- तलाशी जाएगी चुनाव जीतने की रणनीति पर न्यूनतम सहमति की राह
आज से लगभग आठ साल पहले इसी तरह एक अण्णे मार्ग में भाजपा विरोधी नेताओं का जमावड़ा लगा था। 20 नवंबर, 2015 को। महागठबंधन सरकार के मुखिया के रूप में नीतीश कुमार ने गांधी मैदान में शपथ ली थी। इस शपथ समारोह में भी सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए थे। इन नेताओं के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन अण्णे मार्ग में किया गया था। आठ साल बाद आज फिर उन्हीं नेताओं के लिए भोज का आयोजन किया गया है। इस खबर के साथ आप जो तस्वीर देख रहे हैं, वह 20 नवंबर, 2015 के दिन गांधी मैदान में आयोजित शपथ समारोह की है। शपथ समारोह में शामिल बहुत सारे नेता आज फिर से पटना पहुंच रहे हैं। बस मकसद बदल गया है। आठ साल पहले लोग नीतीश कुमार को शपथ दिलाने आये थे और आज भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘बे-पथ’ करने की रणनीति बनाने जुट रहे हैं। दरअसल इस दौड़ में नीतीश कुमार 8 साल पिछड़ गये हैं। 2015 में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण के साथ भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की संभावना पैदा हुई थी। राजनीतिक गलियारे में लोग इसी तरह ले रहे थे। लालू यादव की पार्टी राजद के साथ कुछ महीने रहने के बाद नीतीश कुमार की अंतरात्मा जगी। ईमानदारी का विस्फोट हुआ। मीडिया वालों ने नीतीश कुमार का ‘छवि क्षरण’ का ऐसा आडंबर गढ़ा कि वे उसी में अंधुआ गये। उन्हें अहसास हुआ कि राजद के साथ उनकी राजनीतिक राह विलुप्त हो जाएगी। उन्होंने भाजपा नेताओं के साथ संपर्क साधा और फिर भाजपा के साथ सत्ता में आ गये। इतना ही नहीं, 2017 में शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने 31 अगस्त को पहला पीसी किया और घोषणा कर दी कि नरेंद्र मोदी को हराना किसी के वश में नहीं। और लगभग 6 साल फिर से नरेंद्र मोदी को परास्त करने बात कर रहे हैं। उसके लिए राष्ट्रव्यापी विपक्षी एकता का राग अलापने लगे हैं और सुर मिलाने के लिए संगत का आयोजन कर रहे हैं।
भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता का कोई वैचारिक आधार नहीं है और न कोई राष्ट्रव्यापी मुद्दा है। मुद्दे में न महंगाई है, न बेरोजगारी है। वजह साफ है कि आज की बैठक में शामिल सभी नेता सत्ता का सुख भोग चुके हैं। इसमें कुछ आज भी सत्ता में हैं और कुछ पहले सत्ता का आनंद उठा चुके हैं। आज की बैठक में शामिल होने वाली अधिकतर पार्टियां भाजपा के साथ केंद्र या राज्य में सत्ता भोग चुकी हैं। इसलिए भाजपा के वैचारिक विरोध का कोई मजबूत आधार नहीं है। आज की होने वाली बैठक से कोई विकल्प निकलकर आने की संभावना नहीं है। लेकिन विकल्प पर विमर्श जरूर शुरू होगा। चुनाव जीतने की रणनीति पर न्यूनतम सहमति की राह तलाशी जाएगी। कांग्रेस को छोड़ दें तो अन्य सभी पार्टियों का प्रभाव या आधार क्षेत्र एक या दो राज्य तक सीमित है। कुछ राज्यों में कांग्रेस का राज्य स्तरीय पार्टियों के साथ सीधा मुकाबला है, उन राज्यों में लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ फार्मूला तय हो सकता है। यह मंथन लंबी चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन इतना तय है कि नीतीश ने 2017 में भाजपा के साथ जाकर विपक्षी खेमे में अपनी विश्वसनीयता खोयी है, उसे हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी। लालू यादव के साथ मिलने के कारण ही विपक्षी दलों को नीतीश कुमार की पहल पर भरोसा है। विपक्षी एकता की पहल नीतीश कुमार ने की है। इसका सार्थक और निर्णायक परिणाम भी आये, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी भी नीतीश कुमार की ही है।
— बीरेंद्र यादव न्यूज—
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