- 26 साल बाद एक-एक कर हो रहा माफिया मुख्तार अंसारी हिसाब-किताब. 37 साल का है आपराधिक इतिहास, दर्ज है 100 से अधिक मुकदमें
23 सितंबर 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने फिर मुख्तार को पांच साल के कठोर कारावास और 50 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया। यह मुकदमा लखनऊ के हजरतगंज थाने में गैंगस्टर एक्ट के तहत वर्ष 1999 में दर्ज किया गया था। 15 दिसंबर 2022 को गाजीपुर के अपर जिला व सत्र न्यायालय चतुर्थ की अदालत ने मुख्तार को 10 वर्ष की सजा और पांच लाख रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। गैंगस्टर एक्ट के तहत यह मुकदमा वर्ष 1996 में गाजीपुर के कोतवाली थाने में दर्ज हुआ था। 29 अप्रैल 2023 को गाजीपुर के एडीजे-4/एमपी-एमएलए कोर्ट ने 10 वर्ष के सश्रम कारावास और पांच लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया। यह मुकदमा गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किया गया था। 5 जून 2023 को वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को आजीवन कारावास और एक लाख 20 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया है। यह मुकदमा तीन अगस्त 1991 को वाराणसी के चेतगंज थाने में हत्या और बलवा सहित अन्य आरोपों के तहत दर्ज किया गया था। माफिया मुख्तार अंसारी पर कार्रवाई की बात आती है तो मौजूदा समय में आजमगढ़ के पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य का नाम पूर्वांचल के लोगों की जुबान पर सबसे पहले आता है। आईपीएस अनुराग आर्य ने 2019-20 में मऊ के पुलिस अधीक्षक के तौर पर मुख्तार अंसारी और उसके गिरोह के खिलाफ अभियान चलाकर ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी। वर्ष 2014 के बाद 2020 के जनवरी महीने में मुख्तार अंसारी के खिलाफ पूर्वांचल में पहली बार मऊ जिले के दक्षिणटोला थाने में मुकदमा दर्ज किया अनुराग ने अपने कार्यकाल के दौरान मऊ में मुख्तार अंसारी गिरोह से जुड़े 26 लोगों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई कराई। मुख्तार अंसारी के शॉर्प शूटर अनुज कन्नौजिया का चिरैयाकोट क्षेत्र स्थित घर गैंगस्टर एक्ट के तहत ढहवा दिया। मऊ में संचालित अवैध स्लाटर हाउस बंद करवाए। इसके बाद पूरे पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी और उसके गिरोह से जुड़े लोगों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई की गई।
माफिया मुख्तार अंसारी का आपराधिक इतिहास लगभग 37 साल का है। मुख्तार अंसारी के खिलाफ वर्ष 1978 में पहली बार आपराधिक धमकी के आरोप में गाजीपुर के सैदपुर थाने में एनसीआर दर्ज की गई थी। मुख्तार की जन्मतिथि के अनुसार उस समय उसकी उम्र लगभग 15 वर्ष रही होगी। इसके बाद लगभग आठ वर्ष तक उसका नाम किसी भी आपराधिक घटना में सामने नहीं आया। वर्ष 1986 में मुख्तार अंसारी का नाम हत्या के मामले में सामने आया और मुहम्मदाबाद थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद जरायम जगत में मुख्तार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। माफिया मुख्तार अंसारी जरायम जगत में अपनी मनमर्जी और बेखौफ तरीके से वारदात को अंजाम देने के लिए कुख्यात रहा है। इसलिए जब वह किसी आपराधिक वारदात को अंजाम देने की ठान लेता था तो अपने गुर्गों से कहता था कि हनुमान गेयर लगावत हई...। हनुमान गेयर लगावत हई कहने से मुख्तार अंसारी का तात्पर्य यह रहता था कि अब जो कुछ हो जाए, लेकिन वारदात को अंजाम देना ही है। यह मुख्तार का इतना चर्चित सूत्र वाक्य है कि इसके बारे में गाजीपुर और मऊ के उसके कई करीबी भलीभांति वाकिफ हैं। गाजीपुर के मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद राय हत्याकांड, अवधेश राय हत्याकांड, कपिलदेव सिंह हत्याकांड, कोयला व्यापारी नंद किशोर रूंगटा का अपहरण व हत्या, मन्ना सिंह हत्याकांड, राम सिंह मौर्य व सिपाही सतीश कुमार हत्याकांड, कृष्णानंद राय हत्याकांड और मऊ दंगे जैसे प्रदेश और देश की चर्चित घटनाओं में मुख्तार का नाम सामने आया। इनमें से कई मामलों में मुख्तार अंसारी को अदालत से राहत भी मिली। वर्तमान समय में मुख्तार अंसारी पर दर्ज मुकदमों की संख्या 61 है। मुख्तार अंसारी वर्ष 2004 में एक भगोड़े सिपाही से सेना की चुराई गई लाइट मशीन गन यानी एलएमजी खरीदने की तैयारी में था। इसका खुलासा एसटीएफ के तत्कालीन डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने चौबेपुर क्षेत्र में छापा मार कर किया था। प्रकरण में मुन्नर यादव और बाबूलाल यादव को गिरफ्तार कर किया था। उनके पास से एलएमजी के साथ 200 कारतूस बरामद हुए थे। दोनों ने पूछताछ में बताया था कि मुख्तार एक करोड़ रुपये में एलएमजी खरीदने को तैयार था। इस प्रकरण में मुख्तार अंसारी के साथ ही गिरफ्तार दोनों आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। इस घटना के बाद शैलेंद्र सिंह पर ऐसा राजनीतिक दबाव पड़ा कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। माफिया मुख्तार अंसारी के फैलते साम्राज्य को बनारस से हर बार मात मिली। ब्रिजेश सिंह गैंग के वर्चस्व की वजह से माफिया बनारस में ज्यादा सक्रिय नहीं हो पाया था। सियासी विजय रथ भी 2009 में धराशायी हो गया था। अब आजीवन कारावास से खौफ मिट्टी में मिल गया है।
अपराधी से सियासत तक का सफर
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में राजनीति में प्रवेश करने का प्रयास किया, मगर यहां उसे बहुत आधार नहीं मिला तो वह गाजीपुर लौट गया। वहां सबसे पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से मुख्तार ने राजनीति में भाग्य आजमाया और उसे पहली बार गाजीपुर सदर सीट पर उसे हार मिली। 1996 में उसने बसपा का दामन थामा और इसके बाद वह लगातार पांच बार विधायक बना। हालांकि वर्ष 2010 में बसपा चीफ ने मुख्तार को पार्टी से निकाल दिया था और उसने कौमी एकता दल नाम की पार्टी बना ली थी। वर्ष 2017 के चुनाव से पहले कौमी एकता दल का विलय फिर बसपा में हो गया था। मुख्तार अंसारी ने बनारस में खुद को मजबूत करने के लिए कई बार प्रयास किया। लोकसभा चुनाव 2009 में तो बनारस के लिए दुर्भाग्य की तरह दिखने लगा था। काशी में यदि माफिया चुनाव जीत जाता तो सोचिए क्या छवि हमारे शहर की बनती। भगवान का शुक्र था कि कड़ी टक्कर में उसे हार मिली और हम सब ने राहत की सांस ली थी। एसटीएफ में रहने के दौरान कई बार मुख्तार अंसारी के गैंग के खिलाफ कार्रवाई की। राजनीतिक संरक्षण होने के कारण हमारे ऊपर दबाव भी रहता था। मुख्तार अंसारी के खिलाफ वाराणसी के न्यायालय के आजीवन कारावास की सजा अपराधियों के खिलाफ नजीर है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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