विशेष : चित्रकूट में जानकी कुण्ड ,चरण चिन्ह और यज्ञ वेदी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 19 मार्च 2024

विशेष : चित्रकूट में जानकी कुण्ड ,चरण चिन्ह और यज्ञ वेदी

Dharm-nagri-chitrakoot
धर्मनगरी चित्रकूट भगवान श्री राम की तपोस्थली रही है। यहां प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल के लगभग बारह साल व्यतीत किए थे। रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर कामदगिरि के प्रमुख द्वार से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर  चित्रकूट सतना राजमार्ग पर जानकी कुंड स्थित है। यहां श्वेत पहाड़ो को श्रृंखलाओं के मध्य मंदाकिनी नदी प्रवाहित होती रहती हैं । मन्दाकिनी के जल से उसके किनारे तट पर नीचे उतरने पर जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान पूजा हवन और श्रृंगारादि करती थीं। 


चरण चिन्ह:-

 मंदाकनी की नदी के तट पर यह एक सुंदर पावन स्थल है। इसके किनारे पर सीढ़ियां बनी हुई हैं और यहां पत्थर पर मानव के जैसे माता जानकी के पैरो के निशान पाये जाते हैं। भगवान राम के वनवास के दौरान यह स्थान माता जानकी का सबसे पसंदीदा स्थान रहा है । जानकी कुंड के पास ही राम जानकी मंदिर और संकट मोचन मंदिर भी स्थित है। यहां हनुमान जी की विशाल मूर्ति के दर्शन भी किये जा सकते हैं। उसी के समीप लगभग 85 सीढ़ी नीचे उतरने पर मां मंदाकिनी के तट पर सुप्रसिद्ध जानकी कुंड तीर्थ स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में मां जानकी (सीता माता) नित्य स्नान करती थी। इसीलिए इसका नाम जानकी कुंड पड़ा। यहां पर मां जानकी जी के पावन चरण चिन्ह के दर्शन होते हैं । इस कुंड को लोग जानकी कुंड के नाम से जानते हैं।इस कुंड में दूर-दूर से श्रद्धालु आज भी माता जानकी के चरण चिन्ह के दर्शन के लिए आते हैं।  लोक मान्यता है कि वनवास काल के दौरान माता जानकी इसी कुंड में स्नान करती थीं। कहते हैं कि माता सीता के पांव इतने कोमल थे कि उनके लिए धरती पिघल जाती थी। आज भी जानकी कुंड में मां सीता के चरण चिन्ह और उनके श्रृंगार करने का स्थान बना हुआ है। 


हवन कुण्ड:-

माता जानकी स्नान करने के बाद हवन किया करती थीं। हवन कुंड को माता सीता ने खुद अपने हाथों से बनाया था। वह इस हवन कुंड में गायत्री मंत्र का जाप करके हवन करती थीं। ब्रह्मा जी उनके पुरोहित थे और वह हवन करवाने के लिए आया करते थे। स्नान के बाद माता सीता इसी कुंड में बैठकर श्रृंगार किया करती थी। उस समय यहां न तो कोई मंदिर था ना हो कोई मकान। चित्रकूट के चारो धाम में सब से पहला धाम जानकी कुंड ही है।




आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।) 

कोई टिप्पणी नहीं: