
जयनगर/मधुबनी, जितिया मिथिलांचल का बेहद ही खास पर्व होता है, क्योंकि इस पर्व को स्त्री अपने पुत्र की लंबी आयु और अपने सुहाग के रक्षा के लिए करती है। बता दे कि यही एक ऐसा पर्व है, जिसमें मछली खाकर पूजा की जाती है। आम तौर पर सनातन धर्म में लोग पर्व से कुछ दिन पूर्व मांसाहार खाने को त्याग देते हैं। यहां तक की कई सारे लोग लहसुन प्याज तक खाना छोड़ देते हैं, लेकिन जितिया पर्व में मान्यता है कि मछली और मारुआ के रोटी खाकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है। इस पर विशेष जानकारी जयनगर के पंडित चंद्रशेखर झा ने दी बताया कि जितिया जिसको जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है। सनातन में यही एक ऐसा एकमात्र व्रत है, जिसमें मछली और मरुआ की रोटी को खाई जाती है। व्रत से एक दिन पूर्व और रात के अंतिम भाग में अर्थात सप्तमी में उठगन किया जाता है। जितिया व्रत पूरा अष्टमी का जो मांग होता है, उसके आधारित यह व्रत निर्धारित किया गया है। इसे महालक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। इसमें पारण का जो विधान है, उसमें खीर और अंकुरी से किया जाता है। इस सब को जितिया को प्रसाद देकर इसका प्रसाद ग्रहण कर अन्य चीज खाई जाती है। यह व्रत स्त्री अपनी संतान की आयु वृद्धि के लिए करती है। ये व्रत शुक्रवार को मनाया जाएगा। मिथिला में लगभग हर पर्व को किसी ने किसी फसल से जोड़कर मनाया जाता है। इसी वजह से अभी मरुआ का सीजन है, तो जितिया में इस से बनी रोटी सेवन का किया जाता है। इसमें पौष्टिक आहार भी पाया जाता है, साथ में मिथिला में मछली के बिना यह पर्व अधूरा माना जाता है, इसलिए इसका भी विशेष महत्व है।
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