क्या है इनका पौराणिक महत्व :
महर्षि कर्दम व देवहुति के आत्मज कपिल मुनि जो विष्णु के अवतार कहे जाते हैं, ने मिथिलापुरी को दक्षपुत्री सती के शरीरांश गिरने व गिरिराज किशोरी पार्वती का जन्मभूमि होने के कारण परम पवित्र जानकर यहां के घनघोर जंगल एवं महाश्मसान के बीच पवित्र कमला नदी के किनारे आश्रम बनाया। जहां ज्ञान प्राप्ति के लिए कपिल ने शिवलिंग की स्थापना की, जो कपिलेश्वर नाम से विख्यात हुआ। इस शिवलिंग पूजन की परंपरा सहस्त्राब्दियों से है। महाभारत में इसका उल्लेख उन्हीं के वचनो में -कपिलेश्वर तत: प्राह सांख्यर्षिदेव सम्मत:, मया जग्मान्यनेकानि भक्त्या चाराधिता भव:, प्रीतश्च भगवान ज्ञानं ददौ भवान्तकम्। कपिल व कपिलेश्वर लिंग का वर्णन वृहद विष्णपुराण, श्वेताश्वतर उपनिषद, यामलसारोद्धार तंत्र सहित अनेक प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है। एक स्थान पर उल्लेख मिलता है कि सीताराम विवाह में शिव जनकपुर पधारे थे, जिससे इस शिवलिंग की प्राचीनता सिद्ध होती है।
विद्धानों की राय में कपिलेश्वर :
महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन कपिल को बुद्ध पश्चात मानते हैं किंतु गार्वे कपिल को बुद्ध पूर्व का ऐतिहासिक व्यक्ति बताते हैं। डॉ. राधाकृष्णन समेत अनेक विद्वानों के मत में कपिल बुद्ध पूर्व के सांख्यकार हैं। गीता एवं रामायण के अनुसार भी कपिलेश्वर शिव के प्रतिष्ठापक काफी प्राचीन ऋषि हैं। कपिल की बहन अनसूया ने अपने आश्रम में सीता को उपदेश दिया था। ऐतिहासिक प्रमाणों व जनश्रुतियों के आधार पर मुनिवर कपिल मधुबनी के समीन ककरौल गांव के वासी थे। वहीं उनका प्रसिद्ध आश्रम था। महाकवि विद्यापति कहते हैं-कत युग सहस वयस वहि गेला। कहा जाता है कि महाकवि विद्यापति का जन्म आशुतोष कपिलेश्वर की कृपाप्रसादात स्वरूप हुआ।
काम मोक्ष प्रदाता हैं कपिलेश्वर :
जनमानस में बाबा कपिलेश्वर नाथ काम मोक्ष प्रदाता हैं। कपिलेश्वर बाबा जगत के स्वामी, जगत किसान, त्रिभुवन दाता, संतान दाता, धान्य दाता, पशुपति, रोग शोक नाशक बैद्यनाथ, अधम उद्धारक आदि के रूप मे प्रसिद्ध हैं।
सावन में आते लाखों कांवरिए :
सावन के सोमवारी को जिले के जयनगर कमला नदी से कांवर में जल लेकर लाखों की संख्या में कांवरिए कमला जल से जलाभिषेक करते हैं। जो यहां से 30 किलोमीटर दूर है। दरभंगा महाराज के स्वामित्व में है मंदिर : यह मंदिर दरभगा महाराज के धार्मिक ट्रस्ट के अधीन है। महाराज दरभंगा ने धार्मिक न्यास के तहत 75 एकड़ जमीन दान देकर 25 एकड़ का विशाल सरोवर का निर्माण कराया।
चढ़ावा की राशि व दान से होता विकास :
कपिलेश्वर शिवालय परिसर का विकास मनौती पूरा होने पर दिए गए दान की राशि व चढ़ावा से प्राप्त राशि से होती है। मंदिर की पूजा-अर्चना, देखरेख आदि पंडों के जिम्मे है। दरभंगा राज द्वारा गुजारा के लिए शिवोत्तर भूमि मिली हुई है, लेकिन पांच शताब्दियां गुजर जाने पर परिवारों की संख्या में वृद्धि व जमींदारी उन्मूलन के बाद रैयती कानून में परिवर्तन को कारण शिवोत्तर भूमि अब नगण्य सी रह गई है। शिवालय के आसपास उचित देख रेख के अभाव में शिवोत्तर भूमि अतिक्रमित है। मंदिर के चहुंओर विभिन्न प्रकार की दुकाने बन जाने से सावन व शिवरात्रि में शिव भक्तों को मंदिर जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। धर्मशाला नहीं रहने से रात में विश्राम करना मुमकिन नहीं है।
कैसे पहुंचें इस धाम पर :
कपिलेश्वर शिवधाम पहुंचने के लिए मधुबनी जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर पश्चिम यह शिवधाम तीन पक्की सड़कों, मधुबनी बरास्ते रहिका, मधुबनी- ककरौल चौक-कपिलेश्वर स्थान एवं मधुबनी-सीमा-कपिलेश्वर स्थान से जुड़ा है। राजधानी पटना से जयनगर वरास्ते रहिका जाने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बस व अन्य वाहनों से चलकर आप पहुंच सकते है। यह धाम सड़क के किनारे स्थित है।
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