दरअसल मुख्यमंत्री कुछ चौधरियों के दलदल में ऐसे उलझ गये हैं कि अपनी चौधराहट भूल गये हैं। मुख्यमंत्री हैं, इसकी गरिमा का भी ख्याल नहीं रख रहे हैं। राजद से नाता तोड़ने के लिए सबसे ज्यादा मानसिक दबाव संजय झा और अशोक चौधरी ने बनाया था। एक कायस्थ सेवानिवृत अधिकारी भी शामिल थे। इसमें संजय झा ने बिना चुनाव लड़े संसद की राह पकड़ ली और अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी (किशोर कुणाल की पुत्रवधु) को लोजपा का टिकट दिलवाकर लोकसभा की राह पकड़ा दी है। और अब नीतीश चरण पकड़ते फिर रहे हैं। नीतीश कुमार कुछ सवर्ण नौकरशाहों और नेताओं के जाल में ऐसे उलझ गये हैं कि उससे निकलना संभव नहीं है। इन नेताओं का सरोकार सवर्ण जातियों का हित है। इसके लिए भाजपा का सत्ता में होना आवश्यक है। इसलिए हर बार जदयू का सवर्ण लॉबी नीतीश कुमार को भाजपा के दरवाजे पर धकेल देता है और भाजपा के कंधे पर आगे की राह पकड़ लेता है। बिहार के गैरसवर्णों की त्रासदी यह है कि नीतीश का सरोकार भाजपा के सरोकार में समाहित हो गया है, इसलिए न्याय के साथ विकास की यात्रा की राह भी तिरोहित (अंधकारपूर्ण) हो गयी है।
वीरेंद्र यादव,
वरिष्ठ पत्रकार, पटना

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें