाउसिंग स्कैम, शोपियां दुष्कर्म और हत्या मामला, बेंगलुरु हत्याकांड, असम सीरियल ब्लास्ट मामले, कोठखाई दुष्कर्म हत्या केस , यश बैंक-डीएचएफएल लोन धोखाधड़ी केस, एनएसई को-लोकेशन स्कैम की जांच और उसे अंजाम तक पहुंचाने की अनेक उपलब्धियां उसके नाम हंै। वह अपराधियों और राजनीतिज्ञों दोनों के आंखों की किरकिरी बनी रहती है लेकिन जनता का भरोसा जीतने में वह कभी पीछे नहीं रही।


 यह और बात है कि  उस पर केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने के भी आरोप लगे।  डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली संप्रग सरकार में तो  देश की शीर्ष अदालत ने उसे सरकारी तोता तक कह दिया था लेकिन इसके बावजूद सीबीआई ने  अपने दायित्वों से समझौता नहीं किया।  जब जहां, जैसा मौका मिला, उसने  अपनी जांच प्रक्रिया को न केवल गति दी बल्कि  अपराधियों को जेल के सलाखों के पीछे भेजन ेमें भी बड़ी भूमिका का निर्वाह किया।  जिस कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकार पर  सीबीआई को सोने के पिंचड़े में बंद करके रखने का आरोप था, वही कांग्रेस और फिलहाल उसके समर्थन में खड़े भाजपा विरोधी दल भी सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की भूमिका को आए दिन कठघरे में खड़ा करते रहते हैं।  इसकी अपनी बड़ी वजह भी है।  राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा  है कि   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीबीआई से कहा कि भ्रष्ट व्यक्तियों को छोड़ा न जाए।  मार्च 2016 में मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद  को बताया था कि वर्ष  2013 में भ्रष्टाचार के लिए 1136 लोग दोषी करार दिए गए जबकि  2014 में 993, 2015 में 878, 2016 में 71 लोग दोषी करार दिए गए।  इस लिहाज से देखें  तो  संप्रग सरकार में  दोषसिद्धि की दर अधिक रही।   बकौल सिब्बल, लोग झूठ बोल सकते हैं लेकिन तथ्य नहीं। भ्रष्टाचारी को कौन बचा रहा है?  अब यह उनकी सुविधा का संतुलन है लेकिन जितेंद्र सिंह ने जब यह आंकड़ा पेश कियातो उनका मंतव्य था कि राजग सरकार में भ्रष्टाचार में कमी आई है। अब यह अपना-अपना नजरिया है कि हम चीजोंको  अपनी सुविधा के लिहाज से देखते हैं।


सच तो यह है  कि विपक्ष के कई नेताओं  के खिलाफ सीबीआई और  ईडी की जांच चल रही है। ज्यादातर जांच बहुत समय से चल रही है।  शिवसेना, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राजद, झारखंड मुक्ति मोर्चा , टीआरएस, आम आदमी पार्टी, नेशनल कान्फे्रंस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  जैसे दलों के बहुत से नेता सीबीआई जांच के दायरे में हैं।  जैसे-जैसे विपक्षी दलों  के नेता जांच के शिकंजे में फंस रहे हैं,  वैसे-वैसे   मोदी सरकार पर सीबीआई और  ईडी के दुरुपयोग के आरोप भी लग रहे हैं।  ऐसा लगता है कि 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर अगर विपक्षी दलों  में एकता  बनेगी  तो इसके मूल में सीबीआई-ईडी  की उन पर चल रही कार्रवाई ही  प्रमुख होगी। यह और बात है कि  विपक्ष मोदी सरकार के अब तक के नौ वर्षों के कार्यकाल में कोई ऐसा ठोस मुद्दा नहीं तलाश  पाया है जिसे  धार देकर वह  चुनावी बैतरणी पार कर सके। सीबीआई, ईडी के दुरुपयोग,  संवैधानिक संस्थाओं पर हमले, लोकतंत्र पर खतरे जैसे आभासी  मुद्दे उछाल कर विपक्ष केंद्र की नरेंद्र सरकार को चुनौती देना चाहता है।  विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोपों को सियासी मुद्दा बनाकर जिस तरह  सरकार को चुनौती देने में जुटा  है, तो मोदी सरकार भी भ्रष्टाचार की ही पिच पर 2024 का सियासी मैच खेलने  का मन बना चुकी है।


सीबीआई के हीरकजयंती समारोह में  एक भी  भ्रष्ट व्यक्ति को न बख्शने की सीबीआई को  नसीहत देकर  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  विपक्ष को सीधा संदेश दे दिया है।  साथ ही, भ्रष्टाचार को  न केवल लोकतंत्र  और न्याय की राह में सबसे बड़ा रोड़ा करार  दिया है  बल्कि यह भी कहा है कि  केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो  की प्रमुख जिम्मेदारी भारत कोभ्रष्टाचार से मुक्त कराने की है। यह सुस्पष्ट करने में भी उन्होंने देर नहीं लगाई कि  मौजूदा सरकार में भ्रष्टाचार से लड़ने की राजनीतिक इच्छाशक्ति कम नहीं है।  देश  चाहता है कि  किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को बख्शा न जाए।  उनका मानना है कि भ्रष्टाचार गरीब से उसका हक छीनता है, अनेक अपराधों को जन्म देता है। उनकी सरकार  मिशन मोड पर काले  धन और बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।  भ्रष्टाचारियों ही नहीं,  भ्रष्टाचार की वजहों से भी लड़  रही है।  भ्रष्टाचार प्रतिभा का सबसे बड़ा दुश्मन  है।  यह भाई-भतीजावाद और परिवारवाद को प्रोत्साहित करता है। जब ये दोनों बढ़ते हैं तो देश की ताकत प्रभावित होती है और जब ताकत कमजोर होती है तो इसका असर विकास पर भी पड़ता है।  आज भी जब किसी को लगता है कि कोई केस असाध्य है तो आवाज उठती है कि मामला सीबीआई को दे देना चाहिए।  संप्रग सरकार में सीबीआई वह तोता थी जिसके पंख राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कटे हुए थे लेकिन  अब न केवल उसे पंख मिल गए हैं बल्कि वह जांच के क्षेत्र में प्रमुखतासे उड़ान भर पा रही है।  वह अब पिंचड़े में  बंद  सरकारी तोता नहीं, बल्कि गरुड़ बन गई है जो भ्रष्टाचार के नागों का एक-एक कर भक्षण कर रही है।  विपक्ष के विरोध की असल वजह भी यही है। संस्थाओं का विरोध तो आसान है लेकिन उन्हें प्रोत्साहन देना बड़ी हिम्मत का काम है। इस बात को विपक्ष जितनी जल्दी समझ लेगा, उसकी राह  उतनी ही आसान हो जाएगी।    






—सियाराम पांडेय ‘शांत’—

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