अनुच्छेद 331 के तहत राष्ट्रपति लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्य नियुक्त करते थे. इसी प्रकार विधान सभा में अनुच्छेद 333 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार था कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता था. विपक्ष ने जब इस प्रस्ताव का विरोध किया तब केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष पर 20 करोड़ अनुसूचित जाति और जनजाति को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि एंग्लो-इंडियन मुद्दे पर बहस करने को अनुसूचित जाति-जनजाति को नजरअंदाज कर रहे हैं. रविशंकर प्रसाद ने साथ ही कहा कि भारत में अब 296 एंग्लो-इंडियन ही बचे हुए हैं.कांग्रेस के सांसद हिबी एडेन का कहना है कि केंद्रीय मंत्री का आंकड़ा ग़लत है, इस समय देश में 3,47, 000 एंग्लो-इंडियन हैं. लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण को 10 साल बढ़ाने के लिए जहां संशोधन विधेयक पास करा दिया गया. वहीं, इसी के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को नामित करने के प्रावधान को खत्म करने का विधेयक को पारित कर दिया गया. इस तरह बीते 70 सालों से अनुसूचित जाति और जनजातियों को जहां आरक्षण मिलता रहा है. वहीं एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को भी संसद और राज्य की विधानसभाओं में नामित किया जाता रहा है. यह प्रावधान 25 जनवरी 2020 तक था जिसे अब नरेंद्र मोदी सरकार ने समाप्त करने का फ़ैसला लिया.
एंग्लो इंडियन समुदाय पर कैंची चलाने के बाद धर्म परिवर्तन कर लेने वाले अनुसूचित जाति को डी लिस्टिंग करने के लिए आयोग गठित कर दिया गया है.वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने डी लिस्टिंग की मांग को देखते हुए ‘ऐतिहासिक‘ तौर पर अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित होने का दावा करने वाले और बाद में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया है, उनके पात्रता की जांच करने के लिए एक आयोग बनाया है. इस आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस कोनकुप्पकतिल गोपिनाथन बालाकृष्णन (केजी बालाकृष्णन) कर रहें है, जो सुप्रीम कोर्ट में पहले दलित चीफ जस्टिस थे. यह आयोग समय-समय पर एससी कैटेगरी में नए लोगों को शामिल करने के लिए जारी प्रेसिडेंशियल ऑर्डर की जांच करेगा. बता दें कि जब भारत के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन थे,तब मंडल आयोग मामले सहित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिखे.उन्होंने पांच न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व किया और मंडल आयोग द्वारा दिए गए कार्यालय आदेश पर एक स्वतंत्र राय दी. आदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण का प्रावधान किया गया.केजी बालाकृष्णन ने आरक्षण को बरकरार रखा और कहा कि सामाजिक और आर्थिक समानता लाने के लिए यह आवश्यक था.उन्होंने जोर देकर कहा कि यह "क्रीमी लेयर" के लिए नहीं है और केवल वे लोग ही इसका लाभ उठा सकते हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता है. अब अनुसूचित जाति को डी लिस्टिंग करने के लिए आयोग के अध्यक्ष की हैसियत है.उक्त सूची में अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा संविधान के अनुरूप दिया गया है.संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी प्रेसिडेंशियल ऑर्डर के तहत धर्म परिवर्तन करने वालों को भी पुरानी जाति के तहत आरक्षण का लाभ मिल सकता है या नहीं.
(1) राष्ट्रपति , किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में और जहां राज्य है वहां उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों, अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों या उनमें के यूथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जातियां समझा जाएगा.
(2) संसद, विधि द्वारा, किसी जाति, मूल वंश या जनजाति को अथवा जाति, मूल वंश या जनजाति के भाग या उसमें के यूथ को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित कर सकेगी, किन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन निकाली गई अधिसूचना में किसी पश्चात्वर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा.
इस आयोग में पूर्व चीफ जस्टिस कोनकुप्पकतिल गोपिनाथन बालाकृष्णन (केजी बालाकृष्णन) के साथ ही रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डॉ. रविंद्र कुमार जैन और यूसीजी मेंबर प्रोफेसर सुषमा यादव को शामिल किया गया है. ये आयोग 2 वर्षो (वर्ष 2024 में) में अपना रिपोर्ट देगी.
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