विशेष : औरंगजेब की क्रूर को बयां करता काशी का ’बिन्दु माधव मंदिर’ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 जुलाई 2023

विशेष : औरंगजेब की क्रूर को बयां करता काशी का ’बिन्दु माधव मंदिर’

धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में ज्ञानवापी प्रकरण सुर्खियों में है. लेकिन सच यह है कि औरंगजेब सिर्फ ज्ञानवापी को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई है, बल्कि उसने बेनी माधव सहित मंदिरों को तोड़ा है। हालांकि ये दोनों मामला अदालत है और सुनवाई भी हो रही. न्याय कब होगा ये तो अदालते जानें, लेकिन आस्थावानों में औरंगजेब की क्रुरता उनकी भक्ति एवं सहनशीलता को चैलेंज करती है। काशी विश्वनाथ के बाद अगर किसी दूसरे बड़े मंदिर को औरंगजेब ने निशाना बनाया, तो वह था पंचगंगा घाट स्थित ’बिंदु माधव का मंदिर’. अब यह मंदिर ’धरहरा मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है. काशी में बनी इस मस्जिद की दो मीनारों को लेकर यह दावा भी किया जाता है कि उन पर चढ़कर दिल्ली की कुतुबमीनार भी दिखाई पड़ती थी. हालांकि, अब से 100 साल पहले कमजोर होने के कारण इन मीनारों को गिरा दिया गया था 

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कहते है भगवान विष्णु जब काशी आएं थे तो सबसे पहले वे आदिकेशव गए थे. उसी दौरान पंचनद तीर्थ स्थल पर विष्णु की ही तपस्या कर रहे अग्नि बिंदु तपस्वी ने वर मांगा कि भगवान उनकी तपस्या स्थान पर ही निवास करें। ताकि लोग मोक्ष को प्राप्त कर सके। विष्णु जी ने उन्हें वचन दिया कि जबतक काशी है और यह ब्रह्मांड है तब तक वह पंचगंगा में ही निवास करेगें। यहां एक मंदिर बनेगा जिसका नाम तुम्हारे और मेरे नाम को मिलाकर रखा जायेगा. इसलिए इसका नाम बिंदुमाधव भी है. तभी से बिंदु माधव नाम से यह तीर्थ जाना जाने लगा. पंचगंगा घाट स्थित प्राचीनतम बिंदु माधव मंदिर मां गंगा के तट पर स्थित है। एक अन्य मान्यता के अनुसार बिंदु ऋषि नेपाल में गण्डकी नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे। तभी विष्णु देवता प्रकट हुए और ऋषि को आदेश दिया कि काशी में मेरे नाम का एक मंदिर निर्माण कराओ जिसमें गण्डकी नदी की मिट्टी से मेरी प्रतिमा स्थापित की जाए.यह हजार साल पुराना मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु का विग्रह है जहां सनातन हिंदू धर्म को मानने वाले लोग नित्य पूजन-अर्चन, राग-भोग व आरती करते हैं। इसका उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने भगवान शिव के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उन्हें दान के रूप में काशी दे दी। भगवान शिव ने काशी का आधा भाग, जो उन्हें भगवान विष्णु से प्राप्त हुआ था, वापस भगवान विष्णु को दे दिया। मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने भगवान विष्णु के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए विष्णु कुंड का निर्माण किया। इसलिए, काशी को मणिकर्णिका घाट और आदिकेशव घाट के बीच विष्णु काशी और मणिकर्णिका घाट से अस्सी घाट तक शिव काशी कहा जाता है। कहते है जो भी भक्त दोपहर 12 बजे इस कुंड में स्नान करता है वह पुनर्जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। चूंकि भगवान शिव की मोती से जड़ी बालियां एक बार इस कुंड में गिरी थीं, इसलिए विष्णु कुंड को मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जाना जाता है।


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कार्तिका (अक्टूबर से नवंबर) का पवित्र महीना, जो बिंदु माधव मंदिर में मनाया जाता है। माना जाता है कि कार्तिक माह के दौरान व्यक्ति को भगवान बिंदु माधव की पूजा करनी चाहिए और सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद ब्रह्म-मुहूर्त के दौरान पंच-गंगा घाट में डुबकी लगाते हुए भगवान को दीप अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से भक्तों के पूर्वजों को जन्म और मृत्यु (मोक्ष) के चक्र से मुक्ति मिल जाता है। भगवान विष्णु के निवास वैकुंठ का वह वासी हो जाता है। कार्तिक महीने (अक्टूबर से नवंबर) के दौरान सुबह 4ः00 बजे मंगला-आरती होती है। इसके बाद सुबह 4ः30 बजे माखन-आरती, सुबह 5ः00 बजे श्रीखंड-आरती और सुबह 6ः00 बजे श्रृंगार-आरती होती है, जो शरद पूर्णिमा के दिन से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक होती है। शेषशायी श्रृंगार, इन आरतियों और अन्य सेवाओं के साथ, देवोत्थानी एकादशी पर होता है जिसके बाद भगवान चातुर्मास्य के बाद आने वाली द्वादशी को जागते हैं। तुलसी विवाह के बाद द्वादशी को भगवान बिंदु माधव के विग्रह को घोड़े पर बैठाया जाता है। त्रयोदशी के दिन भगवान को झूलन सेवा अर्पित की जाती है। रात के समय भगवान का वैकुंठ अभिषेक किया जाता है। पूर्णिमा के दिन दोपहर के समय हाथी की सवारी की जाती है और पंचामृत अभिषेक के बाद 56 व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। भगवान बिंदु माधव का उत्सव विग्रह शाम 6ः00 बजे मनाया जाता है।


1669 में औरंगजेब ने तोड़वाया

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मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है जो माथे पर शंख और चक्र के साथ दिखाई देते हैं। मंदिर का वास्तुकला शैली नगर का है और इसके गोपुरम और भवन में अद्भुत संगम होता है। मंदिर के बाहर एक छोटा सा तालाब है जिसे कुंड कहा जाता है। बिंदु माधव मंदिर के आसपास कई अन्य मंदिर भी हैं, जैसे श्री राधा कृष्ण मंदिर, श्री काली मंदिर और श्री अंजनी देवी मंदिर। इन मंदिरों को भी दर्शन करना धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव का एक अच्छा साधन होता है। इस मंदिर की महत्ता को देखते हुए औरंगजेब ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के दौरान 1669 में बिंदु माधव का प्राचीन मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी। इसके बाद औंध नरेश ने मंदिर से बिंदु माधव की मूर्ति को बगल में एक अन्य जगह स्थानांतरित करा दिया था, जहां पर अभी भी बिंदु माधव की पूजा होती है। जबकि पहले वाली मंदिर जो आल मस्जिद कहीं जाती है, वहां अनधिकृत रूप से नमाज अदा की जाती है। आज भी मौके का अवलोकन करने से स्पष्ट पता चलता है कि पुराने मंदिर के अवशेष पर मुस्लिम उपासना स्थल का निर्माण कराया गया है। वर्तमान में जो बिंदु माधव का मंदिर है, उसे 17वीं शताब्दी में आमेर के राजा मानसिंह ने बनवाया था। दावा है कि धरहरा मस्जिद के नीचे तहखाने की जांच की जाएं तो वहां भी बहुत सारे अवशेष (शिवलिंग और विष्णु की मूर्तियां) मिलेंगी. पहले यहां बिंदु  माधव यानी विष्णु के रूप की पूजा होती थी और बहुत विशाल मंदिर था. जहां बिंदु माधव का मंदिर है, उसे विष्णु क्षेत्र कहा जाता है जिस घाट पर यह स्थित है उसे पंचनद तीर्थ कहा जाता है. खासकर घाट वाले हिस्से में जाने पर मंदिर के अवशेष दिखाई पड़ेंगे. यहां कभी एक शिलालेख हुआ करता था, जिस पर लिखा हुआ था कि मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण करवाया. वह शिलालेख अब दिखाई नहीं पड़ता है. दावा है कि जहां मस्लिद है वहीं पर 1580 में रघुननाथ टंडन ने मंदिर बनवाया था। इसका जिक्र मत्स्य पुराण में भी मिलता है.


शिवाजी के दबदबे से आक्रोशित था औरंगजेब 

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कहा जाता है कि जब औरजेब की जेल से शिवाजी सुरक्षित निकलकर काशी आएं और काशी से भी सुरक्षित चले गए, तो उसके क्रोध की ज्वाला दहक उठी और काशी के मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था। क्षेत्रीय दस्तावेजों के मुताबिक औरंगजेब ने 1669 में तोड़कर आलमगीर मस्जिद तामीर करवाई. इसके अलावा ओंकारेश्वर और लाटभैरव मंदिर को भी उसने तोड़वाया था। वाराणसी के सिविल जज जूनियर डिवीजन आकाश वर्मा की अदालत में एक याचिका राहुल मिश्र व अन्य 4 व्यक्तियों ने दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं ने वाराणसी गैजेटियर 1965 के हवाला दिया है। इसके पृष्ठ संख्या 57 पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और पंच गंगा घाट स्थित बिंदु माधव मंदिर के ध्वस्तीकरण का उल्लेख है। गैजेटियर में लिखा है कि औरंगजेब के आदेश के बाद दोनों को गिराया गया था। मंदिर गिराने के बाद मुस्लिमों ने वहां मुस्लिम उपासना स्थल का निर्माण कराया। ये उपासना स्थल आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन है। इसके बावजूद वहां पर मुस्लिम प्रवेश करते हैं और हिंदुओं को पूजा करने से रोकते हैं। यहां बनारस की सबसे ऊंची इमारत थी, क्योंकि इसमें दो सबसे ऊंची मीनारें थीं। लेकिन इसे कमजोर हो जाने के चलते लगभग 100 साल पहले गिरा दिया गया था। ऐसा कहा जाता है कि उन मीनारों से दिल्ली का कुतुब मीनार तक दिखाई पड़ता था।


बिन्दुमाधव मंदिर की दास्ता इतिहासकारों की जुबानी

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इतिहासकार बताते हैं कि 12वीं सदी के बाद भगवान विष्णु के दो मंदिर सबसे प्रमुख है आदि केशव और बिंदु माधव। तथ्य पुराणों के अनुसार आदि केशव उत्तर और बिंदु माधव दक्षिण के मूल काशी में स्थित थी। आज भी मस्जिद के भीतर में सूंड, कमल चिन्ह है, जो इशारा करते हैं है कि ये कभी मंदिर ही था। दो सितंबर 1669 में औरंगजेब के स्थानीय प्रमुख ने पत्र लिख कर उसे सूचित किया था कि मंदिर गिरा दिया है। 1958 में धरहरा में एक लीकेज भी सही कराया था। इसी दौर में तीन महीनों के भीतर काशी विश्वनाथ मंदिर समेत तीन प्रमुख मंदिर तोड़े गए थे, जिनमें से एक बिंदु माधव मंदिर था। मंदिर तोड़े जाने के बाद 1672 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्तमान बिंदु माधव मंदिर का पुनर्निर्माण किया। उसके गर्भगृह में भगवान बिंदु माधव के देवता को वापस अंदर रख दिया गया। कहते है औरंगजेब के सैनिकों से बचाने के लिए तत्कालीन पुजारियों ने मूर्ति को 1669 से 1672 तक गंगा नदी में डुबोए रखा। 1665 में काशी आए फ्रांसीसी यात्री तावर्निये ने इसकी भव्यता का वर्णन करते हुए इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर जैसा बताया है। उसके अनुसार यह मंदिर पंचगंगा घाट से रामघाट तक फैला हुआ था। इसके अहाते के अंदर श्रीराम और मंगला गौरी मंदिर तथा पुजारियों के रहने के मकान थे। मंदिर के धरहरों (मीनार जैसे ऊंचे शिखर) की चौड़ाई जमीन पर सवा आठ फुट व शिखर पर साढ़े सात फुट थी। इनकी ऊंचाई 147 फुट दो इंच थी। आज भी मस्जिद की कुरसी गंगा से करीब 90 फुट ऊंचाई पर है। गोस्वामी तुलसीदास के समय में बिंदु माधव मंदिर मौजूद था। उन्होंने विनयपत्रिका के 49वें पद से लेकर 61वें पद तक मंदिर व उसमें स्थापित विष्णु प्रतिमा के दिव्य स्वरूप का वर्णन किया है। 61वें पद में वह लिखते हैं कि - “सकल सुखकंद आनंदवन-पुण्यकृत, बिंदुमाधव द्वंद्व विपतहारी...”। 1901 में भारतीय पुरातत्व के बहुत बड़े ज्ञाता ब्रिटिश प्रोफेसर आलचिन ने अंग्रेजी भाषा में इन पदों का अनुवाद कर मंदिर व प्रतिमा की भव्यता को सटीक बताया है। तावर्निये ने भी इसके सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया है। तावर्निये ने लिखा है- ’बिंदु माधव का मंदिर स्वास्तिक के आकार का था। इसकी चारों भुजाएं समान थीं। एक गुंबद के ऊपर नोकदार शिखर था। मंदिर की चारों भुजाओं पर ऊंची मीनारें थीं, जिन पर चढऩे के लिए बाहर सीढिय़ां थीं। मीनारों के शीर्ष तक पहुंचने के मार्ग में भीतर हवा आने के लिए कई झरोखे और ताखे थे। मीनार (धरहरा) के शिखर के नीचे और मंदिर के ठीक बीच में सात से आठ फीट लंबी और पांच से छह फीट चौड़ी एक वेदिका थी। मंदिर के बाहर से मूर्तियां स्पष्ट दिखाई देती थीं। इस वेदिका के समीप स्थापित मूर्तियों में एक पांच या छह फीट की थी। कभी-कभी मूर्ति के गले में सोने अथवा माणिक, मोती अथवा पन्ने की माला भी दीख पड़ती थी। वेदिका के बाईं ओर गरुड़ की प्रतिमा थी। कहावत थी कि इस पर चढ़कर भगवान सारे संसार की सैर करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार और प्रधान द्वार के बीच एक दूसरी वेदिका पर संगमरमर की पालथी मारे एक मूर्ति प्रतिष्ठित थी।





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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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