आलेख : भदोही : जातियता की जंग में ‘शक्ति’ बनेगी खेवनहार? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 23 मार्च 2024

आलेख : भदोही : जातियता की जंग में ‘शक्ति’ बनेगी खेवनहार?

बेलबूटेदार कलात्मक रंगों का इन्द्रधनुषी वैभव लिए हुए बेहद लुभावने कालीनों का शहर भदोही में चुनाव अपनी पूरी रंगत में हैं। लेकिन यहां की जातिय सियासी पैतरों की गांठ कालीनों की तरह इस कदर उलझी है कि सीधा करना तो दूर अब तो एक दुसरे पर से भरोसा ही उठने लगा है। ऐसे में अगर जातियां अपने अपने नेताओं पर मेहरबानी की तो परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। यह अलग बात है कि महिलाओं का निरंतर बढ़ता मत प्रतिशत और बिनकारी से लेकर निर्यात तक में मातृशक्ति का योगदान किसी से छिपा नहीं है। वैसे भी कुटीर उद्योग की श्रेणी में शुमार जनपद का एकमात्र कारपेट इंडस्ट्री के विकास में आधी आबादी को यहां की रीढ़ कहा जाता है। देखा जाएं तो लोकसभा के पिछले दो और विधानसभा के चार चुनावों के ट्रेंड में महिलाओं का मत प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है। यूं कहें कि चुनावों में जीत की कुंजी महिलाओं के पास है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल यहां मातृशक्ति की अनदेखी नहीं कर सकता। यही कारण भी है लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत इस बार यहां की 8.79 लाख महिला मतदाताओं को साधने पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, ये तो 4 जून को पता चलेगा। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या भदोही में शक्ति यानी मातृशक्ति के आशीर्वाद से ही राजनीतिक दल चुनावी वैतरणी पार करेंगे? मतलब साफ है मुसलमान, यादव, दलित व ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य सहित अन्य पिछड़ी जातियों की जुगलबंदी के बीच महिलाएं ही प्रत्याशियों के भाग्य को तय करेगी

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फिरहाल, भदोही में सियासी उथल पुथल के बीच मतदाता जातियता की कढ़ाही में तल-भुन रहा हैं। उसके मन का प्रत्याशी न होने से वो असमंजस में है। 2014 एवं 2019 में मोदी लहर में भारी मतों से जीती भाजपा ने अभी अपना पत्ता नहीं खोला है। जबकि इन दोनों चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाला सपा इस बार इंडी गठबंधन के लिए सीट छोड़े जाने से यहां पूर्व मुख्यमंत्री पं कमलापति त्रिपाठी के परपोते ललितेशपति त्रिपाठी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से मैदान में है। यह अलग बात है कि टीएमसी के चुनाव चिन्ह को आमजनमानस के दिलोदिमाग पर बैठाने के लिए उन्हें काफी मशक्त करनी पड़ रही है। लेकिन उन्हें अपने जातिय समीकरण पर पूरा भरोसा है। चुनावी विश्लेषक एवं सीनियर एडवोकेट तेजबहादुर यादव की मानें तो यदि ब्राह्मणों के साथ-साथ सपा के कोर वोटर एमवाई फैक्टर सहित पिछड़ों का झुकाव टीएमसी की तरफ हुआ तो परिणाम चौकाने वाले हो सकते है। शायद यही वजह भी है कि भाजपा अपना प्रत्याशी उतारने से पहले जीत के सारे समीकरणों पर बहुत ही बारीकी से अध्ययन कर रही है। जबकि उन्हीं के बगल में खड़े सीनियर एडवोकेट दिनेशनाथ पांडेय का कहना है कि पिछले दो चुनावों से यहां जातिय फैक्टर तहस-नहस हो गया है। सिर्फ मोदी योगी फैक्टर काम कर रहा है। 370 व राष्ट्रवाद के साथ इस बार श्रीराम मंदिर, विकास व लाभार्थी योजनाओं के बीच योगी का बुलडोजर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। जहां तक महिलाओं का सवाल है, चुनावों में महिलाओं का निरंतर बढ़ता मत प्रतिशत दर्शाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाने में आधी आबादी अहम भूमिका निभा रही है। वैसे भी भदोही के विकास में मातृशक्ति का योगदान किसी से छिपा नहीं है। महिलाएं घर-परिवार से लेकर, कालीन करघों पर बिनकारी, सूत-वूल खुलाई सहित इक्सपोर्ट व खेत-खलिहान तक हाड़तोड़ मेहनत कर रही है। बावजूद इसके लोकतंत्र के महोत्सव में उनकी गहरी आस्था है।


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दो चुनाव परिणाम पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2004 व 2009 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी कम रही। वर्ष 2014 के चुनाव में महिलाएं, पुरुषों से आगे निकलीं और वर्ष 2019 में भी यह क्रम बना रहा। इसके अलावा जिस तरह कोरोनाकाल में अधिकांश महिलाओं के खातों में तीन महीने तक पांच-पांच सौ आने सहित तीन तलाक, आंगनबाड़ी, स्वयं सहायता समूहों से जुड़ीं महिलाओं का लखपति दीदी बनना, आत्मनिर्भर बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, सामाजिक सरक्षा, पीएम जीवन ज्योति योजना, बैंकिग सखी और बीसी सखी, घर शौचालय, रसोई गैस जैसी योजनाएं तो उन्हें मोदी का दीवाना बना दिया है। कहीं कहीं तो उन्हें ग्रामीण अर्थतंत्र की ’ब्रांड एंबेसडर’ तक की उपाधि ने भी मोदी के प्रति महिलाओं में भरोसा बढ़ाया है। इस परिदृश्य से साफ है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मातृशक्ति का सबसे अहम योगदान रहने वाला है। हालांकि इससे इतर राजनीति विश्लेषक कृपेश मिश्रा ने दो टूक में कह दिया है कि अगर बीजेपी यूं हीं ब्राह्मणों की उपेक्षा करती रही तो वह उसका बधुंआ मजदूर नहीं है। पिछली बार गाली खाकर भी अपने समाज के उम्मींदवार की अनदेखी कर उसके प्रत्याशी को जिताया तो वो कमजोरी नहीं बल्कि मोदी-योगी के प्रति विश्वास था, लेकिन पांच साल में जिस तरह उसे इग्नोर किया गया और नफरतरुपी पानी पी-पीकर जलालत झेलनी पड़ी उसका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा। अब इस खाई को सिर्फ और सिर्फ प्रत्याशी चयन में आबादी के अनुपात में उसकी हिस्सेदारी देकर ही पाटा जा सकता है, वर्ना उसके सामने विकल्प तैयार है। इसके पीछे उनका तर्क है कि साफ-सुथरा व स्वच्छ छबि वाला ब्राह्मण प्रत्याशी अगर मैदान में आया तो वो चार लाख से भी अधिक स्वजाति वोटों के साथ क्षत्रीय, वैश्य, पटेल, मौर्या समेत अन्य पिछड़ी जातियों के समर्थन से बाजी अपने में करने में कामयाब हो सकता है। जबकि गठबंधन को उम्मींद है कि ब्राह्मण वोटों का बिखराव नहीं हुआ तो वो इस बार पासा पलट सकता है। हालांकि यह सब बसपा प्रत्याशी के आने के बाद ही संभव हो पायेगा। क्योंकि उसका भी अपना जनाधार है और मायावती ने अल्पसंख्यक वर्ग को मौका दिया तो टीएमसी के जीत की राह आसान नहीं होगी। या यूं कहे इंडी गठबंधन की गांठ मजबूत हुई तो भाजपा को अपनी सीट बचाना चुनौतीपूर्ण होगा। जबकि सपा, बसपा, भाजपा व बसपा कार्यकर्ताओं के मन में पड़ी गांठ अगर नहीं खुली तो जीत में ’अंधे के हाथ बटेर लगना’ लग सकता है।


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बता दें, सियासत में जब भी कास्ट पालिटिक्स की बात आती है नेतृत्व प्रत्याशी उतारने से पहले पिच पर जातिय समीकरण साधती है। वैसे भी यूपी हीं नहीं पूरे पूर्वांचल की सियासत इसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम, ओबीसी जैसी जातियां ऐसी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी और इंडी गठबंधन के बीच कांटे की लड़ाई है. इस लड़ाई में भदोही का ब्राह्मण फैक्टर बड़ा मुद्दा बन गया है। इसकी आंच से भाजपा भी झुलस रही है और इसी के मद्देनजर कांग्रेस के सीनियर लीडर, यूपी के ब्राह्मण चेहरा के साथ भाजपा के गढ़ में कांग्रेस से सांसद बने राजेश मिश्रा, जिन्होंने हाल ही में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है, पर प्रत्याशी बनाने में गहन मंत्रणा कर रही है। हालांकि पिछले चुनाव में बिन्द फैक्टर भी उसके जेहन में है और अपने निवर्तमान सांसद के प्रति लोगों की नाराजगी को देखते हुए विकल्प के तौर पर बिन्द समाज के ही व्यक्ति को मैदान में उतारने की पेशोपेश में उलझी है। ऐसे में भाजपा का प्रत्याशी कौन होगा ये तो अगले दो चार दिन में फाइनल हो जायेगा, लेकिन भदोही ईकाई का संगठनात्मक ढांचा राजेश मिश्रा जैसे स्वच्छ छबि वाले प्रत्याशी के प्रति आशान्वित है। यही वजह है कि दोनों ही बड़े दल ब्राह्मण कार्ड से लेकर अगड़ा-पिछड़ा हर तरह के वोटर को रिझाने में लगे हैं. मुद्दों से पेट भर जाए तो नेता एक-दूसरे की जाति पर सवाल उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं. जबकि रामअवध यादव कहते है जातिवाद सनातन में लगी किसी दीमक से कम नहीं है. इससे हमारी जड़े क्यों खोखली हो रही हैं। कहा जा सकता है इस सियासी पिच पर इंडी गठबंधन से सीधे मुकाबले में फंसी बीजेपी के लिए मोदी मैजिक व ’गारंटी’ ही कुछ कमाल कर सकती है।


कुल मतदाता

भदोही लोकसभा में कुल वोटरों की संख्या 2009146 है। जिसमें भदोही की तीन विधानसभा से 1208610 और प्रयागराज की दो विधानसभा के 800536 वोटर हैं। जिसमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 1129245 और महिला वोटरों की संख्या 879901 है। थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या 97 है। विधानसभावार देखे तो भदोही में 4,34,304 वोटों में पुरुष 208072 व महिला 226192 है। ज्ञानपुर  में 3,93,735 मतों में पुरुष 188966 व महिला 204728 है। औराई में 3,80,570 मतो में पुरुष 182697 व महिला 197869 हैं। प्रतापपुर में 4,08,714 मतों में पुरुष 198247 व महिला 210467 हैं। हंडिया में 4,00,811 मतो में पुरुष 195478 व महिला 205333 हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक जिले में 53 फीसदी पुरुषों की आबादी है। जबकि महिलाओं की आबादी 47 फीसदी है. यहां पर हिंदुओं की 53 फीसदी और मुसलमानों की 45 फीसदी आबादी है. स्त्री-पुरुष अनुपात के आधार पर एक हजार पुरुषों में 950 महिलाएं हैं. यहां पर साक्षरता दर 90 फीसदी लोग है, जिसमें पुरुषों की 94 फीसदी और महिलाओं की 86 फीसदी आबादी शिक्षित है.


2008 में मिर्जापुर से अलग हुआ

भदोही लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (भदोही, ज्ञानपुर, औराई, प्रतापपुर और हंडिया) आते हैं। इसके पहले 2008 तक मिर्जापुर व मझवा भदोही का हिस्सा था। लेकिन अब औराई सरक्षित होने के साथ ही प्रतापपुर और हंडिया विधानसभा फूलपुर संसदीय क्षेत्र से अलग होकर भदोही से जुड गया है।


किसी दल की मजबूत पकड़ नहीं

भदोही संसदीय क्षेत्र में 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के गोरखनाथ ने जीत हासिल की थी. उन्होंने सपा के छोटेलाल बिंद को 12,963 मतों से हराया था. उस समय कुल 13 लोग मैदान में थे. इस चुनाव में बीजेपी पांचवें स्थान पर थी. जबकि 2019 में बीजेपी ने यहां से तत्कालीन सांसद बीरेन्द्र सिंह को टिकट न देकर रमेश चंद को मैदान में उतारा और वे बिजयी रहे। जबकि सपा बसपा गठबंधन में बसपा के रंगनाथ मिश्रा मैदान में थे. कांग्रेस ने रामाकांत को प्रत्याशी बनाया था. इस बार कुल 12 प्रत्याशी मैदान में थे. बीजेपी के रमेशचंद बिंद को 5,10,029 वोट मिले थे. तो बसपा के रंगनाथ मिश्र 4,66,414 वोंटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस के रमाकांत यादव 25,604 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे. 2014 में मोदी लहर में बीरेन्द्र सिंह मस्त 1,58,141 मतों से शानदार जीत दर्ज करायी थी। उन्होंने बसपा के राकेशधर त्रिपाठी को हराकर हराया था। वीरेंद्र सिंह को 4,03,544 वोट (41.12 फीसदी) मिले, जबकि राकेशधर त्रिपाठी को 2,45,505 मत (25.01 फीसदी) मिले. इस चुनाव में कांग्रेस पांचवें स्थान पर रही।


जातिय समीकरण

लोकसभा की पांच विधानसभाओं में ब्राह्मण और बिंद सबसे अधिक मतदाता है। इसके अलावा यादव, मुस्लिम भी अच्छी खासी संख्या में है। खासकर भदोही की तीनों विधानसभाओं में बिंद और अन्य अति पिछड़ी जातियों की तादाद भी अच्छी-खासी है। वर्तमान में लोकसभा की पांच सीटों में औराई व ज्ञानपुर में भाजपा, भदोही, हंडिया और प्रतापपुर में सपा का कब्जा है। संख्या दृष्टि से देखे तो ब्राह्मण 3 लाख 15 हजार, बिंद 2 लाख 90 हजार, दलित 2 लाख 60 हजार, यादव 1 लाख 40 हजार, राजपूत एक लाख, मौर्या 95 हजार, पाल 85 हजार, वैश्य 1 लाख 40 हजार, पटेल 75 हजार, मुस्लिम 2 लाख 50 हजार व अन्य 1 लाख 50 हजार है।


क्या कहते है मतदाता

कसौड़ा के अमरनाथ यादव मौजूदा सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए कहा, रोजगार व महंगाई रोक पाने में यह सरकार विफल है। जबकि अखिलेशराज में उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी, हर तरह की आजादी थी। इतना ही नहीं, इस संसदीय सीट की कुछ पिछड़ी जातियों को भी बीजेपी का पारांपरिक वोट माना जाता है। दोनों नेता बीते पांच साल में किए गए कार्यों का उल्लेख कर सभी पक्षों को अपनी तरफ लाने का प्रयास करेंगे। इसके अलावा, सपा प्रमुख अखिलेश यादव की कोशिश होगी कि वे अतीक फैक्टर की नाराजगी को दर कर अल्पसंख्यक वोटों को टीएमसी के पक्ष में ले आएं। यहां के कालीन उद्योगपतियों और कारोबारियों का एक समूह जहां बीजेपी के साथ खड़ा दिखाई देता है तो वहीं दूसरा समूह गठबंधन साथ दिख रहा है। कालीन कारोबारी पंकज ने कहा, “मोदी जी बेहतर पीएम है। अन्य प्रधानमंत्रियो की तुलना में बेहतर व्यक्ति हैं। इसलिए उनका वोट तो उन्हीं को जायेगा। जबकि साहिद का कहना है कि इंडी गठबंधन ही है जो केन्द्र में बीजेपी को चुनौती दे सकता है। हमारे पास गठबंधन को समर्थन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। चुनाव में यहां बीजेपी, बीएसपी और टीएमसी के बीच टक्कर होने के आसार हैं। बेरोजगारी यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है। लेकिन चुनावों में वोटिंग जाति के आधार पर होती रही है। औराई के फर्नीचर कारोबारी नसीम ने चुनावी चर्चा के दौरान कहा कि केंद्र में फिर से नरेंद्र मोदी की सरकार बनेगी, लेकिन यहां तो गठबंधन चुनाव जीत रहा है। सुरियावा के इलेक्ट्रिक दुकानदार नजर अहमद ने भी चुनाव बाद मोदी की सरकार बनने के दावे किए। इन्होंने कहा कि केंद्र में मोदी की सरकार बने इसके लिए मतदान के दौरान लोग पलट भी सकते हैं। चाय विक्रेता कमार यादव ने कहा कि इस चुनाव में भाजपा मैदान में डटी हुई है। गोपीगंज के रजा खान बोलें -मोदी-योगी ने लोगों को परेशान कर दिया है। जबकि हरिनाथ की राय जुदा थी। हरिनाथ के मुताबिक कुर्मी मत एकजुट भाजपा के साथ हैं। दलित भी भाजपा के साथ आ रहे हैं। युवा अनुभव भी इनकी बातें सुन रहा था, उसने सबकी बातें काटते हुए कहा कि चुनाव में सिर्फ मोदी का नाम चल रहा है। भाजपा ही जितेगी। जोशीले अनुभव ने कहा कि इस समय सारे भ्रष्टाचारी बेल पर है या जेल में हैं। मोदी की गारंटी है, बाकी सब हवा-हवाई है। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद बिजली और सड़कें अच्छी हो गई हैं। जंगीगंज के राजेशखर बोले यहां मुकाबला कांटे का है। कुर्मी के साथ यादव भी भाजपा के साथ जा सकते हैं, ऐसी चर्चाएं अब चल रही हैं। लोग यह जानते हैं कि सरकार दिल्ली की बनानी है इसलिए भाजपा को वोट देंगे। इन्होंने कहा कि अंदर ही अंदर मोदी के नाम की लहर जनता में चल रही है।


कब कौन जीता

आजादी के बाद हुए चुनाव में भदोही लोकसभा सीट पर छह बार कांग्रेस तो चार बार भाजपा ने जीत दर्ज की है। बलिया के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त अलग-अलग टर्म में सर्वाधिक तीन बार यहां से सांसद रहें। जबकि कांग्रेस के जान ए विल्सन, अजीज इमाम और सपा की फूलन देवी दो-दो बार सांसद चुनी गई। आजादी के बाद पहले चुनाव में 1952 से 57 तक कांग्रेस के जॉन एन विल्सन पहले सांसद चुने गए। 1962 में कांग्रेस पार्टी ने फिर जीत दर्ज की और श्यामधर मिश्र सांसद बने. 1967 में जनसंघ के वंश नारायण सिंह ने जीत दर्ज किया. इसके बाद फिर कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की और अजीज इमाम संसद पहुंचे. अस्सी के दशक तक कांग्रेस का इस सीट से दबदबा रहा। उसके बाद जनसंघ, लोकदल के प्रत्याशी जीते। 1990 से लेकर 2010 तक चुनाव एवं उप चुनाव में एक बार भाजपा और तीन-तीन बार सपा-बसपा ने बाजी मारी। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में यहां जनता पार्टी के फकीर अली अंसारी सांसद चुने गए. 1980 में इंदिरा गांधी ने वापसी की तो मिर्जापुर भदोही में भी कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई. यहां अजीज इमाम फिर सांसद बने. इसके बाद यहां उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस पार्टी के ही उमाकांत ने जीत दर्ज की. फिर 1984 में उमाकांत दोबारा सांसद चुने गए. इसके बाद 1989 में वीपी सिंह की लहर में जनता दल ने जीत दर्ज की और युसूफ बेग सांसद बने. 1991 में राम मंदिर आंदोलन के बाद ये सीट बीजेपी के खाते में चली गई और वीरेंद्र सिंह सांसद बने. 1996 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को मैदान में उतारा और वह जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं. दो साल बाद बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ने ये सीट फूलन देवी से छीन ली और वो फिर यहां से सांसद चुने गए. इसके एक साल बाद फूलन देवी ने 1999 में पलटवार किया और दोबारा चुनाव जीत कर यह सीट सपा की झोली में डाल दी. फूलन देवी की हत्या के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में रामरति बिंद सांसद बने. 2004 में बसपा के नरेंद्र कुशवाहा ने यहां जीत दर्ज की। 2008 के परिसीमन के बाद अलग भदोही लोकसभा सीट बना. भदोही सीट पर पहली बार 2009 में आम चुनाव हुआ तो बसपा की टिकट से गोरखनाथ त्रिपाठी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 2014 में वीरेंद्र सिंह मस्त भाजपा से निर्वाचित हुए जबकि 2019 में भाजपा के रमेश चंद्र बिंद चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे। बीजेपी अब हैट्रिक की तैयारी कर रही है.


भौगौलिक परिदृश्य

भदोही कालीनों का शहर है. क्षेत्रफल के लिहाज से यह यूपी का सबसे छोटा जिला है। गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित जिले का मुख्यालय ज्ञानपुर में है और जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और प्रयागराज से घिरा है. 15वीं शताब्दी तक भार को सागर राय के साथ मोनास राजपूतों द्वारा पराजित किया गया था, और इस जीत के बाद सागर राय के पोते, जोधराय ने इसे मुगल सम्राट शाहजहां से एक जमींदार सनद के रूप में प्राप्त किया था. हालांकि लगभग 1750 ईस्वी भूमि राजस्व बकाया भुगतान के कारण, प्रतापगढ़ के राजा प्रताप सिंह ने बकाया भुगतान के बदले में पूर्ण परगना को बनारस के बलवंत सिंह को सौंप दिया. 1911 में भदोही को महाराजा प्रभु नारायण सिंह ने अपने रियासत बनारस के अधीन शामिल कर लिया. भदोही ने 30 जून 1994 को उत्तर प्रदेश के 65वें जिले के रूप में राज्य के नक्शे पर अपनी नई पहचान बनाई. जिला बनने से पहले यह वाराणसी जिले का हिस्सा था. इस जगह का नाम उस क्षेत्र के भार राज्य से पड़ा जिसने भदोही को अपनी राजधानी बनाया. भार राज्य के शासकों के नाम पर कई पुराने टैंक समेत ऐतिहासिक धरोहर हैं. अकबर के शासनकाल के दौरान, भदोही को एक दस्तुर बना दिया गया और इलाहाबाद के शासन में शामिल कर लिया गया. 1056 वर्ग किमी में फैले भदोही में एशिया में अपनी तरह का एकमात्र इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपेट टेक्नॉलोजी (आईआईसीटी) स्थित है, जिसकी स्थापना 2001 में भारत सरकार ने किया था. कालीन उद्योग के अलावा बनारसी साड़ी और लकड़ी के टोकरी बनाना भी अहम उद्योग है.






Suresh-gandhi


सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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