विशेष : राम रमापति बैंक : जहां होती है श्रीराम के बाल स्वरूप की पूजा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

विशेष : राम रमापति बैंक : जहां होती है श्रीराम के बाल स्वरूप की पूजा

धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में आस्था का एक ऐसा बैंक है, जिसे राम रमापती बैंक के नाम से जाना जाता है। इस बैंक में श्रद्धालु न सिर्फ राम नाम की पूंजी जमा करते हैं, बल्कि उनके बालस्वरुप की पूजा अर्चना भी करते है। कहते है जिस किसी ने भी सच्चे मन से राम रमापती बैंक में लाल स्याही से “राम-राम“ लिखकर जमा कर दी तो उसके न सिर्फ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, बल्कि इसके कमाए गए ब्याज से जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति भी पा जाते हैं। बैंक “राम-राम“ लिखे कागज के पन्नों को गुणों की जमा राशि मानता है। खास बात यह है कि 1926 से लगातार चल रहे इस राम रमापति बैंक में अन्य बैंकों की तर्ज पर यहां खाता खुलवाने और संकल्प के बाद ऋण भी मिलता है. इस बैंक में भारतीय ही नहीं सात समुंदर पार के भी आस्थावानों का खाता है और 19 अरब से ज्यादा राम नाम पूंजी जमा है। अपने तरह के अनूठे श्रीराम रमापति बैंक में प्रतिवर्ष मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मोत्सव पर रामनाम जमा करने वाले भक्तों को भीड़ उमड़ती है

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देखा जाएं तो “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपरा और पौराणिक कथाओं से भी प्राचीन है और इन सभी को एकत्र करें तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।“ जबकि महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र अयोध्या को माना गया है. वैदिक काल में इसका वर्णन किताबों में पढ़ने को मिलता है. कहते है काशी को भगवान भोलेनाथ ने न सिर्फ अपने हाथों बसाया, बल्कि इसे अपने त्रिशूल पर टेक रखा है, जहां प्रलय भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जबकि अयोध्या भगवान राम से जाना जाता है. इसलिए इसे भगवान राम की नगरी कहा जाता है. क्योंकि अयोध्या भगवान राम का जन्मभूमि है। रामलला की मूर्ति की पूजा और रामायण के घटनाक्रमों के चलते यह स्थान हिन्दू धर्म के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है. फिलहाल भगवान राम के भव्य मंदिर 22 जनवरी को होने वालों प्राण को लेकर सुर्खियों में है तो ऐसे में भला काशी कैसे अछूता रह सकता है। इसकी बड़ी वजह है अयोध्या अगर मुगल साम्राज्य के आक्रांताओं से आहत रही तो काशी भी कराह उठा था। यह संयोग ही है मुगल आक्रांताओं की क्रूरता बया करती बाबरी मस्जिद नेस्तनाबूद हो भव्य राम मंदिर बनने को है तो काशी का ज्ञानवापी मस्जिद भी न्यायिक प्रक्रिया के तहत जल्द ही शहीद होने वाली है। मतलब साफ है काशी और अयोध्या का नाता महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र होने के नाते सदियों पुराना है। उसकी झलक आज भी किसी ने किसी रुप में दिखती है। खास यह है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले एकबार फिर काशी और अयोध्या का अटूट नाता और मजबूत होता दिखाई देने लगा है। प्राण प्रतिष्ठा के लिए काशी के कर्मकांडी विद्वानों और ज्योतिषियों को तो जिम्मेदारियां मिली ही है, यहां के घड़े, दीपक और अन्य पूजन सामाग्रिया भी अयोध्या भेजी जा रही है। ऐसे में अगर प्राण प्रतिष्ठा से पहले काशी में विराजमान रामरुपी राम रमापति बैंक की चर्चा ना हो तो उनकी प्रतिष्ठा के साथ अन्याय ही होगा। राम रमापति बैंक एक ऐसा अनोखा बैंक है, जहां 19 अरब राम नाम की पूंजी जमा है. इस बैंक को न सरकार और न ही कारोबारी घराना चला रहा है, बल्कि भगवान राम के भक्त ही सालों साल से बिना किसी व्यवधान के चला रहे है। खास यह है कि राम भक्त हनुमान को इस बैंक का सेक्रेटरी बनाया गया है. राम रमापति बैंक मुद्राओं में लेनदेन नहीं करता, लेकिन लोन भी देता है और लोगों के खाते भी खोलता है। यह अनोखा बैंक उत्तर प्रदेश के वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित एक आध्यात्मिक बैंक है। इस बैंक की स्थापना 1926 में स्वर्गीय दास चन्नूलाल द्वारा की गई थी। वर्तमान में प्रबंधक दास बासुदेव प्रसाद हैं, जो अपने पोते के साथ बैंक में अपनी सेवा दे रहे हैं। यह बैंक एक ऐसा बैंक है जो किसी भी प्रकार के मौद्रिक लेनदेन को स्वीकार नहीं करता है। इसके बजाय, इस बैंक में खाताधारक एक खास तरह की है।


राम रमापति बैंक खाता

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राम रमापति बैंक अन्य बैंकों के विपरीत किसी भी प्रकार के मौद्रिक लेनदेन स्वीकार नहीं करता है। इस बैंक में खाता खोलने के लिए एक कलम और सफेद कागज सहित भगवान राम के प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। इस बैंक में सदस्य बनने की एकमात्र शर्त भगवान राम में दृढ़ विश्वास होना है और जाति, लिंग, धर्म या राष्ट्रीयता के बावजूद कोई भी सदस्य बन सकता है। केवल एक रुपये या चार रुपये डाक द्वारा भुगतान करके कोई भी बैंक का सदस्य बन सकता है। राम रमापति बैंक में आध्यात्मिक खाता खोलने के लिए, भगवान राम की उपस्थिति में खाता खोला जाता है और भगवान से उनकी इच्छा पूरी करने का अनुरोध किया जाता है। अनुरोध के बदले में, बैंक कागज की शीटें देता है।


बैंक देता है ऋण

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शिव की नगरी में स्थापित इस राम रमापति बैंक में भक्त पुण्य जमा करके राम नाम का कर्ज लेते हैं। बनारस में दशाश्वमेध के पास त्रिपुरा भैरवी घाट पर 95 साल से संचालित होने वाले राम रमापति बैंक में मन के भाव को राम नाम की भक्ति में डुबोकर कागज पर लिखा जाता है और जमा कर दिया जाता है। राम रमापति बैंक ऋण प्रदान करता है, जिसे कागज पर भगवान राम का नाम लिखकर चुकाया जाता है। बैंक तीन प्रकार के ऋण प्रदान करता हैः जाप ऋण, मंत्र ऋण और राम नाम ऋण। राम नाम ऋण सबसे लोकप्रिय है और उधारकर्ताओं को इसे आठ महीने और दस दिनों के भीतर भगवान राम के नाम को 1,25,000 बार कागज पर लिखकर और बैंक के पास “जमा“ के रूप में रखकर चुकाना होता है। बैंक कोई मौद्रिक जमा नहीं मांगता है। लोगों का राम रमापति बैंक से लोन लेने के दो उद्देश्य होते है, पहला आध्यात्मिक आवश्यकता को पूरा करना और दूसरा, राम भक्ति को बढ़ावा देना। बैंक हर दिन दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक खुला रहता है। बैंक के ट्रस्टी मानते हैं कि भगवान राम बैंक चलाते हैं, और वे माध्यम हैं। बैंक का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों में धार्मिक विवेक जगाना है। बैंक अपने खाताधारकों को भगवान राम का नाम लिखने के लिए मुफ्त में कागज के बंडल और एक पेन भी प्रदान करता है।


बैक की जमापूंजी

राम रमापति बैंक में देश-विदेश के लाखों भक्तों के हाथों से लिखे 19 अरब 39 करोड़ 59 लाख 25 हजार श्री रामनाम तथा 1.25 करोड़ श्री शिवनाम जमा हैं। लगभग तीन सालों में इस बैंक के अस्तित्व के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे। लगभग अपने 100 वर्ष के कार्य खंड में इस बैंक में 1.50 लाख से अधिक लोगों ने अपना खाता खोला है। इस बैंक में खाता खोलने के लिए कुछ शर्तों का पालन करना होता है जैसे, भक्त केवल सुबह 4 बजे से 7 बजे तक ही भगवान राम का नाम लिख सकते है और नाम ठीक 1.25 लाख बार लिखा जाना चाहिए। यह कार्य आठ महीने और दस दिनों के भीतर पूरा होना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भक्तों को मांसाहारी भोजन और प्याज और लहसुन युक्त भोजन खाने से मना किया जाता है।


बालस्वरुप में श्रीराम

अयोध्या की तरह काशी में भी प्रभु श्रीराम बाल रूप में विराजमान है। इसलिए इन्हें रामलला कहते है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त यहां सच्चे मन से आता है और 8 महीने 10 दिन तक हर रोज 500 ‘राम’ नाम का लेखन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होते है. बैंक के संचालन से जुड़े सुमित मल्होत्रा ने बताया कि इस दौरान उन्हें लेखन सामग्री भी यही से दी जाती है. खास बात यह भी है कि इस दौरान भक्तों को पूरे तरीके से सात्विक रहना होता है और इस राम नाम के लेखन के बाद उन्हें वापस यहां जमा करना होता है. इससे भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. राम नवमी पर भक्त यहां भगवान के नाम की परिक्रमा करके पुण्य लाभ कमाते हैं। बैंक में उपभोक्ताओं को कर्ज के रूप में सवा लाख जय श्रीराम नाम का कर्ज दिया जाता है। इसे रामभक्त को नियमानुसार भरना पड़ता है। जो लोग यहां आते हैं उनकी राशि व नाम से एक शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। इसके बाद फॉर्म भराया जाता है। इसके लिए एक नियम की पुस्तक उन्हें फॉर्म भरने के पहले दी जाती है। रामरमापति बैंक में जमा रामनाम संग्रह रामनवमी पर दस दिन के लिए दर्शनार्थ भक्तों को सुलभ होता है। प्रभु के बालरूप की झांकी दर्शन के साथ ही परिक्रमा की जाती है। प्रसाद रूप में प्रभु को समर्पित कपड़े, खिलौने व रोली वितरित की जाती है।


पाप-ताप से मुक्ति का जतन

अवघड़ दानी भगवान शंकर की नगरी काशी के बारे में मान्यता है कि यहां समूचा ब्राह्मांड बसता है। त्रैलोक्य से न्यारी काशी के कण-कण में भोलेनाथ विद्यमान हैं। यहीं बाबा विश्वनाथ के पूज्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बाल स्वरूप का विग्रह भी विद्यमान है। मां पार्वती स्वरूपा आदि शक्ति के नवदुर्गा और नवगौरियों के विग्रह भी विद्यमान हैं। यहां आदि देव बाबा विश्वनाथ हैं तो उनकी जटा से निकलीं मां गंगा भी हैं। वह भी उत्तर वाहिनी गंगा। काशी ही है जहां गंगा उत्तर वाहिनी हैं। अर्द्ध चंद्राकार काशी के घाट यहीं मिलते हैं। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी मनाई जाती है। उसके लिए गोपाल मंदिर भी है। फिर प्रभु श्री राम जो खुद शंकर के पूज्य हैं उनका जन्म और उनकी आराधना भला कैसे न हो। मंदिर के दास कृष्णचंद्र बताते हैं कि कैलाशवासी स्वामीनाथ के शिष्य महात्मा सत्तरामदास नेराम भक्तों को पाप-ताप शमन, चिंता निवृत्ति व अक्षय सुख प्राप्ति के लिए संवत् 1983 में अनूठे रामरमापति बैंक की स्थापना की थी। दास छन्नूलाल को इसका दायित्व प्रदान कर प्रथम मैनेजर का कार्यभार दिया गया।


शिवस्वरूप में विराजमान हैं भगवान राम के वंशज

मोक्षदायिनी काशी में भगवान राम के वंशज भी गंगा के तट पर शिवस्वरूप में विराजमान हैं। सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग तक काशी में उन्होंने तपस्या की और शिवलिंग स्थापित किए। आज वह तीर्थ के रूप में काशी में हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, काशी में राम से जुड़े स्थान भी सामने आ रहे हैं। बीएचयू के प्रोफेसर और केंद्रीय ब्राह्मण महासभा की 77 दिनों की खोज में भगवान राम के वंशजों के तीर्थ मिले हैं। भगवान राम के वंशजों की काशी में खोज के लिए काशी खंड समेत 125 से अधिक पुस्तकों का अध्ययन किया गया। महाराजा हरिश्चंद्र से लेकर भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग उनके नाम से ही स्थापित हैं। रामघाट पर सत्यवादी राज हरिश्चंद्र तीर्थ व विग्रह हैं और यहां पर स्नान व पूजन करने वाला कभी भी सत्य के मार्ग से नहीं हटता है। काशीखंड के अध्याय 84 में भी भगवान राम के वंशजों के तीर्थ के बारे में वर्णन मिलता है। हरिश्चंद्र तीर्थ पर सत्कर्म करने वाले का लोक और परलोक दोनों सुधर जाता है। संकटा माता मंदिर के सामने राजा दिलीप भी शिवलिंग के स्वरूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के पापों का नाश हो जाता है। चंद्रेश्वर के मंदिर चंद्रेश्वर के निकट राजा सगर का सगरतीर्थ है। यहां पर स्नान करने से मनुष्य कभी दुख के सागर में नहीं डूबता। चंद्रेश्वर के निकट मणिकर्णिका ब्रह्मनाल के बीच दक्षिण में राजा भगीरथ का भागीरथी तीर्थ है। जो मनुष्य वहां पर स्नान करता है, वह ब्रह्म हत्या से भी छूट जाता है। मणिकर्णिका पर स्वर्गद्वार के पास ही भागीरथीश्वर लिंग के दर्शन करने से ब्रह्महत्या का पाप भी कट जाता है। रावण को मारने के बाद भगवान राम ने काशी में मीरघाट धर्मकूप में रघुनाथेश्वर लिंग काशी में स्थापित किया। इसके स्पर्श मात्र से ब्रह्मघाती मनुष्य भी शुद्ध हो जाता है। राजा मांधाता ने दशाश्वमेध क्षेत्र के मानमंदिर में चक्रवर्ती का पद प्राप्त किया था। उन्होंने काशी में मांधातृ तीर्थ स्थापित किया। उनकी तपस्या से ही प्रसन्न होकर भगवान केदारेश्वर काशी में प्रकट हुए। राजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंदेश्वर द्वारा स्थापित शिवलिंग मुचुकेंद्रश्वर लिंग बड़ादेव पर हैं। बड़ादेव मंदिर के आगे अगस्तेश्वर के दक्षिण में विभीषण द्वारा स्थापित लिंग है। सोनारपुरा पांडेय हवेली गली में केदारेश्वर से दक्षिणापथ में चन्द्रवंशीय और सूर्यवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित सहस्रों लिंग विद्यमान हैं।


ब्रह्माजी की 67वीं पीढ़ी में हुआ राम का जन्म

वाल्मीकि रामायण के अनुसार ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। इसके बाद कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए और विवस्वान से सूर्यवंश का आरंभ माना जाता है। विवस्वान से पुत्र वैवस्वत मनु हुए। भगवान राम का जन्म वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। इक्ष्वाकु से सूर्यवंश में वृद्धि होती चली गई। राजा सगर के प्रपौत्र दिलीप और दिलीप से प्रतापी भगीरथ का जन्म हुआ। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ। रघु से रघुवंश की शुरुआत हुई। भगवान राम का जन्म ब्रह्माजी की 67 पीढ़ियों में हुआ।


काशी में श्रीराम ने रेत से स्थापित किया शिवलिंग

काशी में रामेश्वर, काशी पंचक्रोशी के तृतीय पड़ाव स्थल पर बसा हुआ है। किसी जमाने में करौंदा वृक्ष की बहुतायतता के कारण इसे ’करौना’ गांव के नाम से जाना जाता था किन्तु भगवान श्रीराम द्वारा पंचक्रोशी यात्रा में आने पर वरुणा नदी के एक मुठ्ठी रेत से रामेश्वरम की ही भांति ’शिव की प्रतिमा’ स्थापना और भगवान ’शिव’ एवम् ’श्रीराम’ के आरम्भिक मिलन का केंद्र होने से अब इसे रामेश्वर महादेव (रामेश्वर तीर्थ धाम) के नाम से भी जाना जाता है। यहां लोटा भंटा मेला के दौरान दूर दूर से आकर लोक कल्पवास कर बाटी, चोखा और दाल चावल बनाकर भगवान शिव को इसका भोग भी लगाते हैं और प्रसाद एक दूसरे को बांटकर पुण्य की कामना करते हैं।


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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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