मधुबनी : सावित्री बाई फुले जी का 183वीं जन्म जयंती मनाई गई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 जनवरी 2024

मधुबनी : सावित्री बाई फुले जी का 183वीं जन्म जयंती मनाई गई

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मधुबनी, भारत की पहली महिला शिक्षिका,बालिका विद्यालय के प्रथम जन्मदात्री,क्रांतिज्योति राष्ट्र माता सावित्री बाई फुले जी का 183वीं जन्म जयंती डॉ. भीमराव आंबेडकर नि:शुल्क शिक्षण संस्थान,केशुली में संस्थान के संचालक सीतेश कुमार पासवान के नेतृत्व में मनाया गया है। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि अजीत पासवान"पूर्व मुखिया(ब्रह्मपुरा) सह पूर्व मुखिया संघ अध्यक्ष(बेनीपट्टी),लोजपा(रामविलास) नेता सुधीर पासवान, प्रहलाद पासवान"अध्यक्ष"डॉ. आंबेडकर एकता मंच"(बेनीपट्टी), घूरान कामत "उपसरपंच"अकौर, सुरेंद्र कुमार (परसा, बासोपट्टी) देव शरण पासवान(दिल्ली) सहित दर्जनों लोगों ने तेल चित्र पर पुष्प माला से श्रद्धा सुमन अर्पित किया। मौके पर संस्था के संचालक सितेश कुमार पासवान ने कहा कि महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक अछूत परिवार में 03/01/1831 ई. को जन्मी सावित्री बाई भारत की पहली महिला शिक्षिका,पहली मराठा कवियित्री थी। इनके पिता का नाम खंडोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी थी। सावित्री बाई फुले शिक्षक होने के साथ पहली नेता,समाज सुधारिका और मराठी कवियित्री भी थी। इन्हें बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के ठेकेदार से पत्थर भी खाने पड़े।


वहीं, मुख्यातिथि अजीत पासवान ने संबोधित करते हुआ कहा कि भारत में आजादी से पहले समाज के अंदर छुआ छूत,सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतिया व्याप्त थी। सावित्री बाई फुले  का जीवन बेहद ही मुश्किल भरा रहा। सर्वजन महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने,छुआ छूत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें एक विशेष बड़े वर्ग द्वारा विरोध भी झेलना पड़ा। वह स्कूल जाती थी, तो उनके विरोधी उन्हें पत्थर मारते और उन पर गंदगी फेंकते थे। सावित्री बाई फुले एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी और स्कूल पहुंचकर गंदी हुई साड़ी बदल लेती थी। आज से एक सदी पूर्व जब लड़कियों की शिक्षा एक अभिशाप मानी जाती थी। उस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल पूरे देश में एक नई पहल की शुरुआत की थी। देश में विधवाओं की दुर्दशा भी सावित्री बाई को बहुत दुख पहुंचाती थी।इसलिए 1854 में उन्होंने विधवाओं के लिए एक आश्रय गृह खोला। वर्षो के निरंतर सुधार के बाद 1864 में इसे एक बड़े आश्रय में बदलने में सफल रही। उनके इस आश्रय गृह में निराश्रित महिलाओं विधवाओं और उन बाल बहुओं को जगह मिलने लगी, जिनको उनके परिवार वालो ने छोड़ दिया था। सावित्री बाई फुले उन सभी को पढ़ाती लिखाती थीं। उन्होंने इस संस्था में आश्रित एक विधवा के बेटे यशवंतराव को भी गोद लिया था। उस समय आम गांवो में कुएं पर पानी लेने के लिए अछूत और नीच जाति के लोगों जा जाना वर्जित था। यह बात उन्हें और उनके पति जी बहुत परेशान करती थी। इसलिए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर एक कुंआ खोदा, ताकि वह लोग भी आसानी से पानी ले सकें। उनके इस कदम का उस समय खूब विरोध भी हुआ। सभा को सबोधित किया सुरेश प्रसाद सिंह"पूर्व ग्राम कार्य विभाग"पंकज पासवान,पूर्व जिला परिषद कामेश्वर यादव,नरेश यादव,विमल राय(पूर्व शिक्षक), फिरान पासवान, मो०वसीम अंसारी, मो०मजीद , प्रभु भगत, पंकज कुमार राम, विनोद कुमार राय, राम प्रसाद पासवान, मो० मोटी अंसारी एवं अन्य कई लोग मौजूद रहे।

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