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उत्तराखण्ड राज्य के रूरल डेवलपमेंट और माइग्रेशन कमीशन के अनुसार राज्य के ग्रामीण इलाकों में जहां तापमान बढ़ रहे हैं, वहीं शैक्षणिक संस्थान, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव व आधुनिक सुविधाओं की कमी से पलायन में भी तेज़ी आ रही है. जिसके कारण वर्ष 2011 तक 734 ग्राम पूर्ण रूप से खाली हो चुके है. स्थिति यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों का तापमान एलिवेशन डिपेंडेंट वार्मिंग के चलते सबसे अधिक तेजी से बढ़ रहा है जिसका कारण क्लाउड कवर और एटमाॅस्फेरिक तथा सरफेस वाॅटर वेपर में होने वाले बदलाव है. जर्मनी आधारित पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फाॅर क्लाइमेट रिसर्च और द एनर्जी एन्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली द्वारा किये गये अध्ययन लाॅक्ड हाउसेज, फैलो लैंड्सः क्लाइमेट चेंज एण्ड माइग्रेशन इन उत्तराखण्ड, इंडिया में ये बाते सामने आयी. अध्ययन में मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान दिया गया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे बढ़ते तापमान, ग्लेशियरों के पिघलने और वर्षा के पैटर्न के बदलने से किस तरह राज्य की आजीविका पर असर पड़ रहा है और लोग पलायन को मजबूर हो रहे है? द एनर्जी एन्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट नई दिल्ली द्वारा निकट भविष्य 2021-2050 में राज्य का औसत वार्षिक अधिकतम तापमान मीडियम वार्मिंग आरसीपी 4.5 पाथवे के तहत 1.6 डिग्री सेल्सियस और हाइयर वार्मिंग आरपीसी 8.5 के तहत 1.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. वायुमण्डल में मानवीय उत्पादों के चलते ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढेगी व जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण बनेगी. बढ़ते तापमान के कारण ग्रामीण जनजीवन में हो रहे बदलाव की चर्चा करते हुए अल्मोड़ा के लमगड़ा विकासखण्ड स्थित सांगड़ साहू गांव के युवा सरपंच दीपक साह बताते है कि उन्होने बचपन में अपने गांव के चारों ओर घने बांज के जंगल को देखा और 25 वर्ष के बदलाव में वह जंगल चीड़ व अन्य प्रजातियों से कवर हो गये हैं. गांव में पहले जो फसलें हुआ करती थी अब उसे बाजार से खरीदनी पड़ रही है. इतनी अधिक गर्मी होती है कि जंगलों में हर वर्ष आग लग जाती है जिसमें व्यक्ति व जानवरों को काफी नुकसान भी होता है.
अप्रैल, 2023 में लमगड़ा ब्लॉक के कई वन पंचायतों में लगी भीषण आग के कारण क्षेत्र से लगे 16 गांवों के कई घरों को नुकसान हुआ. साथ ही कई जंगली जानवरों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा. इस आग से लगभग 80 हेक्टेयर जंगली ज़मीन को नुकसान हुआ जिसमें कई वनस्पति के साथ चारा घास जलकर खाक हो गयी. इस प्रकार की आग से ग्रामीण दहशत में रहते हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी के चलते जल की समस्या ग्रामीण समुदाय के सामने होने लगी है. ऐसी स्थिति हो गयी है कि ग्रामीण गांव छोड़ने को मजबूर होने लगे हैं. वर्तमान में कई गांव ऐसे हैं जहां के लगभग 50 प्रतिशत परिवार शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं. पानी की लगातार कमी के चलते फसलों की उपज में गिरावट के कारण लोगों की आय में गिरावट आ रही है, जिससे वह पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. नैनीताल स्थित सेलालेख गांव के किसान खजानचन्द्र मेलकानी बताते हैं कि मौसम के बदलाव के चलते पर्वतीय क्षेत्रों के कृषि उत्पादन में लगातार गिरावट हो रही. समय से वर्षा का न होना और अत्यधिक तापमान से फसलें नष्ट हो रही हैं. वर्तमान समय में ग्रामीण को 75 प्रतिशत सब्जियों को बाजार से खरीदना पड़ रहा है जबकि आज से 15-20 वर्ष पूर्व यही सब्ज़ियां गांव में इतनी अधिक मात्रा में हुआ करती थी कि इन्हें बाहर बेचा जाता था. एक-एक घर में 100-150 कट्टे आलू, गोभी, शिमला मिर्च इत्यादि हुआ करती थी. जो वर्तमान में 5-6 कट्टों में अपने परिवार तक ही सीमित हो गयी है. उनके गांव से कभी फलों के सीजन में 10 ट्रक प्रतिदिन हल्द्वानी मंडी भेजे जाते थे जो वर्तमान में 01 ट्रक में सीमित हो गया है. जलवायु परिवर्तन के चलते ग्रामीण कृषि कार्य में भविष्य को न देखते हुए इससे विमुक्त हो रहे है और पलायन के लिए विवश होने लगे है.
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जलवायु परिवर्तन का असर राज्य से भारी संख्या में पलायन कर रही आबादी पर पड़ रहा है. लगभग 70 प्रतिशत आबादी वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है जो कि बहुत अधिक उत्पादक नहीं होता. बीते दो दशकों में जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट देखने को मिली है और आबादी पर राज्य से बाहर पलायन करने का दवाब बढ़ा है. अल्मोड़ा स्थित सिनौड़ा गांव की जानकी देवी का कहना है वह 70 की दहलीज पर होकर अपने पुराने मकान पर अकेली रह रही हैं जबकि उनके परिवार के अन्य लोग मैदानी क्षेत्र में रह रहे हैं. जिसका मुख्य कारण बदलता मौसम और कृषि में होने वाले बदलाव हैं. इस माह 03 जुलाई को पूरी दुनिया में सबसे अधिक गर्मी रिकॉर्ड की गई थी. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाला समय और भी मुश्किल भरा हो सकता है. पहाड़ पर लगातार मौसमों में हो रहे बदलाव इसकी चेतावनी भी दे रहे हैं. केवल शहरों की ओर पलायन इस समस्या का हल नहीं बल्कि समस्या को और भी बढ़ावा देना है. ऐसे में सरकार द्वारा इस प्रकार की नीतियों पर कार्य करने की आवश्यकता है जिसमें गांव का वातावरण भी प्रदूषण मुक्त हो जाए और लोगों का पलायन भी रुक जाए. पलायन के चलते आ रहे डेमोग्राफिक बदलावों के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है. साथ ही अर्थव्यवस्था को पुर्नजीविकत करने के लिए पर्वतीय इलाकों में आजीविका के वैकल्पिक साधनों को मुहैया करवाये जाने की ज़रूरत है. पलायन को ऐसे चयन के रूप में देखना होगा जिससे स्थानीय आबादियों को अपने रोजमर्रा के जीवन में लौटने और रोजी-रोटी की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिल सके.
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नरेन्द्र सिंह बिष्टहल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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