आलेख : ज्ञानवापी की कानूनी लड़ाई...अब राम मंदिर जैसा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 22 जुलाई 2023

आलेख : ज्ञानवापी की कानूनी लड़ाई...अब राम मंदिर जैसा

मंदिर-मस्जिद विवाद पर काशी में ज्ञानवापी को लेकर सियासत एक बार फिर गरमा गई है. जिला सत्र न्यायालय, वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से रडार तकनीक से सर्वे कराने की इजाजत दे दी है. कोर्ट ने मां श्रृंगार गौरी के मूल वाद में विवादित हिस्से (वजूखाना) को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे कराने की अनुमति दी है. मुस्लिम पक्ष इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दे, इसके पहले सियासत एक बार फिर गरमा गयी है। दरअसल, वाराणसी के चर्चित श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में मस्जिद का एएसआई सर्वे कराने की याचिका पर कोर्ट के सहमति बनते ही ज्ञानवापी परिसर पर धर्मयुद्ध छिड़ गया है. हिन्दू पक्षकार सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता विष्णु जैन ने बताया कि इस सर्वे में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा. मतलब साफ है ज्ञानवापी की कानूनी लड़ाई अब अयोध्या राम मंदिर की तर्ज पर होने वाला है। अयोध्या के राम मंदिर मामले में 2002 में एएसआई सर्वे करने की अनुमति मिली थी. तब एएसआई ने तीन साल यानी 2005 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. ज्ञानवापी मामले में भी तीन से छह महीने का समय लग सकता है. क्योंकि अयोध्या की तरह इसके सर्वे का इलाका बहुत बड़ा नहीं है. काशी विश्वनाथ मंदिर के व्यास पीठ का दावा है कि जहां ज्ञानवापी मंदिर है उसकी जमीन का मालिकाना हक उनके पास है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या अब अयोध्या की तर्ज पर ज्ञानवापी की जमीन भी खोदेगी एएसआई? 

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दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में शामिल काशी अपनी अनूठी संस्कृति के लिए जानी जाती है. यहां जाति धर्म से ऊपर हैं बाबा विश्वनाथ. बाबा के आशीर्वाद से ही इस शहर का रस हमेशा बना रहता है. शायद इसीलिए इसे बनारस कहते हैं. लेकिन जहां बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं, उसके बिल्कुल पास, उसी परिसर में ज्ञानवापी मस्जिद भी मौजूद है. अयोध्या का विवाद सुलझने के बाद उम्मीद लगाई जा रही है कि, कोर्ट से काशी का समाधान भी निकलेगा. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि, इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक, ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित हैं. काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1664 में नष्ट कर दिया था. फिर इसके अवशेषों से मस्जिद बनवाई, जिसे मंदिर की जमीन के एक हिस्से पर ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है मतलब साफ है जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद था, ठीक वैसा ही ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद भी है. स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ को सबसे अहम माना जाता है. 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता.हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में दावा किया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया. हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए. हिंदू पक्ष का दावा है कि यये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है. वहीं, मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ है. मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद ही बताता है. इसके साथ ही ये भी दावा करता है कि मस्जिद में आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है. मुस्लिम पक्ष की दलील है कि चूंकि आजादी से पहले नमाज पढ़ रहे हैं, इसलिए इस पर 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी लागू होता है. हालांकि, जिला कोर्ट ने पिछले साल अपने फैसले में साफ कर दिया था कि हिंदू 1993 तक यहां रोजाना पूजा करते आ रहे थे और उसके बाद साल में एक बार पूजा करते रहे थे, इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट इस मामले पर लागू नहीं होता. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का मामला भी सुप्रीम कोर्ट  में चल रहा है. दरअसल, ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा. उसके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता.- अदालत के आदेश पर अब एएसआई की टीम मस्जिद परिसर का सर्वे करेगी. हालांकि, एएसआई उस वजूखाने का सर्वे नहीं करेगी, जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था. हालांकि हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद परिसर के अंदर जो बीच का गुम्बद है, उसके नीचे की जमीन से धपधप की आवाज आती है. ऐसा दावा है कि उसके नीचे मूर्ति हो सकती है, जिसे कृत्रिम दीवार बनाकर ढंक दिया गया है. एएसआई की टीम पूरे मस्जिद परिसर का सर्वे करेगी. हालांकि, सील्ड एरिया का सर्वे नहीं किया जाएगा.


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देश में यूं तो कई मुद्दे हैं लेकिन एक मुद्दा उत्तर प्रदेश के काशी से उठा है। यह मुद्दा है ज्ञानवापी मस्जिद का। कई जानकारों का मानना है कि यह विवाद 1990 में शुरु हुए अयोध्या विवाद की तरह आगे बढ़ रहा है। ज्ञानवापी के अंदर जो शिवलिंग है उसके भी अलग-अलग दावे हैं। तमाम इलाकों में इस बात की चर्चा है कि ज्ञानवापी के अंदर जो शिवलिंग मिला है उसके दावे और हकीकत क्या हैं? लेकिन असल में ज्ञानवापी का विवाद अब उसी राह पर बढ़ चला है, जिस राह पर अयोध्या का मामला 90 के दशक में चला था। ये सब उसी तरह है जैसे कि अयोध्या में हुआ था। अयोध्या में समतलीकरण के काम के दौरान हिंदू मंदिर एवं मूर्तियों के अवशेष मिले थे, जिसके बाद हिंदू पक्षकारों ने कोर्ट में विवादित ढांचे के पास पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने की मांग की थी। कोर्ट ने इन आदेशों के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अफसरों की विशेष टीम को यहां पर सर्वे कराने के आदेश दिए थे। एएसआई की ओर से कराई गई खुदाई में हिंदू मंदिरों के अवशेष मिले थे। इसके अलावा कई प्रतीक चिन्ह भी ऐसे मिले थे जो किसी हिंदू मंदिर का हिस्सा बताए गए थे। खुदाई के दौरान मिले प्रतीक चिन्ह को ही कोर्ट में पेश किया गया और बाद में यह बात पुष्ट हुई कि बाबरी मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर को तोड़कर हुआ था। कहा जा सकता है जिस तरह से ज्ञानवपी में मलबे की जांच की बात कही जा रही है उसी तरह अयोध्या में एक मलबे की जांच हुई थी जिसमें टूटा हुआ शिलालेख बरामद हुआ था। यह शिलालेख प्राकृत भाषा में था। टूटे शिलालेख में इस बात का उल्लेख था जिससे स्थान पर बाबरी मस्जिद बनी 12 वीं शताब्दी का एक मंदिर था। फिरहाल, 5 अगस्त 2020 को, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर की नींव रखी, तो इसने एक लंबे और कड़वे विवाद पर पर्दा डाल दिया, जिसने भारत की आत्मा को घायल और जख्मी कर दिया, धार्मिक ध्रुवीकरण और इसके द्वारा बोए गए नफरत के बीज का तो जिक्र ही नहीं किया। हमारे राजनीतिक विमर्श में एक साल पहले बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ी राहत लेकर आया था। ऐसा महसूस किया गया कि विवाद आखिरकार इतिहास के पन्नों में सिमट गया, एक ऐसा अध्याय जिसे आने वाली पीढ़ियाँ पढ़ेंगी और सबक सीखेंगी। दोनों पक्षों द्वारा समाधान की मांग के साथ उपचार और सुलह आसन्न लग रही थी। हालांकि, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एक व्यापक सर्वेक्षण करने के वाराणसी अदालत के हालिया आदेश से घड़ी को पीछे ले जाने और नए घाव देने का खतरा है।


वजूखाने का सर्वे क्यों नहीं?

ज्ञानवापी मस्जिस परिसर के एडवोकेट कमीशन के सर्वे के दौरान वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया. था. दरअसल, सर्वे के दौरान वजूखाने से शिवलिंग जैसी आकृति दिखी थी. हिंदू पक्ष ने इसे शिवलिंग तो मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था. अभी जो एएसआई की टीम सर्वे करेगी, वो इस वजूखाने और उसमें मिले कथित शिवलिंग का सर्वे नहीं करेगी. क्योंकि ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस पूरे एरिया को सील कर दिया गया है.


सबूतों का खजाना

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वेद-पुराणों से लेकर इतिहास में दर्ज है काशी दुनिया के सबसे प्राचीनतम से प्राचीन शहरों में से एक है। 2,500 साल से भी अधिक पुराना इसका इतिहास है। सारनाथ में अशोक की सिंह राजधानी को पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध के पहले उपदेश की स्मृति के रूप में व्याख्या किया गया है। जबकि इस्लाम का इतिहास 14 सौ साल पुराना है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कथित ज्ञानवापी मस्जिद हजारों साल पुरानी कैसे हो सकती है? दस्तावेजों के मुताबिक इस्लाम की पहली मस्जिद कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद 12वीं सदी के अंत की है, तो कथित ज्ञानवापी का निर्माण कैसे हो गया? जबकि स्कंद पुराण में कहा गया, देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना। तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते। अर्थात प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है। दरअसल, वाराणसी के ज्ञानवापी केस में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है। हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए सर्वे में मिले शिवलिंग को फव्वारा बताना 125 करोड़ हिन्दुओं के अपमान का आरोप लगाया है। इसमें हिंदू पक्ष की तरफ से वादी महिलाओं ने अपनी दलील में औरंगजेब को क्रूर शासक बताते हुए आदि विश्ववेश्वर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कहीं है। जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष का दावा बिल्कुल बेबुनियाद है। ज्ञानवापी मामला सुनवाई योग्य नहीं है. मस्जिद हजारों साल पुराना है। जिसे शिवलिंग कहा जा रहा है, वो फव्वारा है. ज्ञानवापी के दीवार पर त्रिशूल, डमरू, ओम जैसी कलाकृतियां का अंकित कहना गलत है। औरंगजेब निर्दयी नहीं था और उसने किसी मंदिर पर आक्रमण नहीं किया था. हालांकि मुस्लिम पक्ष की इस दलील के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. बता दें, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग का साइंटिफिक सर्वे कराने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी. ऐसे में कोर्ट का फैसला क्या होगा, यह आने वाला वक्त बतायेगा। लेकिन औरंगजेब निर्दया नहीं था, वो मुस्लिमों का आदर्श रहा, यह 125 करोड़ हिन्दुओं का अपमान नहीं तो और क्या है? वह औरंगजेब जिसके क्रूरता के किस्से मथुरा, वृंदावन, काशी, अयोध्या से लेकर दिल्ली तक में टूटे सैकड़ों मंदिरों के अवशेष चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं।




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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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