- कन्याओं का पूजन कर किया गया फलों का वितरण

सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में आस्था के साथ चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना के साथ मंदिर में जारी हवन यज्ञ के साथ ही यहां पर करीब 101 कन्याओं को केले आदि के फलों का वितरण किया। इस मौके पर मंदिर के प्रबंधक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, पंडित उमेश दुबे, पंडित गणेश शर्मा, सुनिल चौकसे, सुभाष कुशवाहा, सुमित भानू उपाध्याय, रामू सोनी सहित अन्य शामिल थे। इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार शुक्रवार को मंदिर परिसर में सुबह हवन पूजन के साथ ही दुर्गा सप्ती का पाठ के अलावा दोपहर में कन्याओं को भोजन प्रसादी का वितरण किया जाएगा। शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर नियमित रूप से कन्याओं की पूजन के साथ ही विशेष श्रृंगार किया जा रहा है। इसके अलावा दोपहर में मां देवी के विभिन्न रूपों के विषय में चर्चा का आयोजन किया जाता है। गुरुवार को नवरात्रि के तीसरे दिन पंडित श्री दुबे ने बताया कि नवरात्रि में दुर्गा-उपासना के तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व है। मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-अर्चन किया जाता है। इनका यह स्वरुप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। दस भुजाओं वाली देवी के हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र विभूषित है। उन्होंने बताया कि इनके गले में सफेद फूलों की माला सुशोभित रहती हैं। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने वाली होती है। इनके घंटे की तरह भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव, दैत्य और राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते है। दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी इनका स्वरुप दर्शक और आराधक के लिए अत्यंत सौम्यता और शांति से परिपूर्ण रहता है। अत: भक्तों के कष्टों का निवारण ये शीघ्र ही कर देती हैं। इनका वाहन सिंह है अत: इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।
भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती
यज्ञाचार्य पंडित श्री दुबे ने बताया कि इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठती है। इस दिन साधक का मन 'मणिपुर चक्र' में प्रविष्ट होता है और मां चंद्रघंटा की कृपा से उसे आलोकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। मां चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहां भी जाते है लोग उन्हें देखकर शांति का अनुभव करते है। इनके साधक के शरीर से दिव्य प्रकाश युक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता है। यह दिव्य क्रिया साधारण चक्षुओं से दिखाई नहीं देती, किंतु साधक व उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव करते हैं।
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