बिहार : संत विंसेंट डी पौल की 363 वीं पुण्यतिथि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 28 सितंबर 2023

बिहार : संत विंसेंट डी पौल की 363 वीं पुण्यतिथि

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पटना.  संत विंसेंट डी पौल का पेरिस में 27 सितम्बर, 1660 को निधन हुआ था.उस समय 80 वर्ष के थे.इस तरह 363 वीं पुण्य तिथि है.संत पिता क्लेमेंट तेरहवें के द्वारा 16 जून, 1737 को उन्हें संत घोषित किया गया था. संत विंसेंट डी पॉल का जन्म 24 अप्रैल, 1581 को फ्रांसीसी गांव पौय में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था. उनकी पहली औपचारिक शिक्षा फ्रांसीसियों द्वारा प्रदान की गई थी. उन्होंने इतना अच्छा किया कि उन्हें पास के एक धनी परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए काम पर रखा गया.उन्होंने टूलूज विश्वविद्यालय में अपनी औपचारिक पढ़ाई जारी रखने के लिए अध्यापन से अर्जित धन का उपयोग किया जहां उन्होंने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया.


विंसेंटियन धर्मसमाजी

86 देशों में लगभग 4,000 सदस्यों के साथ विंसेंटियन धर्मसमाजी आज हमारे साथ हैं. विंसेंटियन पुरोहितों के अपने तपस्वी धर्मसंघ के अलावा, संत विंसेंट ने संत लुईस डी मारिलैक के साथ डॉटर्स ऑफ चैरिटी की स्थापना की. आज 18,000 से अधिक धर्म बहने 94 देशों में गरीबों की जरूरतों को पूरा कर रही हैं।.27 सितम्बर, 1660 को जब पेरिस में उनकी मृत्यु हुई तब वे अस्सी वर्ष के थे. वे ‘‘फ्रांसीसी कलीसिया के सफल सुधारक के प्रतीक बन गए थे‘‘. संत विंसेंट को कभी-कभी ‘‘द एपोसल ऑफ  चैरिटी   ‘‘ और ‘‘गरीबों के पिता‘‘ के रूप में जाना जाता है.


संत घोषित किया गया

संत विंसेंट को दो चमत्कारों के लिए श्रेय दिया गया है. अल्सर से ठीक हुई एक मठवासिनी और लकवा से ठीक हुई एक आम महिला. 16 जून, 1737 को उन्हें संत पिता क्लेमेंट तेरहवें द्वारा संत घोषित किया गया था. यह बताया गया है कि संत विंसेंट ने अपने जीवनकाल में 30,000 से अधिक पत्र लिखे थे और 18वीं शताब्दी में लगभग 7,000 पत्र एकत्र किए गए थे.उनके पत्रों के कम से कम पांच संग्रह आज अस्तित्व में हैं.


फ्रेडरिक ओजानम ने संत विंसेंट डी पौल समाज बनाया

एक लोकधर्मी फ्रेडरिक ओज़ानम ने संत विंसेंट के नाम पर संत विंसेंट डी पौल समाज बनाया. फ्रेडरिक ओजानम के निधन होने के 70 साल से अधिक समय लेकर पेरिस धर्मप्रांत में 1925 से उनकी संत घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की गयी. फ्रेडरिक-ओज़ानम फरवरी 1926 में, ब्राजील में 18 महीने के बच्चे, फर्नांडो लुइज़ के चमत्कारी इलाज के साथ इस मुद्दे ने एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया. बी. ओटोनी, जो डिप्थीरिया के एक उग्र रूप से पीड़ित था. लंबी जांच के बाद, 22 जून, 1995 को ओज़ानम की मध्यस्थता से इस इलाज को आधिकारिक तौर पर चमत्कार के रूप में मान्यता दी गई.  लंबे समय से प्रतीक्षित द्वितीय चरण 22 अगस्त, 1997 को पेरिस में विश्व युवा दिवस पर पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा फ्रेडरिक ओज़ानम की धन्य घोषणा के साथ पूरा हुआ.यह समारोह नोट्रे-डेम कैथेड्रल में आयोजित किया गया था.

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