आत्महत्या के कारण
1. भारत में लगभग 5 करोड़ से अधिक बच्चे मानसिक समस्या से घिरे हुए हैं। पर अभी तक कोई ठोस कदम नही उठाये गये हैं। यह समस्या हमारे समाज और राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है और प्रश्नचिह्न है हमारे परिवार पर। माता-पिता पर और विद्यालय पर, हम अपने बच्चों को यह कौन से संस्कार दे रहे हैं?
2. परिवार में माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, गृह कलेश, करियर की चिंता, पढ़ाई का बोझ, सोशल साइट्स, मोबाइल फोन, परिवार में किसी बड़े का सपोर्ट न मिलना और उनके द्वारा बच्चों पर अव्वल आने का प्रेशर थोपना। कम उम्र में प्यार में पड़ना। इस तरह की समस्याओं से बच्चे घिरे हुए हैं। जब समस्यायें जरूरत से ज्यादा हावी हो जाती हैं तो बच्चा तनाव में आ जाता है और जरूरत से ज्यादा तनाव होने पर ये समस्यायें जानलेवा बन जाती हैं।
3. साइबर बुलिंग आजकल बच्चों के मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है, कही कोई सोशल साइट पर बच्चा फंसा हुआ तो नहीं है पढ़ाई का प्रेशर तो नही ले रहा, इसकी जानकारी होना भी जरूरी है।
4. बार-बार बच्चे का अकेले रहने का मन करना मोबाइल फोन में जरूरत से ज्यादा तो नहीं लग रहा, दोस्तो का समूह किस तरह का है, बच्चा कहीं किसी बुरी लत का शिकार तो नहीं हो रहा, पढ़ाई का दबाव तो नही झेल रहा, स्कूल में या कॉलेज में किसी भी तरह की समस्या तो नहीं है। उसके व्यवहार मंे कोई बदलाव तो नहीं है। पैसे का अभाव या किसी भी वस्तु की चाहत जरूरत से ज्यादा तो नहीं है। किसी प्रेम में पड़ जाना या किसी भी तरह का भय या अकेलापन।
ये छोटे-छोटे कारण बच्चे के मन में धीरे-धीरे अपनी इतनी पकड़ बना लेते हैं कि यह एक समस्या का रूप ले लेते हैं और बच्चा धीरे-धीरे अवसाद में चला जाता है। परिवार से, समाज से, दोस्तांे से दूर हो जाता है।
आत्महत्या से निवारण
1. बच्चों पर निगरानी रखें, बच्चे के अन्दर कोई बदलाव तो नहीं आ रहा, और अगर किसी भी तरह का बदलाव दिखाई दे रहा है तो उससे बात करें उसके साथ समय बिताएं।
2. साइबर बुलिंग को रोका जाये ताकि बच्चों का ऑनलाइन शोषण न हो सके। उसके लिए सोशल मीडिया मॉनीटरिंग करें, साइबर बुलिंग के बारे में बच्चों को बताएं।
3. बच्चों को कभी अकेलेपन की आदत न डालें, उसके साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी चर्चा करें, ताकि वह आपसे बेहिचक अपनी भावनायें, अपने विचार साझा कर सके।
4. बच्चे को नियमित शारीरिक श्रम की गतिविधियों में व्यस्त रखें।
5. बच्चों से प्रतिदिन बात करें।
6. प्रकृति के करीब रहना सिखाएं।
7. सकारात्मक रूप से समस्या का समाधान खोजना, आस-पास सकारात्मक लोग रहें।
8. किस तरह से खुश रहा जा सकता है यह बताएं। आंतरिक खुशी कितनी महत्वपूर्ण है यह बताएं, छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढना, अपनी समस्याओं पर बात करना, उनको प्यार, धैर्य और सुरक्षा का अहसास कराना, अच्छे जीवन के लिए आंतरिक खुशी ज्यादा महत्वपूर्ण है, यह सिखाना होगा।
9. कोई भी समस्या आने पर उसका समाधान निकालना चाहिये न कि उस समस्या को अनदेखा करना चाहिये। नहीं तो वह भविष्य में ओर परेशान करेगी और तनाव की स्थिति बन जायेगी।
10. परीक्षा का दबाव ना डालें, अव्वल आने या किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा में अव्वल आने का दबाव ना बनायें।
11. बच्चा हर क्षेत्र में आगे रहे, वह सर्वगुण बने, इस तरह का दबाव ना बनायें, बच्चों को प्यार, अपनापन और अपना साथ दें। उनको सुनें, उनके विचारों के तूफान को शांत करें।
12. बच्चों को कामयाब जरूर बनायें, मगर उससे पहले उसे एक अच्छा इंसान जरूर बनायें, उसे चुनौतियों का सामना करना सिखायें, खुशी क्या होती है उसका एहसास करायें।
निष्कर्ष
आज की पीढ़ी बहुत भावुक है पर समझदार है। उसे सिर्फ मार्गदर्शन की जरूरत है। जब बच्चों का जीवन ही नहीं होगा तो असफलता का क्या करेंगे? परिवार, समाज और राष्ट्र को जल्दी ही कुछ समाधान निकालना होगा।
अरुणा भारद्वाज
(लेखिका मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर हैं।)
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