अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 2023 की थीम है “बाघों के साथ एक भविष्य: पारिस्थितिकी तंत्र के लिए काम करना”. यह थीम बाघों के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने और पुनर्स्थापित करने के महत्व पर प्रकाश डालती है. पारितंत्र (ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र एक प्राकृतिक इकाई है जिसमें एक क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारी, पौधे, जानवर और अणुजीव शामिल हैं जो कि अपने अजैव पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई बनाते हैं, उसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। इस प्रकार पारितंत्र अन्योन्याश्रित अवयवों की एक इकाई है जो एक ही आवास को बांटते हैं। पारितंत्र में आमतौर पर जीव-जंतुओं मिलकर अनेक खाद्य जाल बनाते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर इन जीवों के अन्योन्याश्रय और ऊर्जा के प्रवाह को दिखाते हैं. बाघों के संरक्षण के लिए 1 अप्रैल, 1973 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उत्तराखंड के जिम कार्बेट नेशनल पार्क में ‘प्रोजेक्ट टाइगर‘ लॉन्च किया. ये परियोजना शुरुआती दौर में असम, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 9 टाइगर रिजर्व में शुरू की गई. इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं.सिर्फ 13 देश हैं जहां बाघ पाए जाते हैं। उनमें से भी 70 प्रतिशत बाघ भारत में हैं.राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के अनुसार, 2012 से 2021 के दौरान इन 10 सालों में देश में 984 बाघों की मौत हुई. मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 244 बाघों की मौत हुई. उसके बाद महाराष्ट्र में 168, कर्नाटक में 138, उत्तराखंड में 96 और तमिलनाडु और असम में 66-66 बाघ मारे गए.

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