- पिता को खोया, फिर खाई कसम, अब तक कर चुके हैं 3240 शवों का अंतिम संस्कार
सार्वजनिक रूप से किया गया सम्मान, आंखे हो गई नम
दर्द में सारे कार्य छोड़कर गमगीन परिवार को साथ देने वाले राजू सोनी का शहर के नमक चौराहे पर जिला संस्कार मंच के जिला संयोजक सुमीत भानू उपाध्याय, अग्रवाल समाज की ओर से राजा सेठ, छावनी उत्सव समिति की ओर से आनंद गांधी, कमल अग्रवाल, नव ज्योति संगठन की ओर से अखिलेश माहेश्वरी, मोहन अग्रवाल, इंजीनियर दिनेश प्रजापति आदि ने सम्मान और स्वागत किया।
समाज और परिचित पैसे वालों के होते है
आज से 35 साल पहले जब अपने पिता को खोया और हाथ ठेले पर कुछ लोगों के साथ गए थे, उस दौरान समाज और परिचित लोगों ने कन्नी काट ली थी, विषम परिस्थितियों में लोग सलाह देने आते थे, लेकिन किसी ने सहयोग और साथ नहीं दिया। छावनी में परिचित व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी तो पहली बार किसी की शव यात्रा में शामिल हुए। जीवन की क्षणभंगुरता को समझते हुए और शोक संतप्त परिवार को ढाढ़स बंधाते हुए इन्होंने अंतिम यात्रा में जाने का नियम ही बना लिया। किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति हो, उसकी बैकुंठी तैयार करते है, चिता सजाते हैं, अर्थी को कंधा देने के साथ समस्त अंतिम संस्कार प्रक्रिया में शामिल होते हैं। 35 पहले से शुरू हुआ लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का सफर कोरोना काल में भी बंद नहीं हुआ। कहीं से भी लावारिस लाश की सूचना मिली, राजू ने विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार कराया। उनका दिल गरीबों के लिए ही धड़कता है। जब भी किसी के यहां पर गमी होती है तो वह राजू को याद करते है तो वह सारे कार्य छोड़कर अंतिम संस्कार तैयारियां में स्वयं जुट जाते है।
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