विशेष : पहली श्राद्ध “निमि ऋषि अपने पुत्रात्मा की शांति के लिए की थी... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 28 सितंबर 2023

विशेष : पहली श्राद्ध “निमि ऋषि अपने पुत्रात्मा की शांति के लिए की थी...

पितरों के तर्पण और पूजा पर्व पितृपक्ष इस बार 29 सितम्बर से शुरु होगी, जो 14 अक्टूबर पितृ अमावस्या तक चलेगा. इन 16 दिनों में परिवार के उन मृत सदस्यों के लिए तर्पण, पिंडदान और श्रद्धाकर्म या श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु शुक्ल और कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में हुई थी. जिन लोगों की मृत्यु की तिथि परिवार के लोग नहीं जानते हैं, उनके लिए अमावस्था तिथि पर श्राद्ध किया जा सकता है. यह पूर्वजों को ये बताने का एक तरीका है कि वो अभी भी परिवार का एक अनिवार्य हिस्सा हैं. पितृ पक्ष में श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है. श्राद्ध कर्म की जानकारी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी. गरुड़ पुराण के मुताबिक भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था. दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर, निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू  कर दिया था. इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, “निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है. चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था. उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है.

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“पितृ पक्ष“ संस्कृत शब्द है। “पितृ“ का अर्थात पूर्वज और “पक्ष“ यानी काल. यह वह अवधि है जब लोग हर साल अपने पूर्वजों के नाम पर भोजन अर्पित करते हैं. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधि-विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं. पितृपक्ष में किए गए तर्पण से न सिर्फ पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि घर परिवार में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है. मान्यता है पूर्वजों या पितरों की पूजा करने से हमें भगवान का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही पितृपक्ष में श्राद्ध करने से हिंदू देवता प्रसन्न होते हैं. हालांकि, इस अनुष्ठान को करने का मुख्य कारण भगवान से पूर्वजों के पापों या पिछली गलतियों को माफ करने का अनुरोध करना है. गरुण पुराण के मुताबिक महर्षि निमि ने श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे. कुछ मान्यताएं यह भी बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका श्राद्ध किया था. मान्यता यह भी है कि जब सभी ऋषि-मुनि देवताओं और पितरों को भोजन कर श्राद्ध में इतना अधिक भोजन कराने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि इसमें अग्नि देव आपकी मदद कर पाएंगे. इसके बाद अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा. इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा. इसलिए हमेशा पितरों को भोजन कराने के लिए श्राद्ध का भोजन कंडे और अग्नि को चढ़ाया जाता है. मान्यता यह भी है कि दानवीर कर्ण जो दान करने के लिए विख्यात थे, मरने के बाद स्वर्ग पहुंचे. वहां उनकी आत्मा को खाने के लिए सोना दिया जाने लगा. इस पर उन्होंने देवताओ के राजा इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोना क्यों दिया जा रहा है? इस बात पर भगवान इंद्र ने कहा कि तुमने हमेशा सोना ही दान किया है, कभी अपने पितरों को खाना नहीं खिलाया. बस इसके बाद पितृ पक्ष शुरू हुआ और कर्ण को वापस से धरती पर भेजा गया. पितृ पक्ष के इन 16 दिनों में कर्ण ने श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया और उसके बाद उनके पूर्वज भी खुश हुए और वह वापस स्वर्ग आए.


सावधानियां

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श्राद्ध के पवित्र समय में कच्चा अनाज खाने की मनाही है. इस दौरान चावल, दाल और गेहूं को वर्जित कहा गया है. इन चीजों को आप पका कर खा सकते हैं लेकिन कच्चा नहीं खाया जा सकता है. इसके अलावा आलू, मूली और अरबी भी पितृ पक्ष में नहीं खायी जाती है. मान्यता है कि श्राद्ध करने वाले किसी भी जातक को मसूर की दाल भी नहीं खानी चाहिए. मान्यता है कि पितरों के नाराज होने से वैवाहिक जीवन में परेशानियों को अंबार लग जाता है. यहीं नहीं आपकी तरक्की भी बाधित होती है. इसलिए हमेशा पितृ पक्ष के दौरान पितरों का विधिपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए. वरना बार बार जीवन में परेशानियां आती रहेंगी.


श्राद्ध तिथियां

महालय श्राद्ध पूरा 16 दिन के रहेंगे हालांकि कुछ पंचांगों में चतुर्थी तिथि का क्षय बताया है किंतु तृतीया और चतुर्थी का अलग-अलग गणित धर्मशास्त्र में बताया गया है इस दृष्टि से नियत समय पर श्राद्ध अवश्य करें।


1ः पूर्णिमा श्राद्ध 29 सितंबर -शुक्रवार

2ः प्रतिपदा श्राद्ध 29 सितंबर -शुक्रवार

3ः द्वितीया श्राद्ध या दूज श्राद्ध 30 सितंबर -शनिवार

4ः तृतीया श्राद्ध 1 अक्टूबर -रविवार

5ः चतुर्थी श्राद्ध और महा भरणी श्राद्ध 2 अक्टूबर -सोमवार

6ः पंचमी श्राद्ध 3 अक्टूबर -मंगलवार

7ः षष्ठी श्राद्ध 4 अक्टूबर -बुधवार

8ः सप्तमी श्राद्ध 5 अक्टूबर -गुरुवार

9ः अष्टमी श्राद्ध 6 अक्टूबर -शुक्रवार

10ः नवमी श्राद्ध 7 अक्टूबर -शनिवार

11ः दशमी श्राद्ध 8 अक्टूबर -रविवार

12ः एकादशी श्राद्ध 9 अक्टूबर -सोमवार

13ः द्वादशी श्राद्ध या माघ श्राद्ध 11 अक्टूबर -बुधवार

4ः त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर -गुरुवार

15ः चतुर्दशी श्राद्ध 13 अक्टूबर -शुक्रवार

16ः सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध 14 अक्टूबर -शनिवार


पितृपक्ष में पितरों को अंगूठे से पानी व अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी से देते है श्राद्ध

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पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध में पिंडदान और तर्पण के साथ ब्राह्मण भोजन भी करवाया जाता है। ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं। पिंडदान और तर्पण में पितरों को संतुष्ट करने के लिए जो जल और दूध दिया जाता है उसे हथेली में रखकर अंगूठे के द्वारा दिया जाता है। जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं पितरों तक भोजन पहुंचाने के लिए कौओं, कुत्ते और गाय को भोजन करवाया जाता है। श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। महाभारत और अग्निपुराण के अनुसार अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पूजा पद्धति के अनुसार हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। इसलिए अंगूठे से चढ़ाया गया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है। पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितर पूर्ण रुप से तृप्त हो जाते हैं। हिंदू धर्म में कुशा (एक विशेष प्रकार की घास) को बहुत पवित्र माना गया है। अनेक कामों में कुशा का उपयोग किया जाता है। श्राद्ध करते समय कुशा से बनी अंगूठी (पवित्री) अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर निवास करते हैं। श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी धारण करने से अभिप्राय है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए है।






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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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