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शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

विशेष : मानसिक स्वास्थ्य का बच्चों पर प्रभाव

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मानसिक स्वास्थ्य का आज के दौर में बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अगर अभी समय रहते सजग नहीं हुए तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। बच्चों के विकास के लिये उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है। अच्छा मानसिक स्वास्थ्य बच्चों को स्पष्ट रूप से सोचने एवं सामाजिक रूप में विकसित होने में सहायक होता है। वैसे मानसिक स्वास्थ्य सभी व्यक्तियों का स्वस्थ होना जरूरी है। आजकल यह समस्या बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रही है। हालत यह है कि बच्चे मानसिक तौर पर इतने कमजोर हैं कि वह हालात से लड़ने की बजाय आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा लेते हैं। बच्चे यह प्राणघातक कदम क्यों उठाते हैं? यह समाज के लिए चिन्ता का विषय है। आमतौर पर माता-पिता अपने बच्चे के शारीरिक का बहुत ध्यान रखते हैं, मगर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बिल्कुल नही सोचते। माता-पिता को अपने बच्चों की आकांक्षाओं और समस्याओं को जानना चाहिये। बच्चों को सिखाना होगा कि अच्छे जीवन के लिए अन्दर से खुश रहना ज्यादा जरूरी है, जब आंतरिक खुशी तभी आत्मविश्वास के साथ हर कार्य सकारात्मक रूप से किया जायेगा। बाहर के हिसाब से तभी जीता जा सकता है जब मन प्रसन्न हो। यह एक चौंकाने वाली रिपोर्ट अगस्त 2021 में आई। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़े यह बताते हैं कि 2017-19 के दौरान 14 से 18 वर्ष के बच्चों ने संख्या 24,568 ने विभिन्न कारणों के चलते आत्महत्या कर ली। जिसमें सबसे ज्यादा आत्महत्या परीक्षा में असफलता के कारण की। 13 मई की 2023 नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार सबसे ज्यादा किशोरों की आत्महत्या दर सबसे ज्यादा अकेले महाराष्ट्र में है। 2021 तक 1,834 बच्चों द्वारा आत्महत्या की गई। मध्य प्रदेश में 1,308, तमिलनाडु में 1,246, कोटा राजस्थान में जनवरी 2023 में 22 छात्रों ने आत्महत्या की। वर्ष 2011 से 2022 तक 121 छात्रों ने आत्महत्या की। एमसीआरबी रिपोर्ट के आंकड़े देखे जायें तो अकेले दिल्ली में इन पाँच सालों में आत्महत्या दर में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में - 9,478 बच्चों ने आत्महत्या की। 2019 में-10,335 बच्चों ने, 2021 में - 13,084 बच्चों ने, पूरे भारत में 2016 तक आत्महत्या दर 1,31,008 थी जो 2021 तक 1,64,033 हो गई। यह रिपोर्ट यह बताती है कि छात्राओं की संख्या 43.49 प्रतिशत थी जबकि छात्रों की संख्या 56.51 प्रतिशत थी। 2017 में 4.711 छात्राओं ने आत्महत्या को जो 2021 में 5,693 हो गई थी। शिक्षा मंत्रालय के आंकडे़ बताते हैं जो आईआईटी और एनआईटी के वर्ष 2014-21 तक 122 छात्रों द्वारा आत्महत्या की गई।


आत्महत्या के कारण

1. भारत में लगभग 5 करोड़ से अधिक बच्चे मानसिक समस्या से घिरे हुए हैं। पर अभी तक कोई ठोस कदम नही उठाये गये हैं। यह समस्या हमारे समाज और राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है और प्रश्नचिह्न है हमारे परिवार पर। माता-पिता पर और विद्यालय पर, हम अपने बच्चों को यह कौन से संस्कार दे रहे हैं?

2. परिवार में माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, गृह कलेश, करियर की चिंता, पढ़ाई का बोझ, सोशल साइट्स, मोबाइल फोन, परिवार में किसी बड़े का सपोर्ट न मिलना और उनके द्वारा बच्चों पर अव्वल आने का प्रेशर थोपना। कम उम्र में प्यार में पड़ना। इस तरह की समस्याओं से बच्चे घिरे हुए हैं। जब समस्यायें जरूरत से ज्यादा हावी हो जाती हैं तो बच्चा तनाव में आ जाता है और जरूरत से ज्यादा तनाव होने पर ये समस्यायें जानलेवा बन जाती हैं।

3. साइबर बुलिंग आजकल बच्चों के मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है, कही कोई सोशल साइट पर बच्चा फंसा हुआ तो नहीं है पढ़ाई का प्रेशर तो नही ले रहा, इसकी जानकारी होना भी जरूरी है।

4. बार-बार बच्चे का अकेले रहने का मन करना मोबाइल फोन में जरूरत से ज्यादा तो नहीं लग रहा, दोस्तो का समूह किस तरह का है, बच्चा कहीं किसी बुरी लत का शिकार तो नहीं हो रहा, पढ़ाई का दबाव तो नही झेल रहा, स्कूल में या कॉलेज में किसी भी तरह की समस्या तो नहीं है। उसके व्यवहार मंे कोई बदलाव तो नहीं है। पैसे का अभाव या किसी भी वस्तु की चाहत जरूरत से ज्यादा तो नहीं है। किसी प्रेम में पड़ जाना या किसी भी तरह का भय या अकेलापन।


ये छोटे-छोटे कारण बच्चे के मन में धीरे-धीरे अपनी इतनी पकड़ बना लेते हैं कि यह एक समस्या का रूप ले लेते हैं और बच्चा धीरे-धीरे अवसाद में चला जाता है। परिवार से, समाज से, दोस्तांे से दूर हो जाता है।


आत्महत्या से निवारण

1. बच्चों पर निगरानी रखें, बच्चे के अन्दर कोई बदलाव तो नहीं आ रहा, और अगर किसी भी तरह का बदलाव दिखाई दे रहा है तो उससे बात करें उसके साथ समय बिताएं।

2. साइबर बुलिंग को रोका जाये ताकि बच्चों का ऑनलाइन शोषण न हो सके। उसके लिए सोशल मीडिया मॉनीटरिंग करें, साइबर बुलिंग के बारे में बच्चों को बताएं।

3. बच्चों को कभी अकेलेपन की आदत न डालें, उसके साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी चर्चा करें, ताकि वह आपसे बेहिचक अपनी भावनायें, अपने विचार साझा कर सके।

4. बच्चे को नियमित शारीरिक श्रम की गतिविधियों में व्यस्त रखें।

5. बच्चों से प्रतिदिन बात करें।

6. प्रकृति के करीब रहना सिखाएं।

7. सकारात्मक रूप से समस्या का समाधान खोजना, आस-पास सकारात्मक लोग रहें।

8. किस तरह से खुश रहा जा सकता है यह बताएं। आंतरिक खुशी कितनी महत्वपूर्ण है यह बताएं, छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढना, अपनी समस्याओं पर बात करना, उनको प्यार, धैर्य और सुरक्षा का अहसास कराना, अच्छे जीवन के लिए आंतरिक खुशी ज्यादा महत्वपूर्ण है, यह सिखाना होगा।

9. कोई भी समस्या आने पर उसका समाधान निकालना चाहिये न कि उस समस्या को अनदेखा करना चाहिये। नहीं तो वह भविष्य में ओर परेशान करेगी और तनाव की स्थिति बन जायेगी।

10. परीक्षा का दबाव ना डालें, अव्वल आने या किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा में अव्वल आने का दबाव ना बनायें।

11. बच्चा हर क्षेत्र में आगे रहे, वह सर्वगुण बने, इस तरह का दबाव ना बनायें, बच्चों को प्यार, अपनापन और अपना साथ दें। उनको सुनें, उनके विचारों के तूफान को शांत करें।

12. बच्चों को कामयाब जरूर बनायें, मगर उससे पहले उसे एक अच्छा इंसान जरूर बनायें, उसे चुनौतियों का सामना करना सिखायें, खुशी क्या होती है उसका एहसास करायें।


निष्कर्ष

आज की पीढ़ी बहुत भावुक है पर समझदार है। उसे सिर्फ मार्गदर्शन की जरूरत है। जब बच्चों का जीवन ही नहीं होगा तो असफलता का क्या करेंगे? परिवार, समाज और राष्ट्र को जल्दी ही कुछ समाधान निकालना होगा।  





अरुणा भारद्वाज

(लेखिका मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर हैं।)


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