’यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।’ गुरु का स्थान सर्वोधा होता है। इस बार गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई, सोमवार को है। गुरु पूर्णिमा के दिन इस बार कई शुभ योगों का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन ब्रह्म योग और इंद्र योग बनेंगे. वहीं, सूर्य और बुध की युति से बुधादित्य योग का निर्माण भी होने जा रहा है. ब्रह्म योग 02 जुलाई को शाम 07 बजकर 26 मिनट से 03 जुलाई दोपहर 03 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. इंद्र योग की शुरुआत 03 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 45 मिनट पर शुरु होगा और इसका समापन 04 जुलाई को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि 3000 ई. पूर्व गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है. भगवान विष्णु जी के अंशावतार भगवान वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन हैगुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के आशीर्वाद से धन संपत्ति, सुख शांति और वैभव का वरदान पाया जा सकता है. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का सत्कार करना चाहिए. इससे आपको धन, शिक्षा, सुख और शांति मिलेगी. गुरु हमें सदमार्ग पर चलना सिखाते हैं, इसलिए गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है। गुरू अपने शिष्यों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है। गुरू ही हमारा सधा हितैषी होता है। अतः जीवन में गुरू का वरण अवश्य करना चाहिए। गुरू के बिना आत्मकल्याण संभव नहीं है। जीवन में गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा होता है। वेद व्यास महाभारत युग में पैदा हुए थे। उन्होंने ब्रहृमसूत्रों की रचना की थी। उन्होंने महाभारत सहित पुराण भी लिखे थे। गुरु पूर्णिमा पर्व हमारे राष्ट्र के प्राचीन गौरव, सभ्यता और इतिहास परंपरा का प्रतीक स्वरूप है। अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रुपी प्रकाश से जीवन को सफलता के उजाले की ओर ले जाने का कार्य गुरु के आशीर्वाद से ही संभव होता है। गुरु शब्द ही अपने आप में ज्ञान रूपी प्रकाश का पर्याय है क्योंकि संस्कृत में ’गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ’रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है. माना जाता है कि गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ होता है. गुरु भगवान से भी ऊपर होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वो गुरु ही होता है जो व्यक्ति को अज्ञानता के अंधकार से उबारकर सही रास्ता दिखाता है. मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है क्योंकि सबसे पहले मनुष्य जाति को वेदों की शिक्षा उन्होंने ही दी थी. इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भागवत, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा के अलावा 18 पुराणों का रचियाता माना जाता है. यही वजह है कि महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है. गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा होती है. सर्वप्रथम एक ही वेद था। जब इन्होंने धर्म का ह््रास होते देखा तो इन्होंने वेदों का व्यास कर अर्थात उनका विभाग कर वेदों का ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद आदि नामों से नामकरण किया। इस प्रकार वेदों का व्यास करने से ये कृष्ण द्वैपायन से महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। महर्षि वेद व्यास जी ने इसके अलावा वेदों के अर्थ को लोक व्यवहार में समझाने के लिए पंचम वेद के रूप में महाभारत ग्रन्थ के अलावा अठारह पुराणों के रूप में अद्वितीय वैदिक धर्म ग्रन्थों की रचना की। इस प्रकार समस्त वैदिक ज्ञान निधि को एक सूत्र में पिरोने वाले सूत्रधार महर्षि वेद व्यास जी की जयन्ती गुरु पूर्णिमा दिवस के रुप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु जी के अंशावतार भगवान वेद व्यास जी का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है। द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन रखा गया। इनके पिता ऋषि पराशर जी तथा माता सत्यवती थीं। भगवान वेद व्यास जी ने अपनी तपस्या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्तार करके इस लोकपावन पवित्र इतिहास का निर्माण किया है। जब इन्होंने मन ही मन ‘महाभारत’ की रचना कर ली तब उन्होंने विघ्नेश्वर गणेश जी से प्रार्थना की कि आप इसके लेखक बन जाइए, मैं बोलकर लिखाता जाऊंगा। तीन वर्षों के अथक परिश्रम से इन्होंने महाभारत ग्रन्थ की रचना की। देवर्षि नारद जी ने देवताओं को, असित और देवल ऋषि ने पितरों को इसका श्रवण कराया है। शुकदेव जी ने गन्धर्वों एवं यक्षों को तथा इस मनुष्य लोक में महर्षि वेद व्यास के शिष्य धर्मात्मा वैशम्पायन जी ने इसका प्रवचन किया है। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा अर्जुन को माध्यम बनाकर लोक कल्याण के लिए प्रदान किया गया श्री मद्भगवद्गीता जी का पावन उपदेश भी संकलित है।
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।
अर्थात्- व्यास विष्णु के रूप हैं तथा विष्णु ही व्यास हैं ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज का मैं नमन करता हूँ।
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।
अर्थात्- जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास जी को मेरा नमस्कार है।
जिसने गुरु को जाना, वो परमात्मा को पाया
जिस किसी ने गुरु की महत्ता को समझा, परखा व अनुशरण किया है उसे जरुर ईश्वर का साक्षात दर्शन कर लिया होगा। वैसे भी भारत में गुरु-शिष्य की महान परंपरा रही है। ऋषि संदीपन और शिष्य भगवान कृष्ण, विश्वामित्र और श्री राम, द्रोणाचार्य और अर्जुन के बारे में सब जानते हैं, लेकिन ऋषि धौम्य के शिष्यों आरुणि, उद्दालक और उपमन्यु को जो स्थान अपने गुरु की सेवा से मिला, वह सनातन धर्म में सर्वोत्कृष्ट है। सूफी इस्लाम में भी जिन महान गुरु-शिष्यों की परंपरा भारत में प्रसिद्ध रही है वे हैं : मोइनुद्दीन चिश्ती और उनके शिष्य कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, काकी के शिष्य निजामुद्दीन औलिया, औलिया के शिष्य अमीर खुसरो। अमीर खुसरो की गुरु भक्ति के बारे में तो कहा जाता है कि वह अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के निधन से इतने व्यथित हो गए थे कि उनके साथ ही यह कहते हुए चल बसे कि ‘गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस, चल खुसरो घर आपने, अब रैन भई चहुं देस।’ गुरु पूर्णिमा पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से गुरु का दर्शन पूजन कर लिया उसे जरुर मिलेगी गुरु की कृपा। उसे मिल जायेगा धन-दौलत का आर्शीवाद। इस दिन माता-पिता की सेवा करने वालों से भी परमात्मा प्रसन्न होते हैं। हालांकि गुरु एवं माता पिता की सेवा गुरुपूर्णिमा ही नहीं हर रोज करनी चाहिए। लेकिन गुरु पूर्णिमा पर भक्तों की झोली भरते है गुरुजन। धर्म जीवन में तभी सुख दे सकता है, जब धर्म करने वाले में असहाय एवं निर्बल के प्रति दया कि भावना हो। सत्य का मार्ग दिखाने वाला ही सर्वश्रेष्ठ गुरु होता है। क्योंकि पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं होते है गुरु। यही वजह है कि गुरु के त्याग और तप को समर्पित है गुरु पूर्णिमा।गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना आत्मा नहीं!
गुरु पूर्णिमा ज्ञान के स्रोत के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। गुरु पूर्णिमा यानी गुरु को नमन करने का दिन है। गुरु पूर्णिमा का पावन महापर्व नई चेतना, नया उल्लास और नई तरक्की का संदेश लेकर शिष्य के समक्ष प्रस्तुत होता है। उसके जीवन में नूतन प्राण फूंकने, आध्यात्मिक कायाकल्प करने व समर्पण को विकसित करने के लिए आषाण माह में पूर्णिमा के दिन इस पावन पर्व का शुभ आगमन होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी रही है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। सदा से ही गुरु शिष्य का रिश्ता अनूठा, अनुभव और मधुर रहा है। गुरु के बिना शिष्य का जीवन अधूरा रहता है। उसका आध्यात्मिक विकास गुरु की कृपा से ही संभव हो पाता है। दुनिया के तमाम धर्मों और समाजों में पथ-प्रदर्शकों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती रही है। उस व्यक्ति की वंदना की जाती रही है जो हमें अपने जीवन के उद्देश्यों से अवगत कराए। हमें जीवन की सार्थकता का बोध कराए, हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाए। उस पथ-प्रदर्शक को कहीं ईसाई धर्म में मास्टर कहा गया है तो इस्लाम में पीर, तो सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में गुरु की उपमा दी जाती रही है। समस्त धर्मों में गुरु को माता-पिता से भी ऊंचा स्थान मिला है। गुरु की महानता की वजह से उन्हें तुलसी ने ‘गुरु शंकर रुपिणे’ कह कर उनका मान बढ़ाया है। गुरु की महत्ता सगुण-निर्गुण में ही नहीं, नास्तिक, न्याय और सांख्य परंपरा में भी उतनी ही रही है। यहां तक अवैदिक बौद्ध, सिख और जैन परंपराओं में भी गुरु को ईश्वर तुल्य स्थान दिया गया है। इसकी वजह यह है कि गुरु ज्ञान का स्रोत है। बिना ज्ञान के मनुष्य पशु के समान है। माता-पिता जन्म तो देते हैं, लेकिन ज्ञान लब्ध और लक्ष्य से परिपूर्ण बनाने का कार्य गुरु ही करता है। वही हमें ईश्वर से परिचय कराता है और प्रकाश रूपी ईश्वर की तरफ ले जाता है। गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय की अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है। आत्मज्ञान और कर्तव्य बताने वाले गुरू के प्रति आस्था प्रकट करने का पर्व है गुरू पूर्णिमा। जीवन में जो भी सुख, संपन्नता, ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता यह सब गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है।
गुरु पूर्णिमा का संबंध गुरु तत्व से है
गुरु पूर्णिमा का संबंध गुरु तत्व से है। गुरु का अर्थ है कि जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। यानी अज्ञान से ज्ञान की ओर। अब जो तत्व हमें ज्ञानवान बनाता है वह पूजनीय और वंदनीय होगा। गुरु तत्त्व किसी भी रूप में हम लोगों के सामने आ सकता है। एक उदाहरण लेते हैं कि अगर हम लोग किसी अनजान शहर में यात्रा कर रहे हैं, साथ ही हमें मार्ग नहीं पता है तो मोबाईल में नेवीगेशन खोलते हैं और वह हमको रास्ता दिखाता है। यह नेवीगेशन उस समय गुरु की भूमिका निभाता है। यही गुरु तत्व है। एक और उदाहरण से समझते हैं- कहीं मार्ग में जाते समय एक बालक हमको इशारा करके बताता है कि आगे रास्ता बंद है तो उस समय वह बालक भी गुरु तत्व की भूमिका निभा रहा है। गुरु पूर्णिमा पर केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े भाई-बहन या किसी सम्माननीय व्यक्ति को गुरु मानकर उनकी भी पूजा की जा सकती है। इस पर्व को अंधविश्वासों के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। बता दें, गुरुओं की पूजा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उनकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर पाता है। गुरुओं के बिना किसी भी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। इस वजह से गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। इस दिन केवल गुरु ही नहीं बल्कि घर में अपने बड़ों जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद लिया जाता है। सामान्यतः हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं, परन्तु वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है। जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से मुक्त कराके जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो, ऐसी सत्ता ही गुरु हो सकती है। हिंदू धर्म में गुरु होने की तमाम शर्तें बताई गई हैं, जिसमें से प्रमुख 13 शर्तें निम्न प्रकार से है। इसमें शांत, दान्त, कुलीन, विनीत, शुद्धवेषवाह, शुद्धाचारी, सुप्रतिष्ठित, शुचिर्दक्ष, सुबुद्धि, आश्रमी, ध्याननिष्ठ, तंत्र-मंत्र, विशारद, निग्रह-अनुग्रह आदि प्रमुख है। मतलब साफ है सर्वश्रेष्ठ गुरु वही होता है जो सत्य का मार्ग दिखाए। मानव मात्र के कल्याण के लिए प्रेरित करे। शास्त्रों में भी गुरु अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। ’’तमसो मा ज्योतिगर्मय“ अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का माध्यम है। जिससे सारूप्य मुक्ति मिलती है, तभी कहा गया- ’’सा विद्या या विमुक्तये।“ आज विश्वस्तर पर जितनी भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनका मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते ज्ञानंम।गुरु के तेज के आगे ईश्वर भी नतमस्तक
आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा इसलिए चुना गया क्योंकि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उच्चवल और प्रकाशमान होते हैं। उनके तेज के समक्ष तो ईश्वर भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते। गुरू पूर्णिमा का स्वरुप बनकर आषाढ़ रुपी शिष्य के अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है। या यूं कहे शिष्य अंधेरे रुपी बादलों से घिरा होता है जिसमें पूर्णिमा रूपी गुरू प्रकाश का विस्तार करता है। जिस प्रकार आषाढ़ का मौसम बादलों से घिरा होता है उसमें गुरु अपने ज्ञान रुपी पुंज की चमक से सार्थकता से पूर्ण ज्ञान का का आगमन होता है। जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह। आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों। शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी। यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है। कहते हैं इस दिन अगर गुरुजनों का दर्शन व आर्शीवाद जिसे मिल जाता है, उसके जीवन में कोई कामना अधूरी नहीं रहती। खास तौर पर गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त अपने गुरुजन को गुरु दक्षिणा देकर सात जन्म संवार लेते हैं। गुरु के दरबार में बड़े-छोटे का भेद नहीं होता। ना ही ऊंच नीच या गरीब-अमीर की खाई होती है। गुरु सबके हैं और सभी गुरु के। हमारी परंपरा में गुरु का बहुत महत्व हैं। गुरु सिर्फ ज्ञान के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि सन्मार्ग पर ले जाने के लिए भी गुरु की आवश्यकता होती है। इसीलिए हमारे यहां गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। गुरु की महिमा को समर्पित इस उत्सव में गुरु की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं, बल्कि घर में अपने से जो भी बड़ा है- माता-पिता, भाई-बहन आदि को गुरु का रूप समझ कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इसलिए मानव को उठते-बैठते, चलते-फिरते प्रभु का नाम लेना चाहिए। घर में पति और माता-पिता की सेवा करने वालों से परमात्मा भी प्रसन्न होते हैं।
खुशी खातिर दूसरों का शुक्रिया करना सीखिए
बाइबिल में कहा गया है, ‘जिन्हें भी ज्यादा मिला है, वह उन लागों के लिए है जिनके पास बिल्कुल नहीं है, यहां तक कि उनके पास जो कुछ भी होगा वह ले लिया जाएगा। यह बहुत निर्दयतापूर्ण बात लगती है लेकिन यही प्रकृति का नियम है। तो जीवन में खुशी के लिए दूसरों का शुक्रिया करना सीखिए। इसे ही लोग भाग्य कहते हैं। यह किसी के जीवन की चमक है। यह चमक दूसरों के प्रति भला मन रखने या उनके प्रति सदाशयता से आती है। कोई भी व्यक्ति जो दूसरों के साथ अच्छा महसूस करता है वह पूरे वातावरण में अपनी ऊर्जा को बांटता है। किसी भी तरह के शिकायती लहजे और असंतुष्टि के भाव से ज्ञान ही आपको बाहर निकाल सकता है। कोई गुरु (ज्ञानी पुरुष) हमेशा हमारे आसपास रहा है तभी हम कुछ सीख पाए हैं। कुछ चीजें हमने प्रयास से सीखी है तो कुछ अनजाने ही। मां हमारी पहली गुरु होती हैं और फिर विज्ञान से अध्यात्म तक, जन्म से मृत्यु तक गुरु का हमारे जीवन में अत्यंत महत्व बना रहता है। हमें हर क्षेत्र में पारंगत होने के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है। धर्म गुरु, जो हमें धार्मिक क्रियाकलापों में अनुशासित करते हैं। कुल गुरु, राज गुरु, विद्या गुरु और सद् गुरु इन सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
गुरु की जैसी शिक्षा वैसी ही होगा विचारों का सृजन
इस मौके पर गढ़वाघाट के स्वामी सरनानंद ने सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से बातचीत के दौरान बताया कि गुरु कभी साधारण नहीं होता। प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं। यही शब्द गुरुओं की महत्ता है और राष्ट्र निर्माण में गुरु की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है ये बच्चों से समझा जा सकता है, क्योंकि उन्हें जैसी शिक्षा मिलेगी वैसे ही विचारों का सृजन होगा। उसी के अनुरूप उसके व्यक्तित्व का निर्माण होगा। इसीलिए कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं, जिन्हें सवारने का प्रथम कार्य माता-पिता और घरवाले तो करते ही हैं विद्यालय और वहां के शिक्षकों की जिम्मेदारी कई गुना अधिक होती है। इसी कारण प्राचीन काल में गुरु-शिष्य परंपरा का बहुत महत्व था। गुरु का सम्मान प्रथम कर्तव्य माना जाता था। गुरु की कहीं हर बात शिष्य को शिरोधार्य होती थी। वही गुरु का एकमात्र उद्देश्य शिष्य को निखार कर एक जिम्मेदार नागरिक बनाना होता था, ताकि राष्ट्र निर्माण वह सशक्त भूमिका निभाएं। स्वामी सरनानंद जी महराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति को यदि हम एक विशाल आध्यात्मिक वटवृक्ष रूप में देखें, तो इसके अनंत संप्रदायों की चिंतनधारा में गुरु की प्रधानता सर्वत्र समान रूप से परिलक्षित होती है। गुरु अर्थात शिष्य के आमूलचूल रूपांतरण का आधार जब किसी शिष्य को सही गुरु और गुरु को सही शिष्य मिलता है तो कुछ ऐसा घटित होता है जिससे संस्कृतियों, परंपराओं, मान्यताओं व जीवन पद्धतियों में बदलाव आता है। इस तत्व को विकसित व फलित करने की एक परंपरा है, जो एक छोटी लेकिन प्रभावशाली प्रक्रिया से शुरू होती है, जिसे गुरु मंत्र कहते हैं। वास्तव में गुरुद्वारा शिष्यों को गुरुदीक्षा के समय दिया गया गुरुमंत्र ही शिष्यों के लिए नई पहचान और उड़ान का आधार बनता है। गुरुमंत्र गुरुओं द्वारा शिष्यों को दिया गया एक प्रकार का ब्रह्मकवच है, जिससे गुरु अपने शिष्य का उसके स्वयं से परिचय कराता है। इस नामकरण की युगो-युगो से चली आ रही परंपरा द्वारा शिष्य के जीवन में आमूलचूल रूपांतरण और नए व्यक्तित्व का निर्माण संभव हो पाता है।
गुरुमंत्र जाप से दूर होते है भ्रम
शिष्य जैसे जैसे गुरुमंत्र जप के सहारे जीवन की गहराई में उतरता है, वैसे-वैसे उसके जीवन से सभी प्रकार के भ्रम गायब होती जाती हैं। उसके अंतःकरण और व्यक्तित्व के सूक्ष्मतम में छिपी आध्यात्मिक शक्तियां उभरने लगती है। धीरे-धीरे उसके भीतर आत्मज्योति जल उठती है और उसे सब में अपना ही स्वरुप नजर आता है। इस दुरावमुक्त अवस्था पर पहुंचकर शिष्य को अपने गुरु की विराटतम गहराई का आभास होता है। इस प्रकार एक समय बाद गुरु समर्पित साधनारत शिष्य को अपने गुरु में साक्षात् नारायण के दर्शन होने लगते हैं। यही कोशिश शिष्य और गुरु के गुरुत्व की सफलता कहते हैं। तब शिष्य को अपने गुरु के मुख से निकले सामान्य से सामान्य शब्द भी साक्षात ब्रह्म में अनुभव होने लगते हैं। करिष्य वचनं तव, का संकल्प शिष्य के अंतःकरण में उठता है। और जब-जब किसी शिष्य के अंतःकरण से अपने गुरु के प्रति यह संकल्प उठा है, इस धरा का कायाकल्प व पूर्ण रूपन्तरण ही हुआ है। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा का पर्व जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लेकर आती है। इस दिन गुरुजनों का आदर और सम्मान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। हिंदू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा माना गया है। गुरु ज्ञान के कारक हैं। बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। इस दिन शनि देव की पूजा का विशेष योग बनने जा रहा है। वहीं, शनि देव को शांत करने का एक महत्वपूर्ण योग बना हुआ है। पंचांग के अनुसार 24 जुलाई, शनिवार को सर्वार्थ सिद्धि योग में गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग दोपहर 12 बजकर 40 मिनट से आरंभ होगा। इस योग का समापन 25 जुलाई को प्रातः 5 बजकर 39 मिनट पर होगा। उन्होंने बताया कि गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुजनों को समर्पित है। इस दिन गुरुओं की विशेष पूजा और उपासना की जाती है। उन्होंने बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह उठें, स्नान आदि करके सबसे पहले सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्य मंत्र का जाप करें। फिर अपने गुरु का ध्यान करें। शनि देव को ज्योतिष शास्त्र में न्यायाधीश माना गया है।
उपाय
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप 5 आसान उपायों से अपने नौकरी और बिजनेस में उन्नति पा सकते हैं और कुंडली का गुरु दोष भी शांत हो सकता है.
1. यदि जीवन में अच्छा गुरु और कुंडली में मजबूत बृहस्पति न हो तो व्यक्ति की उन्नति संभव नहीं है, वह चाहे बिजनेस हो या नौकरी. ऐसे में आप गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. विष्णु पूजा में पंचामृत, तुलसी और पीले फूलों का उपयोग करें. गुड़, चने की दाल या फिर बेसन के लड्डू का भोग लगाएं. विष्णु कृपा से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी.
2. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने पूजा घर में गुरु यंत्र की स्थापना करके पूजन करें. उसके बाद हर गुरुवार को विधिपूर्वक पूजा करें. इससे आपके जीवन में गुरु ग्रह का सकारात्मक प्रभाव बढ़ेगा, आपकी तरक्की होगी. कमजोर गुरु ग्रह मजबूत होगा.
3. गुरु पूर्णिमा के दिन आप अपने गुरु के पास जाएं. उनको प्रणाम करके घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करें. भोजन, आदर-सत्कार आदि करने के बाद उनका आशीर्वाद लें. उपहार में पीले वस्त्र, धार्मिक पुस्तक दें. दक्षिणा देकर खुशीपूर्वक विदा करें. गुरु कृपा से बृहस्पति का दोष दूर होगा. भाग्य चमकेगा.
4. करियर में उन्नति के लिए गुरु पूर्णिमा पर पीले वस्त्र, पीली दाल, केसर, घी, पीतल, पीले रंग की मिठाई आदि का दान कर सकते हैं.
5. गुरु पूर्णिमा को घर के ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा को साफ करें. फिर उस पर हल्दी और पानी डालकर लेप कर दें. उसके बाद वहां घी के दीपक जलाएं. ईशान कोण का संबंध देव गुरु बृहस्पति से होता है. इस उपाय से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
6- गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु दोष से मुक्ति के लिए घर पर सत्यनारायण भगवान की कथा अवश्य सुननी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति के जीवन में आ रही आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। बृहस्पति देव की पूजा जरूर करनी चाहिए। इस दौरान पीले रंग की वस्तु बृहस्पति देव को अर्पित करें और ’ॐ बृ बृहस्पतये नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। ऐसा करने से कुंडली में गुरु दोष से पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं। गुरु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए ’ऊँ ह््रीं ह््रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नमः’ इस मंत्र का जाप कम से कम एक माला जरूर करें। ऐसा करने से न केवल छात्र में पढ़ाई के लिए इच्छा शक्ति जागृत होती है। बल्कि, शिक्षा के क्षेत्र में आ रही रुकावटें भी दूर हो जाती है। जिन जातकों की कुंडली में गुरु नीच स्थिति में होते हैं, उन्हें संतान प्राप्ति में समस्याएं आती हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु को केसर, पीला चंदन, पीले वस्त्र व फल अर्पित करें। साथ किसी जरूरतमंद को गुड़ का दान करें। ऐसा करने से जल्द सफलता मिलती है।
8 - आर्थिक लाभ, करियर और कारोबार में तरक्की, संतान के लिए व जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आपको गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु यंत्र की स्थापना करना चाहिए। इससे आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है और आपके हर कार्य पूर्ण हो जाते हैं साथ ही आपको कार्यक्षेत्र में सफलता भी मिलती है।
इन राशियों की चमकेंगे किस्मत के सितारे
मेष राशि
बुध के गोचर से मेष राशि के जातकों को देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होगा। अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने में सफल रहेंगे। कमाई के एक से अधिक स्त्रोत आपके आर्थिक पक्ष को मजबूत बनाएंगे। वाहन खरीदने की इच्छा पूरी होगी। प्रेम और निजी जीवन बेहतर रहेगा।
वृष राशि
वृष राशि वालों के लिए बुध का गोचर जीवन में प्रगति की राह लेकर आएगा। आर्थिक स्थिति में बड़ा इजाफा होगा। पसंदीदा कंपनी ने नौकरी का ऑफर मिल सकता है। परिवार में खुशी का माहौल रहेगा। नया वाहन खरीदने की योजना पूरी होगी।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए बुध का गोचर अच्छा रहेगा। इस राशिवालों को आर्थिक लाभ मिलेगा। कारोबार सामान्य रहेगा। नौकरी के अवसर सामने आएंगे। रुकी हुई पेमेंट आसानी से वापस मिल जाएगी। गंभीर मुद्दों पर निदान मिलेगा।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों की मनोकामना पूरी होगी। करियर के लिहाज से समय अनुकूल है। सहकर्मियों से सहयोग मिलेगा। सैलरी बढ़ने की भी संभावना है। व्यापारी वर्ग को उम्मीद से अधिक लाभ मिल सकता है।
तुला राशि
बुध का परिवर्तन तुला राशिवालों के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव लेकर आएगा। कोई सुनहरा मौका मिल सकता है। काम के प्रति समर्पित रहें। मन मुताबिक गतिविधियों में समय बिताना लाभकारी रहेगा।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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