किताब के बारे में
आदिम इच्छाओं में भूख शामिल होती है। मन और शरीर की गहन ज़रूरत की तरह। यह किताब उस इच्छा को सम्मानित करती हुई इस बात की भी खोज करती है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ खाने की संस्कृति का भी क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विकास कैसे और क्योंकर हुआ। आज वैज्ञानिक, इतिहासकार और पाककला-विशेषज्ञ खाने के ज़रिये सभ्यताओं-संस्कृतियों की कहानी भी रोशनी में लाने लगे हैं। इस ज़रूरी दस्तावेज़ीकरण से खाने के इतने डायनमिक्स अनावृत हो गए कि अचम्भा होता है। उसी अचम्भे की बानगी है यह ‘सतरंगी दस्तरख़्वान’। भारत के सुदूर कोनों के इतिहास, विरासत, क्षेत्रीय प्रभावों और मिलीजुली संस्कृतियों से उपजी यादों से बनी यह किताब जहाँ एक ओर गोवा में प्रचलित पावरोटी की कहानी कहती है तो दूसरी ओर कलकत्ता के निराले रसोइये की कहानी भी। यहाँ सन्देश जैसी बंगाली मिठाई की कहानी एक परिवार के इतिहास से निकलकर समकाल की सामाजिक कहानी हो जाती है। अमृतसर से इंग्लैंड और असम से चेन्नई तक अपने कलाकारों, लेखकों को कैसे अपने खाने से सींचते-सँजोते हैं यह भी दर्ज है यहाँ। फिर लंगर जब इक्कीसवीं सदी में प्रतिरोध का स्वर बन जाए और साधारण दाल-भात अपने समय पर टिप्पणी करने लगें तब खाने के इस आर्काइवल महत्त्व को बखूबी जाना और समझा जा सकता है। बहुआयामी आस्वादों से भरी इस किताब में खाने की बायोग्राफी के बहाने कलाकारों, लेखकों, ऐक्टिविस्टों के धड़कते दिलों की कहानी भी है जिनके संग चलते-चलते हम चमत्कृत यात्री अपना देश घूम लेते हैं।
नई दिल्ली, शनिवार 23 सितम्बर, राजकमल प्रकाशन एवं तक्षशिला एजुकेशन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में 'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान' का लोकार्पण शुक्रवार शाम स्पीकर्स हॉल,कांस्टीट्यूशन क्लब, रफ़ी मार्ग में हुआ। इस पुस्तक का संपादन सुमना रॉय व कुणाल रे और अनुवाद वन्दना राग व गीत चतुर्वेदी ने किया है। पुस्तक लोकार्पण के बाद हुई बातचीत में 'ऑन ईटिंग' के सुमना रॉय, कुणाल रे, ज्ञानपीठ सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मावजो, प्रसिद्ध गायिका कलापिनी कोमकली, नाट्यकर्मी नीलम मानसिंह चौधरी, आशुतोष भारद्वाज एवं अनुवादक वंदना राग ने अपने विचार व्यक्त किए। 'सतरंगी दस्तरख्वान - बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान' इस अर्थ में एक निराली पुस्तक है कि इसमें कई जानी-मानी हस्तियों के आलेख हैं जिन्होंने अपने जीवन से जुड़े खानपान के प्रसंगों को बड़े सुंदर तरीके से इसमें संजोया है। इस किताब में शामिल लेखक न सिर्फ भारत के भिन्न क्षेत्रों से हैं, बल्कि उन्होंने कला और साहित्य के अपने-अपने क्षेत्रों में भी विशेष पहचान हासिल की है। उनमें से कुछ ने अपनी मादरी जुबान और कुछ ने अंग्रेजी में ये अनुभव लिखें हैं, जिन्हें हिंदी में अनूदित किया गया है।इस पुस्तक को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। हिंदुस्तानी संगीत की प्रसिद्ध गायिका कलापिनी कोमकली ने इस मौके पर कहा “ कोविड का दौर था हम सब अपने घरों में कैद थे। मुझे कुणाल का कॉल आया कि क्या मैं अपने जीवन से जुड़े खानपान को लेकर कुछ लिखना पसंद करूंगी?यहां यह स्पष्ट कर दूं की भोजन विधि नही बतानी थी, बल्कि खानपान से जुड़े रोचक प्रसंग और आदतों का महत्व था। मैंने कुछ समय मांगा, क्योंकि लिखना मेरा विषय नहीं है, मेरा विषय गायन है। लेकिन यह विषय रोचक था तो "भानुकुल का रसोई राग" शीर्षक से अपनी बात लिख दी।” कलापिनी कोमकली ने पुस्तक से एक रोचक अंश का पाठ भी किया और अपने पिता कुमार गंधर्व के खानपान से जुड़े कुछ किस्से भी पाठकों से साझा किए।
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